गांधी की हत्या का सिलसिला जारी है !

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shravan garg

— श्रवण गर्ग —

(यह लेख ठीक एक साल पहले, 25 जुलाई 2022 को, एक ब्लागपोस्ट के तौर पर लिखा गया था। सर्व सेवा संघ परिसर पर जबरन सरकारी कब्जे से अत्यंत व्यथित और क्षुब्ध श्री विनोद कोचर को श्री श्रवण गर्ग के इस लेख की याद आयी और उन्होंने ही इसे हमारे पास भेजा। हमें लगा कि इसे फिर से प्रकाशित किया जाना चाहिए।)

गांधी को अब उनके घर में घुसकर मारा जा रहा है। अभी तक कोशिशें बाहर से मारने की ही चल रहीं थीं पर वे शायद पूरी तरह सफल नहीं हो पाईं। जनता चुप है और बापू के अधिकांश अनुयायियों ने भी रहस्यमय मौन साध रखा है। ठीक वैसे ही जैसे भीड़ भरी सड़क पर किसी बेगुनाह की पिटाई या हत्या होते हुए अथवा किसी सम्भ्रांत परिवार की महिला को गुंडों द्वारा छेड़ता हुआ देख कुछ लोग वीडियो बनाने लगते हैं और बाकी आँखें चुराकर आगे बढ़ जाते हैं। बापू के साथ भी वैसा ही हो रहा है।

मोहनदास करमचंद गांधी को फिर से मारने का काम उनके स्थान पर विनायक दामोदर सावरकर की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए किया जा रहा है। सावरकर की स्थापना के लिए ‘गांधी स्मृति’ को ‘गांधी विस्मृति’ में तब्दील किया जाना जरूरी है। माना जा रहा है कि गांधी और सावरकर एकसाथ नहीं रह सकते। धर्म की राजनीति में एक के लिए दूसरे को हटाना जरूरी है। यह काम सरकारों की प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहमति और सक्रिय भागीदारी के बिना नहीं हो सकता। निश्चित ही ऐसी किसी सहमति या भागीदारी की 30 जनवरी 1948 और 26 मई 2014 की अवधि के बीच कल्पना नहीं की जा सकती थी। दोनों ही तारीखों का भारत की आत्मा के साथ गहरा संबंध स्थापित हो गया है। इतिहास के विद्यार्थी भारत के दूसरे विभाजन की तारीख आसानी से तलाश सकते हैं !

‘गांधी स्मृति’ नई दिल्ली के तीस जनवरी मार्ग पर स्थित वह स्थल है जो किसी समय ‘बिड़ला हाउस’ के नाम से जाना जाता था। गांधी जी की नाथूराम गोडसे द्वारा गोली मारकर की गई हत्या के बाद इस स्थान का अंतरराष्ट्रीय पता बदल गया। गांधी जी ने सेवाग्राम(वर्धा) आश्रम से बाहर अपने जीवन के अंतिम 144 दिन इसी स्थान पर बिताए थे। ‘गांधी दर्शन’ बापू की हत्या के बाद की गई अंत्येष्टि के स्थल ‘राजघाट समाधि’ से लगा हुआ वह विशाल परिसर है जहां गांधी जी के जीवन से संबंधित चित्रों की प्रदर्शनी, डोम थिएटर और राष्ट्रीय स्वच्छता संग्रहालय है।

‘गांधी स्मृति’ और ‘गांधी दर्शन’ दोनों का ही कामकाज केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अधीन एक समिति देखती है। प्रधानमंत्री इस समिति के अध्यक्ष होते हैं। बापू समाधि का कामकाज आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय के अधीन राजघाट समाधि समिति देखती है। ’गांधी स्मृति एवं दर्शन समिति’ की ओर से ‘अंतिम जन’ नाम से एक पत्रिका प्रकाशित की जाती है। इसके संरक्षक पूर्व केंद्रीय खेल एवं युवा मामलों के मंत्री और सांसद विजय गोयल हैं। प्रधानमंत्री द्वारा नामांकित गोयल ‘गांधी स्मृति’ और ‘गांधी दर्शन’ समिति के उपाध्यक्ष हैं और दोनों स्थानों के दैनन्दिन का कामकाज देखते हैं।

‘अंतिम जन’ ने अपने जून 2022 के प्रकाशन को ‘वीर सावरकर अंक’ बनाते हुए स्वतंत्रता संग्राम में सावरकर के योगदान की चर्चा की है और उन्हें महान देशभक्त निरूपित किया है। विजय गोयल की ओर से अंक की प्रस्तावना में कहा गया है कि : ‘यह देखकर दुख होता है कि जिन लोगों ने एक दिन जेल नहीं काटी, यातनाएँ नहीं सहीं, देश समाज के लिए कुछ कार्य नहीं किया वे सावरकर जैसे बलिदानी की आलोचना करते हैं जबकि सावरकर का इतिहास में स्थान व स्वतंत्रता आंदोलन में उनका सम्मान महात्मा गांधी से कम नहीं है।’

