— आनंद कुमार —
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लाल किले से देश को 77वें स्वाधीनता दिवस की बधाई का भाषण दिया। हमने इस राष्ट्रीय उत्सव को उनके संसदीय क्षेत्र वाराणसी में मनाया। देश की राजधानी के समारोह से जुड़ी उनकी तमाम तस्वीरें दिखाई गई हैं। मैं उनके चुनाव क्षेत्र से पॉंच अनुभवों को आपके सामने रखकर तस्वीर का दूसरा पहलू पेश करना चाहता हूँ।
हमारे स्वतंत्रता दिवस समारोह की शुरुआत सुबह सर्व सेवा संघ परिसर के बाहर सड़क पर सैकड़ों पुलिसवालों के पहरे में हुई। गांधी-जेपी विरासत बचाओ अभियान की तरफ से सुबह ध्वजारोहण का आयोजन किया गया था लेकिन परिसर के सभी दरवाजों पर पुलिस फोर्स का पहरा था। अंदर मलबा और मातमी सन्नाटा। किसी को प्रवेश की अनुमति नहीं थी। अभियान के समारोह में शामिल होने के लिए बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के गांधीजन पहुंच गए थे। बनारस के शहरी और ग्रामीण लोकसेवक भी थे। बापू की प्रतिमा के निकट एक बड़ा तिरंगा फहराया जाना था। लेकिन पुलिस अधिकारी बिना पूर्व अनुमति के इस आयोजन को न होने देने के लिए आक्रामक हो गये। झंडे पर फूलों की पॅंखुड़ियों का चढ़ाना भी रोका गया। सड़क के किनारे भी अपनी बात कहने के विरुद्ध दबंगई दिखाई। हमने पुलिस के घेरे में राष्ट्रगान गाया। राष्ट्र ध्वज को सलामी दी। पुलिस के कब्जे में कैद गांधी और जेपी की प्रतिमा को पुष्पांजलि अर्पित किए बिना लौटना बहुत क्षोभजनक रहा।
ऐसा लगा कि हमारा किसी विदेशी पुलिस से सामना हुआ है।
लेकिन यह दुख जल्दी ही दूर हो गया। हम सरकारी इंतजाम से दूर नागरिक संस्थान में आए। एक साथी की पहल पर हम सभी को स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल होने के लिए लल्लापुरा के दो विद्यालयों में सम्मान सहित बुलाया गया। तिरंगे गुब्बारे और रंगोली। गांधी, टैगोर, नेहरू, पटेल, सुभाष, मौलाना आजाद, भगतसिंह, लालबहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अब्दुल कलाम की तस्वीरें। कहां सुबह पुलिस की दबंगई और रोकटोक। कहां बरसों से नयी पीढ़ी को गढ़ने में जुटा विद्या संस्थान! आजादी को समझने समझाने की उत्सुकता और उत्साह।
छात्राओं के इंटर कालेज में लगभग पांच सौ अध्यापिकाओं और छात्राओं ने कौमी तराना गाया – सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा….। फिर तेजस्विनी विद्यार्थियों को सम्मानित किया गया। हर छात्रा अपने आप में देश के उज्ज्वल भविष्य की एक गारंटी लगी। सबसे बात करने की इच्छा थी लेकिन यह मुमकिन नहीं था।
अभी एक और विद्यालय में झंडा फहराया जाना बाकी था। यह 90 साल पुराना इंटर कालेज है। इसमें एक प्राइमरी स्कूल भी चलाया जाता है। इसमें एक महीने से पढ़ाई बंद थी क्योंकि कालेज में सशस्त्र पुलिस ठहरी हुई थी। क्यों? प्रशासन की मर्जी! फिर भी बच्चों ने खूब नाच-गाना किया। कालेज की प्रबंध समिति ने ठंडे पानी की मशीन का उदघाटन कराया। शौचालयों में सुधार का निरीक्षण कराया। अशोक, रजनीगंधा और सावनी के पौधे लगाए गए।समापन के बाद जलपान और राजनीतिक चर्चा शामिल थे। शिक्षक-शिक्षिकाओं ने दुबारा आने का वादा कराके विदा किया। कहां सर्व सेवा संघ परिसर को तहस-नहस करने की अकड़ में ऐंठे पुलिस अधिकारी और कहां शिक्षा के पवित्र काम में समर्पित लोगों की विनम्रता।
आइए, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्वाचन क्षेत्र की चौथी छबि देखी जाए। कोनिया पांच हजार घरों का क्षेत्र है। इसमें निम्न मध्यम वर्गीय लोगों ने आवास बनाए हैं। अनेकों निर्धन परिवार किराए की झुग्गी-बस्तियों में रहते हैं। कोनिया में 25,000 के लगभग स्त्री, पुरुष और बच्चे रहते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, साफ पानी और हवा, खेल के मैदान और अपर्याप्त शौचालयों की समस्याएं हैं फिर भी कुछ घरों पर तिरंगा था। कोनिया के लोग सरकार द्वारा स्वतंत्रता दिवस के 48 घंटे पहले सर्व सेवा संघ परिसर पर बुलडोजर चलवाकर सबकुछ ध्वस्त करने से आतंकित मिले।
यह गांधी-जेपी विरासत बचाओ अभियान के बनारस के सभी वार्डों में प्रतिरोध आयोजन की योजना का पहला दिन था इसलिए हमने अपनी दुर्दशा का मूल कारण बताया। यह भी जोड़ा कि बिना परस्पर एकता के सरकारी मनमानी नहीं रुकेगी। शीघ्र जिज्ञासा शुरू हो गई। हमारी तो सारी जिंदगी की कमाई मकान में लगी। अब क्या करूं? कोई अच्छा वकील बताइए!
