— अरविंद मोहन —
यह एक बडी विडम्बना है कि जो आदमी आधी धोती पहनता रहा, बकरी का दूध जिसका मुख्य आहार रहा और जिसने दो तीन आना रोज पर जीवन बसर करने का प्रयास किया उसे आज बाजार करोडो के व्यवसात की वस्तु बना दे. कुछ समय पूर्व जब गुरिल्ला युद्द के माहिर क्रांतिकारी चे ग्वेरा के शताब्दी वर्ष पर उनके रहने और आन्दोलन की जगहोँ को लेकर एक टूरिस्ट सर्किट बनाया गया और उनकी तस्वीर वाली टी शर्ट और उनकी खास शैली वाली टोपी का बडे पैमाने पर विपणन शुरु हुआ तो यह हाय हाय मची. लेकिन गान्धी के लिए वैसा भी कोई हंगामा नहीँ दिखता. बल्कि गान्धी का बाजार तो अद्भुत रूप से फैल रहा है और किस तरह गान्धी आजाद होंगे यह समझना मुश्किल है. उनकी पेंटिंग, उनकी तस्वीर, उनकी मूर्तियोँ, उनके संगीत और उनसे जुडी वस्तुओँ (जिनमेँ हजारोँ की संख्या मेँ पत्र शामिल हैँ) का मोल आदर, स्नेह और दिखावा सभी हिसाब से है.
अब किस कलाकार की पेंटिंग और मूर्ति को इस श्रेणी मेँ रखेंगे और किसे उसमेँ यह विभाजन मुश्किल है.लेकिन जैसे ही आप सचमुच के बाजार मेँ पहुंचते हैँ, जिसका आज का एक प्रबल रूप इंटरनेट पर भी दिखाई देता है तो बाजार का र्ंग रूप और आकार क अन्दाजा लगते देर नहीँ लगती. आपको गान्धी का रेखांकन सिखाने से लेकर उनकी पेंटिंग, उनके प्रसिद्ध चित्रोँ की प्रतिकृति का बाजार नजर आएगा. जाहिर तौर पर यह सब बिकता है क्योंकि इसमेँ भी गान्धी के लिए एक आदर भाव और स्नेह है, उनके प्रति आकर्षण तो है ही. पर जब दो या तीन रेखाओँ से आकृति निकालने का कौशल पचासोँ डालर के खर्च से सीखने को मिलेगा तो इसमेँ बाजार का खेल समझना मुश्किल नहीँ है. इसी तरह हर साइज की पूरी या आवक्ष मूर्तियोँ को विभिन्न आकार बाजार मेँ दो तीन हजार से लेकर काफी महंगे तक बिक रहे हैँ- किस धातु के बने हैँ इस पर भी कीमत तय होती है. और तस्व्वीरोँ का तो पूरा बाजार ही सजा है जो पच्चीस डालर से लेकर सौ डालर और व्यावसायिक इस्तेमाल यानि पत्रिकाओँ के इस्तेमाल मेँ उससे भी कई गुना ज्यादा दाम तक हैँ. गान्धी की काफी सारी तस्वीरेँ कापीराइट के बाहर आ गई हैँ लेकिन अभी भी आधी से ज्यादा तस्वीरोँ पर किसी न किसी तरफ के ‘फरेब’ से कापीराइट हासिल कर लिया गया है या दावा किया जाता है.
अब जिन विदेशी कैमरामैन/वूमेन ने तस्वीर लेकर बेचा या अब भी उनके कापीराइट होल्डर बेच रहे हैँ तो उनका दावा तो मानना होगा लेकिन काफी सारा दूसरा खेल भी हुआ है और जारी है.और इसी के तहत जब गान्धी के पौत्र कनु गान्धी, जिनका गान्धी के आखिरी आठेक साल की तस्वीरोँ पर एकाधिकार सा है, की कुछ तस्वीरोँ का इस्तेमाल राजमोहन गान्धी और नारायण देसाई की किताबोँ मेँ हुआ तो उनसे रायल्टी की मांग का कानूनी नोटिस आ गया. यह नोटिस जर्मन कलेक्टर पीटर रुहे मे दिया था जिन्होँने बरसोँ गान्धी के आसपास के लोगोँ से अपने गान्धी प्रेम के नाम पर गान्धी से जुडी चीजेँ लेने और खरीदने का उपक्रम चलाया और आज भी चला रहे हैँ और अब बेचना भी चाहे किया है. गान्धी की प्रेरणा से ही कैमरे को माध्यम बनाने वाले कनु ने गान्धी की हत्या के बाद कैमरा छोड दिया था और गुजरात की एक संस्था से जुडकर रचनात्मक काम करते थे. उनकी पत्नी आभा, जिनकी गोद मेँ गान्धी ने आखिरी सांस ली थी, भी साथ ही काम करती थीँ. वर्षोँ तस्वीर और निगेटिव सम्भालते हुए ये लोग पस्त थे. कनु की मौत अचानक एक तीर्थयात्रा मेँ हुई. रुहे बरसोँ से इस दम्पती को फोटो देने के लिए राजी करने मेँ लगे थे. कनु की मौत के बाद आभा ने यह सब कुछ उठाकर उन्हेँ सौप दिया. क्या लेन देन हुआ कोई नहीँ जानता.
