विश्व गुरु जैसे जुमले का इस्तेमाल करना शेखचिल्ली के सपनों जैसी फूहड़ता है

0

Yogendra yadav

— योगेन्द्र यादव —

जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन के बाद दरबारी मीडिया भारत को विश्वगुरु साबित करने पर तुला है। स्तुति गान की परंपरा में अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का झंडा बुलंद होने का दावा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब एक सर्वमान्य अंतरराष्ट्रीय नेता बन गए हैं, ऐसा मिथक गढ़ा जा रहा है। हर बड़े झूठ की तरह इस मिथक में भी सच का एक छोटा-सा अंश है। यह सच है कि पिछले 30 साल से अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत का कद बढ़ा है। 90 के दशक में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के बाद से दुनिया की भारत की अर्थव्यवस्था में रुचि और निवेश बढ़ा है। आर्थिक वृद्धि के चलते भारत एक बड़ी मंडी के रूप में उभरा है।

तकनीकी शिक्षा के आधार के चलते भारतीय मूल के लोग दुनिया के शीर्ष पदों पर पहुंचने लगे हैं। इसका मिला-जुला असर यह हुआ है कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत और भारतीयों की उपस्थिति पहले से ज्यादा सम्मान के साथ दर्ज की जाने लगी है। इसका श्रेय केवल मोदी सरकार को देना हास्यास्पद होगा। पिछले कुछ वर्षों में चीन के उभार और उसकी राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा के विस्तार के चलते भी भारत का महत्त्व बढ़ा है। ऐसा नहीं है कि इससे पहले भारत का कोई वजूद नहीं था। 50 और 60 के दशक में एक गरीब और सामरिक तौर पर कमजोर देश होने के बावजूद भारत का नैतिक कद था। भारत को शीत युद्ध के जमाने में सच का प्रतिनिधि माना जाता था।

70 और 80 के दशक में भारत को रूसी खेमे के नजदीक देखा गया, लेकिन उसका राजनीतिक महत्त्व बना गुटनिरपेक्ष देश के नेता के रूप में, जिसकी मोहर 1983 के नई दिल्ली के गुटनिरपेक्ष सम्मेलन में लगी। लेकिन शीत युद्ध के चलते शक्ति संतुलन के समीकरण में भारत की गिनती नहीं होती थी। अब उसमें बदलाव आया है लेकिन भारत की हैसियत बढ़ने के इन कारणों का किसी एक नेता, सरकार या पार्टी से कोई सीधा संबंध नहीं है।

जी-20 के सम्मेलन से इसमें कोई बड़ा उछाल नहीं आया है। सच यह है कि जी-20 की अध्यक्षता हर साल बारी-बारी से सभी 19 सदस्यों को मिलती है। 2022 में इंडोनेशिया का नंबर था, 2023 में भारत की बारी आई और 2024 में ब्राजील की बारी है। जो देश अध्यक्ष होता है वहां हर साल यह सम्मेलन होता है। इसमें कुछ भी अनूठा या गर्व करने लायक बात नहीं है। कड़वा सच यह है कि जी-20 में शामिल 19 देशों में भारत सबसे गरीब देश है। जनसंख्या ज्यादा होने की वजह से अर्थव्यवस्था का आकार बहुत बड़ा है, लेकिन प्रति व्यक्ति आय और मानवीय विकास सूचकांक (ह्यूमन डिवैलपमैंट इंडैक्स) दोनों में भारत इन देशों में अंतिम नंबर पर खड़ा है।

यह सामरिक सच किसी से छुपा नहीं है कि चीन पिछले कुछ सालों में हमारी लगभग हजार वर्ग किलोमीटर जमीन हड़प चुका है और भारत सरकार बेबस खड़ी है। यूं भी जी-20 दुनिया का सबसे महत्त्वपूर्ण मंच नहीं है। औपचारिक रूप से महत्त्वपूर्ण है संयुक्त राष्ट्र संघ, सामरिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है नाटो और आर्थिक दृष्टि से ताकतवर है जी-7 नामक अमीर देशों का समूह। अगर इस जी-20 के सम्मेलन में कुछ अनूठा था तो वह था इसके इर्द-गिर्द हुआ गाजा-बाजा, शानो-शौकत और तमाशा। भारत जैसे गरीब देश ने इस आयोजन में 4,000 करोड़ रुपए से भी अधिक फूंक दिए, जबकि अमीर देश इस सम्मेलन में इसका एक चौथाई भी खर्च नहीं करते। सम्मेलन में गरीबी खत्म करने की बात हुई, लेकिन सम्मेलन के बाहर गरीबों को ढक दिया गया, दड़बों में बंद कर दिया गया।

राजधानी सहित देश के कई इलाकों में लॉकडाउन लगा दिया गया, जो दुनिया में किसी देश में नहीं होता। भारतीय संस्कृति के नाम पर जो फूहड़ फिल्मी प्रदर्शन हुआ सो अलग। इन सबसे दुनिया में भारत की छवि बढ़ी नहीं घटी है। हां, अगर कोई एक बात थी जिससे भारत की छवि बेहतर हुई तो वह था इस सम्मेलन में एक सहमति का दस्तावेज पास करवा लेना, जो शुरू में असंभव लग रहा था। इसका श्रेय भारतीय राजनीतिकों की कड़ी मेहनत और सूझ-बूझ के साथ प्रधानमंत्री को भी दिया जाना चाहिए। इसे छोड़कर और ऐसा कुछ नहीं हुआ जिससे प्रधानमंत्री की छवि वैश्विक मंच पर बड़ी होती हो।

दुनिया में जहां-तहां प्रवासी भारतीयों के जलसे करवाने से कोई वैश्विक नेता नहीं बन जाता। सच यह है कि बाकी दुनिया इस तमाशे पर ध्यान नहीं देती। जी-20 के सम्मेलन का इस्तेमाल अपनी व्यक्तिगत छवि प्रचार के लिए करना दुनिया में मखौल का विषय बनता है, सम्मान का नहीं। शायद पहली बार जी-20 सम्मेलन के बाद मेजबान ने दुनिया के मीडिया से एक खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस भी नहीं की। सच यह है कि अमरीकी राष्ट्रपति भारत से बाहर जाते ही वियतनाम में प्रेस कॉन्फ्रेंस करके भारत में लोकतंत्र, मीडिया की आजादी और जन संगठनों पर सरकार के शिकंजे के बारे में चिंता व्यक्त करते हैं। वैश्विक स्तर पर दुनिया या कम से कम तीसरी दुनिया का नेता बनने की प्रधानमंत्री की हसरत अभी पूरी नहीं हुई है। वह भूल जाते हैं कि अगर जवाहरलाल नेहरू को यह हैसियत मिली थी तो किसी तमाशे या प्रचार के चलते नहीं बल्कि अपनी बुद्धिमता और नैतिक साहस के जरिए हासिल हुई थी।

एक अंतिम बात। दुनिया में कोई भी समझदार व्यक्ति, समाज या देश अपने आप को गुरु घोषित नहीं करता। गुरु की पदवी दूसरे लोग, समाज या देश देते हैं। सच यह है कि आज दुनिया में कोई भी देश ऐसा नहीं है जो भारत को अपना गुरु मानने को तैयार हो। सच यह है कि हमारी लोकतांत्रिक आजादी, धार्मिक सहिष्णुता और गरीबों की स्थिति को बेहतर किए बिना विश्व गुरु जैसे जुमले का इस्तेमाल करना शेखचिल्ली के सपनों जैसी फूहड़ता है।


Discover more from समता मार्ग

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Comment