कोई भी सवाल नहीं करना चाहता कि गांधी के घर में ही बैठकर कुछ लोग इतनी हिम्मत के साथ उस व्यक्ति की प्राण-प्रतिष्ठा करने का साहस कैसे कर सकते हैं जिसे राष्ट्रपिता की हत्या के बाद एक अभियुक्त मानते हुए एक विशेष अदालत में मुकदमा चलाया गया था। अदालत द्वारा सावरकर को निर्दोष साबित कर दिए जाने के बाद नवम्बर 1966 में गठित एक-सदस्यीय कपूर आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था : ‘गांधी की हत्या का षड्यंत्र सावरकर और उनके अनुयायियों ने रचा था इसी निष्कर्ष पर आना पड़ता है।’ सावरकर का तब तक निधन हो चुका था।

दक्षिणपंथी बहुसंख्यकवाद को हथियारों से सज्जित करने की शर्त ही यही है कि अब गांधी द्वारा प्रतिपादित धार्मिक सहिष्णुता की भी हत्या करके उसे अल्पसंख्यक-विरोधी धार्मिक उन्माद में बदल दिया जाए। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए गांधी को वैचारिक रूप से खत्म किया जाना जरूरी है। हिंदुत्व के कट्टरपंथी समर्थकों के लिए वह एक दुर्भाग्यपूर्ण क्षण रहा होगा कि गांधी को उनके शरीर के साथ ही विचार रूप में भी राजघाट पर जलाया नहीं जा सका। सावरकर-गोडसे के भक्तों का मानना हो सकता है कि उस अधूरे काम को पूरा करने के लिए वर्तमान से ज्यादा उपयुक्त समय आगे नहीं आ सकेगा।

‘अंतिम जन’ शब्द का संबंध गांधी के सपनों के ‘अंत्योदय’ से रहा है। बापू की समाधि पर उनका कहा प्रसिद्ध वाक्य एक शिलापट्ट पर अंकित है। उस वाक्य में गांधी ने कहा है : ”मैं तुम्हें ताबीज़ देता हूँ। जब भी दुविधा में हो या जब अपना स्वार्थ तुम पर हावी हो जाए इसका प्रयोग करो। उस सबसे दुर्बल व्यक्ति का चेहरा याद करो जिसे तुमने कभी देखा हो और अपने आप से पूछो- जो कदम मैं उठाने जा रहा हूँ वह क्या उस गरीब के कोई काम आएगा? क्या उसे इस कदम से कोई लाभ होगा? क्या इससे उसे अपने जीवन और अपनी नियति पर कोई काबू फिर मिलेगा? दूसरे शब्दों में, क्या यह कदम लाखों भूखों और आध्यात्मिक दरिद्रों को स्वराज देगा? तुम पाओगे कि तुम्हारी सारी शंकाएँ और स्वार्थ पिघलकर खत्म हो गए हैं।’’

राजनीति के सांप्रदायीकरण ने गांधी के अंतिम जन की पहचान उसकी दुर्बलता के स्थान पर उसके धर्म को बना दिया है। अल्पसंख्यक-विरोधी साम्प्रदायिक विभाजन आज विकास का मंत्र बन गया है। इसे कोई बौद्धिक संयोग नहीं माना जा सकता कि गांधी के दर्शन और विचारों के प्रसार के लिए बनी समिति द्वारा राष्ट्रपिता के बजाय सावरकर पर विशेष सामग्री प्रकाशित करने का निर्णय लिया गया। आरोप अगर सही हैं तो ‘गांधी दर्शन’ परिसर में संघ से जुड़े पदाधिकारियों की बैठकें भी हो चुकी हैं।

‘अंतिम जन’ के सावरकर विशेषांक को गांधी द्वारा स्थापित आश्रमों (साबरमती और सेवाग्राम) के आधुनिकीकरण के साथ भी जोड़कर देखा जा सकता है। देशव्यापी विरोधों के बावजूद, गांधीजी द्वारा 1917 में स्थापित साबरमती आश्रम को केंद्र और गुजरात सरकारों द्वारा बारह सौ करोड़ रुपए की लागत से एक अत्याधुनिक ‘गांधी थीम पार्क’ में बदलने पर काम चल रहा है। आश्रम के रहवासियों ने भी मोटी धनराशि स्वीकार कर साबरमती परिसर को खाली कर दिया है। इसी प्रकार, गांधी जी द्वारा 1936 में स्थापित सेवाग्राम आश्रम के लिए भी ढाई सौ करोड़ की योजना पर काम चल रहा है। बापू के वंशजों के विरोध के वावजूद, वर्धा से सेवाग्राम जाने वाली सड़क के दोनों ओर लगे कई पेड़ों को गिरा दिया गया।

संघ के मुख्यालय वाले शहर नागपुर से सेवाग्राम की दूरी (63 किलोमीटर) सिर्फ घंटे भर की और साबरमती आश्रम से गुजरात सरकार की सीट गांधीनगर के बीच दूरी मात्र आधे घंटे की है। आने वाले दिनों में यह दूरी भी मिट जाएगी। सवाल अब गांधी की मूर्तियों और आश्रमों को बचाने भर का नहीं बचा है, राष्ट्रपिता को तो देश की जड़ों और संस्कारों से ही समाप्त किया जा रहा है। ‘अंतिम जन’ का सावरकर विशेषांक गांधी की लगातार की जा रही हत्या के उपक्रमों में ही एक और प्रयास माना जा सकता है। हम प्रतीक्षा कर सकते हैं कि आने वाले समय में ‘अंतिम जन’ का कोई अंक नाथूराम गोडसे को समर्पित भी हो सकता है !

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