विष्णु नागर की छह कविताएँ

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पेंटिंग- मैक्स चक्रवर्ती

1. शब्द और अर्थ

पहले हत्या के लिए
एक शब्द था –
हत्या

उसका एक अर्थ था –
हत्या

एक व्यंजना थी –
हत्या

जब हत्यारे बड़े पदों पर पहुँच गए
तो यह शब्द, शब्दकोशों से
बहिर्गमन कर गया

अब खयाल भी नहीं आता
जो आँखों के सामने हो रही है
वह हत्या है
जो सामने खड़ा है
वह हत्यारा है
और वह जो दलील दे रहा है
वह एक हत्यारे की दलील है
और जिस दलील पर
अदालत ने मुहर लगाई है
वह भी हत्यारे की दलील है।

2. न्याय

भुनगा न्याय मांगने गया
न्यायाधीश ने उसे मसलकर फेंक दिया

अगली बारी हाथी की थी

न्यायाधीश ने कहा
आपने कष्ट क्यों किया महाराज
न्याय तो खुद आपके घर के लिए
निकल चुका है।

3. फर्क 

वे चाहते थे कि
मैं बोलूँ ही नहीं
मैं चाहता था कि
सिर्फ बोलूँ ही नहीं
यूँ तो उनमें और मुझमें
सिर्फ एक शब्द का फर्क था

नहीं एक शब्द का क्यों
फर्क ही फर्क था।

पेंटिंग- बी. प्रभा

4. एक प्रार्थना

इतनी ताकत न देना मुझे कि
मेरी बेचैनियाँ मुझे धोखा दे जाएँ
मेरा हास्यबोध, हास्यास्पद बन
लोकप्रियता पाए
मेरी मूर्खताएँ
मेरा पोस्टर बन जाएँ
उन्हें फाड़ना गुनाह हो जाए

मेरी कुटिलताएँ-क्रूरताएँ
वंदनीय मानी जाएँ
उनके मंदिर जगह-जगह बन जाएँ
सुबह-शाम भक्तगण उनमें
कान फोड़ घंटा बजाएँ

मुझे जिंदगी थोड़ी देना
मुझे वहाँ पहुँचने की हिम्मत न देना
जहाँ मैं खुद को जितना धोखा देता जाऊँ
उम्र उतनी लंबी पाता पाऊँ।

5. श्रेष्ठ विकल्प 

लोकतंत्र चूहे को सौंपो
तो वह रातभर में कुतर डालेगा
बिल्ली को सौंपो
वह उसे चूहा समझ तुरत निबटा देगी
गधे को सौंपो तो
कहेगा, पीठ पर रख दो
जहाँ कहो, वहाँ पहुँचा दूॅंगा

विकल्पहीनता के दौर में
श्रेष्ठ विकल्प कहीं गधा तो नहीं?

6. कितना हिंदू हूँ?

सवाल पूछा है किसी ने आप कितने हिंदू हो
मैंने कहा मंदिर में रखी
मूर्ति जितनी हिंदू होती है, उतना हिंदू हूँँ
मंदिर में चढ़ने वाला नारियल
जितना हिंदू होता है, उतना हिंदू हूँँ
भोग में चढ़ने वाली खीर, बर्फी, पेड़ा
बल्कि चने और गुड़ जितना भी हिंदू हूँ
और हाँँ गाय जितना हिंदू तो हूँँ ही
पीपल और वटवृक्ष जितना हिंदू भी हूँ

और भी बताऊँ लक्ष्मी के वाहन, जितना हिंदू हूँँ
और चार खाने के कपड़े से बनी कमीज जितना भी

मैं सवाल पूछने वाला ऐसा हिंदू हूँँ
जो मुसलमान भी है
मैं उतना हिंदू हूँ, जितना हर मुसलमान, हिंदू होता है

मैं चींटी जितना हिंदू तो हूँँ ही
मच्छर जितना हिंदू भी हूँ
मैं ऐसा हिंदू हूँँ जो किसी की जात-धर्म चुपके से
भी जानने की कोशिश नहीं करता
मैं इतना ज्यादा हिंदू हूँ
कि भूल ही जाता हूँ कि क्या हूँ

भैंस पानी में जाकर जितनी हिंदू हो जाती है
उतना हिंदू हूँँ
बाकी जो हूँ, सो तो हूँ ही।

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