कुछ लोगों को यह गलतफहमी जरूर थी कि वह एक अरसे से भारतीय जनता पार्टी के समर्थक हैं और उनका मुहल्ला सुरक्षित रहेगा। उनको तथ्यों से अवगत कराने के लिए सरकारी योजना की रिपोर्ट इंटरनेट के माध्यम से दी गयी।इसी बीच एक स्थानीय निवासी बिस्कुट और पानी की बोतल लेकर हमारी टीम का सत्कार करने में जुट गए। कुछ लोग आपस में सलाह करके आगे आए और हमारी बात को विस्तार से समझने के लिए जल्दी एक मीटिंग की तारीख तय करने की इच्छा जताई। अबतक चुप रह रहे एक वृद्ध ने कहा कि मैं गांधीवादी हूं और गांधी विद्या संस्थान और सर्व सेवा संघ के खिलाफ चल रहे षड्यंत्र के खिलाफ हर तरह से योगदान करना अपनी जिम्मेदारी मानता हूं। आप लोग मेरे मकान में ही मीटिंग रखिए। बिना एक दूसरे की मदद किए सरकार की मनमानी नहीं रुकेगी।
अब आखिरी घटना को बताने का समय आ गया है। कोनिया की एक लड़की सर्व सेवा संघ परिसर में रोज बालवाड़ी में गरीब बच्चों को पढ़ाने वाली टोली का हिस्सा है। 12 अगस्त को हुए बुलडोजर आघात के बाद से बालवाड़ी नष्ट हो गई इसलिए वह भी बेरोजगार होकर घर बैठने को मजबूर हो गयी थी। अपने मुहल्ले में सर्व सेवा संघ के लोगों को देखकर खुश हो गई। हमलोगों को भी एक परिचित को अनायास पाकर अच्छा लगा। वह अपनी परिचित कुछ महिलाओं को परिचित कराने ले आयी। फिर बातचीत हो जाने के बाद हम उसके माता-पिता से मिलने पहुंचे। यह जानकारी मिली कि उसका परिवार सात साल से कोनिया की झुग्गी-बस्ती का निवासी है लेकिन अब किराए की नई जगह ढूंढ़ रहे हैं। परिवार में कुल आठ भाई-बहन हैं। सात छोटी-बड़ी बकरियां भी पल रही हैं। टिन की छत वाली झुग्गी में एक लालटेन और एक बड़ा दिया रोशनी फैला रहे थे। एक कोने में चूल्हा था। लेकिन साइकिल, रेडियो, टीवी, फर्नीचर आदि नहीं दिखे। मां ने कहा कि उसकी बेटी को पढ़ाने का शौक है और इससे वह भी खुश हैं। पिता ने पूछने पर बताया कि वह बंगाल का है और पंद्रह बरस से बनारस में ही मजदूरी करके रहता आया है। आगे भी बनारस में ही रोजी-रोटी का जुगाड़ करेगा। उसकी बेटी करिश्मा इस बातचीत में लगातार अपने पिता को गर्व से देखे जा रही थी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले लगभग एक दशक से बनारस से चुनाव जीत कर संसद में जन प्रतिनिधि होने का दावा कर सकते हैं लेकिन बनारस के सर्व सेवा संघ परिसर को उजाड़ने से लेकर करिश्मा के परिवार जैसे हजारों बेगुनाह लोगों की ज़िंदगी में अवसाद पैदा करने की जिम्मेदारी भी उनके ही खाते में लिखी जाएगी। गरीब बच्चों के सपनों को सच में बदलने के लिए स्कूल-कालेज के ताने-बाने को मजबूत करने की बजाय अडानी-अंबानी के मुनाफे के लिए किसानों की जमीन से लेकर गांधी-जेपी की विरासत को कब्जे में लेना हमारे देश के पुनर्निर्माण के इतिहास में काले अक्षरों में लिखा जाएगा। हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने इस सब के लिए अपना सर्वस्व अर्पण नहीं किया था।