दलितों और वंचितों को लुभाने की भागवत की चुनावी चाल

0

7 सितंबर। अगले लोकसभा चुनाव को नजर में रखकर आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने संविधान में पिछड़े, दलितों और आदिवासियों के लिए दी गयी आरक्षण व्यवस्था का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि जब तक समाज में भेदभाव है तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए। उनका यह भी कहना है कि हमने अपनी समाज व्यवस्था में अपने साथी मनुष्यों को पिछले दो हजार वर्षों से पीछे रखा है। हमने उनकी परवाह नहीं की। उनको समानता का अधिकार देने के लिए संविधान में दिया गया आरक्षण एक उपाय है। हम उसका पूरा समर्थन करते हैं। उनके अनुसार, आरक्षण की व्यवस्था सिर्फ अधिकार देने के लिए ही नहीं है बल्कि जिनको आरक्षण मिल रहा है उनको सम्मान देने के लिए भी है।

स्मरण होगा कि इन्हीं मोहन भागवत जी ने 2015 में आरक्षण पर पुनर्विचार करने की जरूरत बताई थी।

अब आरक्षण पर उनका सुर बदल गया है तो इसका कारण कुछ और नहीं, अगला लोकसभा चुनाव है जिसकी गहमागहमी शुरू हो चुकी है। मजे की बात यह है कि आरक्षण पर बदले हुए सुर में बोलते हुए मोहन भागवत संविधान का हवाला दे रहे हैं। लेकिन अभी तीन दिन पहले इंडिया और भारत के सवाल पर भागवत जी ने संवैधानिक व्यवस्था के विपरीत इंडिया के स्थान पर सिर्फ भारत के प्रयोग का निर्णय सुनाया था। उनके नियमन के बाद राष्ट्रपति जी ने विश्व नेताओं के लिए भेजे गए भोज के न्योते में अंग्रेजी में ‘प्रेसिडेंट ऑफ भारत’ का प्रयोग किया है।

सवाल हिंदू राष्ट्र का भी है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने की बात करता है। हिंदू समाज व्यवस्था जातिगत भेदभाव आधारित है। उसी व्यवस्था के तहत देश की बड़ी आबादी पीछे छूट गई। यही नहीं, आबादी के एक हिस्से को अस्पृश्य करार दे दिया गया। इन सब विसंगतियों को दूर करने का प्रावधान हमारे संविधान में किया गया है। इसलिए जब तक मोहन भागवत और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के संकल्प को तिलांजलि नहीं देते हैं तब तक उनके बयान पर यकीन करना मुश्किल है। उनके बयान को अगले लोकसभा चुनाव में दलितों और वंचितों को लुभाने के प्रयास के रूप में ही देखा जाएगा। यह बस वोट की चिंता है!

– शिवानंद तिवारी

Leave a Comment