— प्रोफेसर राजकुमार जैन —
पुराने संसद भवन के इतिहास में अनेकों बहस, भाषण, चर्चाओं का रिकॉर्ड दर्ज है। परंतु 4 साल सांसद रहे डॉ राममनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ आचार्य जे बी कृपलानी द्वारा पेश किए गए अविश्वास प्रस्ताव पर जो भाषण दिया, उसमें देश के हालात का जो नक्शा, तथ्यों, तर्कों आकड़ों को देकर पेश किया, खासतौर से जब कहा कि
“यह हमेशा याद रखा जाए कि 27 करोड़ (उस समय की आबादी का लगभग 70% ) तीन आने (20 नए पैसे) रोज के खर्चे पर आज जिंदगी चला रहे हैं।”
“मैं आपसे बहुत नम्र निवेदन करना चाहता हूं कि हिंदुस्तान की औरतें, हरिजन, आदिवासी, पिछड़ी जातियां, धार्मिक अल्पसंख्यकों को और शूद्र- वह जो पांच बड़े वर्ग हैं जिनकी आबादी कुल मिलाकर 90 सैकड़ा होती है, उनको जब तक आप विशेष अवसर नहीं देंगे तब तक देश का गंदा पानी साफ नहीं हो सकता है। समान अवसर के सिद्धांत को लेकर सारे लोग चल रहे हैं, रूस और फ्रांस वाले सिद्धांत, लेकिन मैं अर्ज करना चाहता हूं कि विशेष अवसर के सिद्धांत को हमें अपनाना पड़ेगा। योग्यता और अवसर इस समय कुछ ही लोगों में सिकुड़कर रह गए हैं।”
परंतु प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लोहिया की बात का खंडन किया, इसका प्रतिवाद किया। संसद की कार्यवाही में दर्ज वह बहस आज भी प्रासंगिक है, हकीकत है, मील का पत्थर है।
डॉ लोहिया के कथन पर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा, “डॉ राममनोहर लोहिया ने हिसाब निकाला है कि देश की 60% जनता की प्रति व्यक्ति औसत आमदनी तीन आने रोज है। मैं नहीं जानता कि वे इस नतीजे पर कैसे पहुंचे। इस गणित में उन्होंने बहुत सारी गलतियां की हैं, प्रति परिवार और प्रति व्यक्ति की आमदनी में उन्होंने भ्रम पैदा कर दिया है। अत्एव उन्होंने इसे 5 से भाग दे दिया। उनका (डॉ लोहिया) का यह कहना कि देश के 27 करोड़ व्यक्तियों की यह आय है। यह बात पुस्तकों में उपलब्ध तथ्यों के आधार पर बिल्कुल गलत है।”
प्रधानमंत्री के इस वक्तव्य के बाद डॉ लोहिया ने कहा अध्यक्ष महोदय, “क्या प्रधानमंत्री ने हिसाब लगा लिया है की 5 गुना ज्यादा बता रहा हूं।”
जवाहरलाल नेहरू : जी हां, जो गलती डॉ लोहिया ने की है, वह यह है कि पर कैपिटा इनकम को पर फैमिली कर दिया है। वह घबरा गए और फैमिली को उन्होंने पांच का गिना और उस इनकम को 5 से डिवाइड कर दिया।
डॉ लोहिया : अच्छा हिसाब लगा लीजिए कि 27 करोड़ आदमियों की आमदनी तीन आने प्रति आदमी के कितने आती है, और एक रुपए के हिसाब से कितनी आती है। इसमें प्रधानमंत्री जी बड़ी भारी भूल कर रहे हैं।
जवाहरलाल नेहरू : मैंने हिसाब लगा लिया। इस बारे में मेरे पास एक इकानॉमिस्ट साहब का नोट है जो इस प्रकार है :
डॉ लोहिया प्रतिव्यक्ति 25 रु मासिक की आय को परिवार की आय मान बैठे हैं। उनके सारे निष्कर्ष इस भ्रांति पर आधारित है, इसके परिणामस्वरूप उन्हें गलत नतीजे प्राप्त हैं।
डॉ लोहिया : किसका नोट है?
श्री नेहरू : एक साहब का है।
डॉ लोहिया : तो उस साहब से शाम के वक्त बात कर लीजिएगा। बड़ा पछताएंगे आप।
श्री नेहरू : पछताएंगे?