लेकिन रुहे का दावा है कि वे कमाई का आधा हिस्सा इस परिवार को, जिसका अधिकार अभी गीता मेहता के पास है, देते हैँ, और बाकी आधे मेँ प्रोमोशन और उनका हिस्सा है.1986 मेँ कनु की मौत हुई थी और 1998 से उन्होँने इनकी तस्वीरोँ की (जो श्वेत-श्याम ही हैँ) अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनी और बिक्री शुरु की. उनके साइट पर काफी तस्वीरेँ और उनकी कीमत लिखी है. उनसे कुछ तस्वीरेँ लेकर दूसरे भी बेच रहे हैँ. ऐसे और लोग भी धन्धे मेँ आते जा रहे हैँ क्योंकि प्रदर्शनी और नीलामी मेँ रिकार्ड कीमत मिलने लगी है. 2012 मेँ जब उसने गान्धी की घडी, चश्मा, चश्मे का डिब्बा, प्लेट और लकडी का कटोरा (जो जेल से उपहार मेँ मिला था) को 18 लाख डालर मेँ बेचा तब हंगामा मचा और इसे लाने की रेस मेँ हमारे ‘राष्ट्र और गान्धी प्रेमी’ विजय माल्या भी हैँ, यह प्रचारित हुआ. फिर सबका ध्यान गया कि ये चीजेँ बाजार मेँ कैसे पहुंच गईँ, तो मालूम हुआ कि साबरमती और सेवाग्राम आश्रम के मैनेजर नारणदास गान्धी के दूसरे पुत्र पुरुषोत्तम गान्धी ने (जो कनु गान्धी से छोटे थे) भी काफी चीजेँ पीटर रुहे को सौंपी हैँ. क्या सौदा हुआ, यह ज्ञात नहीँ है. पर पीटर रुहे ने गान्धीवादी विद्वान और साबरमती ट्रस्ट से जुडे त्रिदीब सुहृद को उनके पास मौजूद गान्धी से जुडी सामग्री (जो निश्चित रूप से बहुत कम है) के लिए 5.5 करोड रुपए की पेशकश करके एक अन्दाजा तो दे ही दिया कि वह यहाँ से किस रेट पर चीजेँ खरीद रहे हैँ. गान्धी के पडपोते तुषार गान्धी का दावा है कि रुहे ने उनको 24.75 करोड रुपए मेँ अपने पास मौजूद सारी चीजेँ देने की पेशकश की थी.
पुरुषोत्तम और कनु तब गान्धी के पास रहे जब टालस्टाय फार्म बना था, बल्कि प्रुषोत्तम तो वहीँ पैदा हुए. उनके पिता नारणदास, माँ जानकी बहन और चाचा ताऊ सभी गान्धी के प्रति समर्पित और उनके काम मेँ जीवन खपाने वाले लोग थे. कनु, आभा और पुरुषोत्तम भी अपने भर गान्धी का ही काम करते रहे पर किस आशा निराशा मेँ उन्होँने यह बाजार लगवा दिया इसकी कोई सफाई अभी तक उनके कापीराइट होल्डरोँ की तरफ से भी नहीँ आया है. और पीटर रुहे का दावा है कि उनके पास गान्धी से जुडी 248 कलात्मक वस्तुएँ, 2947 पत्र, 1583 फोटो, 31 कार्टून, 407 दस्तावेज और 513 प्रकाशनोँ की दुर्लभ प्रतियाँ हैँ. इनकी कुल जमा कीमत और महत्व क अन्दाजा लगाना भी आसान नहीँ है क्योंकि पिछले दिनोँ हरिलाल को लिखी गान्धी की दो ऐसी चिट्ठियाँ बाजार मेँ आईँ और हंगामा मचा कि गान्धी ने हरिलाल पर अपनी बेटी ही से बलात्कार का आरोप लगाया था. बाद मेँ इसमेँ अनुवाद का दोष और गुजराती का ज्ञान न होने की सफाई आई लेकिन तब तक धन्धा वाले अपना काम कर चुके थे.पर दोष सिर्फ धन्धे वालोँ का क्योँ देँ. ना ही हम गान्धी प्रेम के नाम और उसके प्रचार पर इस धन्धे की अनदेखी कर सकते हैँ. पर अपने यहाँ गान्धी और उनसे जुडी चीजोँ की कितनी पूछ रखी गई है, उसे भी न भुलाएँ.
कनु और आभा के पास क्या खजाना था या कनु ने कैसे यह खजाना जुटाया था (क्योंकि उन्हेँ नो कास्ट, नो फ्लैश ऐंड नो पोजिन्ग की शर्त पर ही फोटोग्राफी की इजाजत गान्धी ने दी थी) यह किसी को याद नहीँ रहा. गान्धी की जान लेने वाली गोली संग्रहालय से गायब हो जाए और पत्ता तक नहीँ खडकता है. पिछले दिनोँ नवजीवन को लिखी काका कालेलकर, मणिबहन और मोरारजी की 275 चिट्ठियाँ एक कबाडी के यहाँ मिलने की खबर से हंगामा मचा लेकिन फिर कुछ नहीँ हुआ. साल भर पहले अकारण राजघाट पर ताला जड दिया गया और पूछने पर हर तरह के बहाने बने. गान्धी का अपमान करने वाले संसद और सरकार मेँ बैठे हैँ. फिर हमारे लिए भी पीटर रुहे पर सवाल उठाना मुश्किल है, उनके खिलाफ कानूनी पहल और उनके तथा उन जैसोँ के ‘कब्जे’ वाली चीजोँ को आजाद कराने की पहल तो बहुत ही दूर की बात है. लेकिन राजमोहन गान्धी और नारायण देसाई जैसोँ को भी गान्धी की तस्वीर और वह भी कनु द्वारा खींची हुई, इस्तेमाल करने पर कानूनी नोटिस मिलेगा तो यह ज्यादा शर्म की बात है.