विषमता ही संविधान और लोकतंत्र के सामने सबसे बड़ी चुनौती : अर्जुन देथा

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17 अगस्त। उदयपुर में 77वें स्वतंत्रता दिवस पर आयोजित गोष्ठी में जनता दल (स) के प्रदेश अध्यक्ष अर्जुन देथा ने कहा कि आज देश बहुत ही विकट परिस्थितियों से गुजर रहा है। एक ओर मणिपुर में गृहयुद्ध के हालात हैं तो दूसरी ओर हरियाणा में मणिपुर की घटनाओं से ध्यान हटाने के लिए साम्प्रदायिक दंगा कराया जा रहा है। गौर करने वाली बात यह है कि दोनों जगह डबल इंजन की सरकार यानी भाजपा की सरकारें हैं। उन्होंने कहा आज लोकतंत्र और संविधान के सामने सबसे बड़ी चुनौती विषमता है। आर्थिक विषमता के साथ सामाजिक विषमता भी बड़ी चुनौती है।

गोष्ठी का आयोजन समता संवाद मंच, पीयूसीएल, ऑल इण्डिया पीपुल्स फ्रंट, समाजवादी समागम व एटक जिला उदयपुर के संयुक्त तत्वावधान में किया गया था।

अर्जुन देथा ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि जातिवाद और उच्च जाति की मानसिकता संविधान लागू करने में बड़ी रुकावट पैदा कर रही है। उनका कहना है कि वर्तमान सरकार इस संविधान को बदलने को कटिबद्ध है और संविधान न भी बदले तो भी उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता; वे संविधान को एक तरफ रखकर भी अपने घोषित एजेण्डे पर यानी हिन्दू राष्ट्र बनाने की तरफ लगातार आगे बढ़ रहे हैं। वे भगवा ध्वज और मनु शस्मृति को लागू करना चाहते हैं और इसलिए कभी मणिपुर, कभी हरियाणा, कभी दिल्ली, गुजरात में साम्प्रदायिक आग लगाते रहते हैं। 2024 के चुनाव में उन्हें रोकने के सभी प्रयास होने चाहिए।

इसके पहले आस्था संस्थान उदयपुर की पूर्व निदेषक जिन्नी श्रीवास्तव ने तिरंगा झण्डारोहण किया और सभी साथियों ने राष्ट्र गीत जन गण मन गाया।

महावीर समता सन्देश के प्रधान सम्पादक व समता संवाद मंच के संस्थापक हिम्मत सेठ ने सभी साथियों का समारोह में स्वागत करते हुए और विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज का दिन सभी भारतवासियों के लिए हर्ष, उल्लास, स्वाभिमान व गौरव का दिन है।

15 अगस्त 1947 को 90 वर्षों के सतत आन्दोलन के बाद महात्मा गांधी के नेतृत्व में हमें खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला। 76 सालों में और विशेषकर 2014 के बाद देश की परिस्थितियां इतनी तेजी से बदल रही हैं कि डर लगता है कि यह खुली हवा में सांस लेने का अवसर हमसे छिन तो नहीं जाएगा, कहीं हम फिर से गुलाम तो नहीं हो जाएंगे। उन्होंने कहा कि मैं इसलिए यह बात कह रहा हूं क्योंकि वर्तमान सत्ता पर काबिज नेताओं के इरादे व आचरण बार-बार इस और इशारा कर रहे है। अभी गृहमंत्री अमित शाह ने तीन बिल संसद में रखे। वे आईपीसी का नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता करना चाहते हैं। वे गुलामी के सब दाग मिटाना चाहते हैं। कहने और सुनने में बहुत अच्छा लगता है। लेकिन उसमें जो प्रावधान किये हैं वो लागू हो गये तो देश में जेलों की जरूरत ही नहीं रहेगी, पूरे देश को जेल में बदल देंगे। इतने खतरनाक कानून बनने जा रहे हैं कि हमारा देश एक पुलिस स्टेट बनकर रह जाएगा। उन्होंने कहा कि इससे बचने का एकमात्र उपाय है कि अभी से ही इन बिलों का विरोध सामूहिक तौर पर सड़कों पर उतरकर किया जाय और किसी भी तरह यह कानून न बनने पाये। अन्यथा 2024 के बाद न तो हमें धरना प्रदर्शन करने की आजादी होगी, न ही अभिव्यक्ति की आजादी होगी।

गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए वरिष्ठ एडवोकेट अरुण व्यास ने कहा कि संसद में प्रस्तुत बिल के प्रावधान वास्तव में बहुत खतरनाक हैं और उनका विरोध जरूरी है। उनका सुझाव था कि इन बिलों पर बात करने के लिए एक संवाद का आयोजन अलग से किया जाए। उन्होंने कहा कि भाजपा, आरएसएस देश में राष्ट्रवाद के नाम पर मनुस्मृति लागू करना चाहते हैं।

इस विचार श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए कम्युनिस्ट पार्टी माले के प्रदेष सचिव शंकर लाल चौधरी ने कहा कि आज प्रधानमंत्री जी ने लाल किले से बोलते हुए लोकतंत्र और संविधान को आईना दिखाते हुए यह घोषणा कर दी कि 2024 के चुनाव के बाद भी मैं ही प्रधानमंत्री बनूंगा और झण्डारोहण करूंगा। उन्होंने सवाल किया, चुनाव के पहले इतना आत्मविश्वास आता कहां से है?

इस प्रश्न का उत्तर देते हुए वे बोले एक संभावना तो यह है कि सेना का दुरुपयोग करके पुलवामा जैसा कुछ बड़ा करने की योजना बन रही है। दूसरा उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए ईवीएम पर पहले से अविष्वास किया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी के आत्मविश्वास का तीसरा बड़ा कारण यह है कि मुख्य चुनाव आयोग को नियुक्त करने का जो बिल संसद में रखा है उसमें सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को हटाकर केन्द्र के एक मंत्री को चयन समिति में रखा जाएगा, जिससे किसी चाटुकार को चुनाव आयोग का भार दिया जा सके।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि जिन्नी श्रीवास्तव ने भी जन जागरण कर इन कानूनों का विरोध करने की अपील की। उन्होंने बताया कि कैसे वे 53 साल पहले ओम श्रीवास्तव से कनाडा में मिली थीं, फिर उनके साथ शादी करने के बाद भारत की नागरिकता लेकर उदयपुर में सेवा काम में लगीं।

गोष्ठी में कमाण्डर मंसूर अली, डाॅ. फरहत कानो, एडवोकेट मन्नाराम डागी, इंजीनियर पीयूष जोशी, रामचन्द्र सालवी, का. महेश चन्द्र शर्मा ने भी अपने विचार व्यक्त किये। जसपाल सिंह मक्कड, जगदीश आचार्य, डाॅ. प्रीतम जोशी, गजनफर अली, राघव दत्त व्यास, श्रीमती बतुल हबीब, प्रो. लालूराम पटेल, अभिषेक पालीवाल, प्रकाश चन्द्र साचोरा, एम.एल. सालवी, आर.सी. शर्मा, याकूब मोहम्मद, अशोक मंथन आदि गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। समता संवाद के उपाध्यक्ष इस्माइल अली दुर्गा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

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