डॉ लोहिया : खेती-कारखानों का ज्ञान आपका बड़ा कम है।
डॉ लोहिया : अध्यक्ष महोदय, एक ऐसा सवाल उठाया गया है तीन आने और 15 आने का, जिसके बारे में मैं एक बात कहना चाहता हूं –
तीन आने और 15 आने वाली बात अगर सही है तो मैं इस सदन से निकल जाऊंगा और अगर वह गलत है तो उनको प्रधानमंत्री बने रहने का कोई हक नहीं है।
डॉ लोहिया : मैं तीन आने और 15 आने वाली बात बताना चाहता हूं। (अंतरबाधा) यह क्या मजाक है? मैं इस झुंड का हुकुम नहीं मानूंगा l (कांग्रेसी सदस्य हो हल्ला मचा रहे थे) तीन आने और 15 आने वाली चुनौती को स्वीकार करो l
सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आ रहा था, डॉ लोहिया बार-बार मांग कर रहे थे कि मेरे सवाल का उत्तर दो।
बहस में भाग लेते हुए सरकार की ओर से योजना मंत्री श्री गुलजारीलाल नंदा ने कहा, “अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के दौरान डॉ लोहिया ने कहा था देश के 27 करोड़ व्यक्ति तीन आना रोज पर बसर कर रहे हैं। नेशनल सैंपल सर्वे के जो ताजा आंकड़े उपलब्ध हैं, सितंबर 1961 से जुलाई 1962 तक, उससे पता चलता है की 10% ग्रामीण आबादी 8 रुपए प्रतिमाह प्रतिव्यक्ति और शहरों में 10 रुपए प्रतिव्यक्ति प्रतिमाह अर्थात 4.3 आना औसत प्रतिदिन पर बसर करती थी। डॉ लोहिया के आंकड़े 5% आबादी के लिए भी सही नहीं हैं। 60% आबादी की आमदनी 7.5 आना प्रतिदिन प्रतिव्यक्ति औसत है।
अध्यक्ष महोदय : डॉ राममनोहर लोहिया ने भी लिखा है कि इस पर डिस्कशन हो। अभी उन्होंने इसका जिक्र किया। अब और उसका मताबला हो रहा है। मैं देखूंगा कि कोई मौका हुआ तो चर्चा हो जाएगी।
डॉ लोहिया : मैं एक अर्ज आपसे करूं, अध्यक्ष महोदय, मंत्री महोदय ने जो गलतबयानी पहले की थी उससे 10 गुनी ज्यादा गलतबयानी आज कर रहे हैं।
अध्यक्ष महोदय : अगर कोई गलत बयान है तो मुझे लिख दें।
डॉ लोहिया : मैंने अपने खत में आपको न्यूनतम आमदनी और औसत आमदनी का फर्क बताया है जिसे प्रधानमंत्री बिल्कुल नहीं जानते हैं।
डॉ राममनोहर लोहिया ने इस बहस पर जोर देते हुए लोकसभा के स्पीकर को खत लिखा कि मेरे सवाल पर बहस की जाए तो अध्यक्ष ने कहा जब बाद में डिस्कशन होगा तो आपको वक्त मिलेगा।
अध्यक्ष ने आगे कहा कि मैंने आपकी चिट्ठी को मिनिस्टर के पास उसके जवाब के लिए भेजा है।
6 सितंबर 1963 को डॉ लोहिया ने तीन आना बनाम 15 आना की बहस को राष्ट्रीय आय का वितरण पर हो रही बहस में फिर छेड़ा।
डॉ लोहिया ने कहा, अध्यक्ष महोदय, अभी तक इस बहस का नतीजा इतना निकला है कि मैंने 27 करोड़ हिंदुस्तानियों के लिए तीन आने रोज की आमदनी कही, प्रधानमंत्री ने 15 आने रोज की और योजना मंत्री ने 7:30 आने रोज की। अब प्रधानमंत्री और योजना मंत्री आपस में निपट लेंगे कि दोनों में कौन सही है।
मेरी बहस यह नहीं है कि हिंदुस्तानियों की और खास तौर से 27 करोड़ की आमदनी तीन आने या साढ़े तीन आने है। बल्कि यह देश इतना गरीब है जिसका अंदाजा इस सरकार को नहीं है,और इस गरीबी को दूर करने के लिए जब तक इस सरकार में भावना नहीं आएगी तब तक कोई अच्छा नुस्खा तैयार नहीं हो सकता।
डॉ लोहिया द्वारा की गई इस बहस का संसद पर बड़ा गहरा असर हुआ। डॉ लोहिया ने कहा भी कि मेरे कांग्रेसी मित्र भले ही यहां चुप रहे परंतु घर पर जाकर जरूर कहेंगे कि लोहिया ने सही बात कही। बहस की गंभीरता इस स्तर तक थी कि कई माननीय सदस्यों श्री बृजराज सिंह, बुद्धप्रिय मौर्य इत्यादि ने अपने समय में कटौती कर कर डॉ लोहिया को बोलने का मौका दिया।
अब जरा आज के संसद के माहौल को देखिए। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि जिस तरह डॉ लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को गलत बयान देने के लिए जिम्मेदार ठहराया और जिस शालीनता के साथ जवाहरलाल नेहरू ने लोहिया के सवाल का जवाब दिया क्या आज यह संभव है?
आजादी की जंग में बरसों बरस बरतानिया हुकूमत की जेल की सीखचों के पीछे गुजारने वाले गांधी के यह दोनों चेले ही कर सकते थे।
संसद की कार्यवाही में लतीफे, लफ्फाजी, भावुकता, गद्दीनशीन नेताओं के कसीदे, आरोप-प्रत्यारोप, ऊंची आवाज, आंखें तरेर कर हाथ उछालते हुए अनेकों सांसदों की करामात हमने संसद की कार्यवाही में देखी है, पर डॉ लोहिया का वह भाषण संसद के इतिहास में दहकता हुआ सूर्य है।