बिहार ने दिखाई महिला सशक्तीकरण की राह

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— प्रभात कुमार —

हिला आरक्षण विधेयक पर लगभग सर्वसम्मति रही। लेकिन राज्य के पैमाने पर देखें तो महिला सशक्तीकरण का अगुआ पूरे देश में बिहार रहा है। 2005 में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की नीतीश कुमार के नेतृत्व में सरकार बनी। उसके अगले साल 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिला आरक्षण बिल लाकर पंचायतों व निकायों में महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण दिया।

बिहार देश का पहला राज्य है जिसने महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं में 50 फीसद आरक्षण दिया। फिर इसके अगले साल 2007 में नगर निकायों में भी महिलाओं को 50 फीसद आरक्षण देकर महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में पूरे देश को राह दिखाई। नीतीश कुमार चाहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ रहे या महागठबंधन के साथ, महिला सशक्तीकरण के मामले में वह अपने इरादे पर दृढ़ रहे। 2013 में बिहार पुलिस में भी महिलाओं को 35 प्रतिशत आरक्षण दिया।

इसके पहले भी 2006 में प्रारंभिक शिक्षकों की बहाली में महिलाओं के लिए 50 फीसद पद आरक्षित किया था। 2007 में तो उन्होंने सभी सरकारी नौकरियों में महिलाओं को 35 फीसद आरक्षण दे दिया। अब तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य के सभी मेडिकल और इंजीनियरिंग के साथ-साथ स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में भी दाखिला लेने के लिए 33 फीसद सीट छात्राओं के लिए आरक्षित कर दिया है।

बिहार के एक पिछड़े वर्ग से आने वाले नीतीश कुमार इस देश में कई मामले में रोल मॉडल रहे हैं। केंद्र की सत्ताधारी पार्टी और मीडिया भले इसे स्वीकार नहीं करें लेकिन यह जमीनी सच्चाई है। यह और बात है कि दायरा छोटा होने और एक छोटी पार्टी के मुखिया होने के कारण उनके कार्यों को वह ऊंचाई नहीं मिली। उसका प्रचार-प्रसार भी उतना नहीं हुआ।

आज भी देश और दुनिया में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार यह बालिका साइकिल योजना की चर्चा होती है। यह योजना बालिका सशक्तीकरण योजना के रूप में पूरे देश के लिए एक मिसाल बनी। पोशाक योजना भी अच्छी पहल रही। खासकर लड़कियों की पढ़ाई के लिए जिस तरह से नीतीश कुमार ने प्रोत्साहन योजनाओं की शुरुआत की वह बिहार के लिए एक क्रांति से कम नहीं।

पंचायती राज व्यवस्था और नगर निकाय में महिला आरक्षण के साथ-साथ अति पिछड़ी जातियों को दिया गया आरक्षण के साथ-साथ एकल पद पर भी आरक्षण की शुरुआत बिहार से हुई। बिहार ने जातीय जनगणना की पहल करके ओबीसी के प्रति अपने संकल्प को प्रदर्शित किया है। यह पहल आने वाले दिनों में अन्य राज्यों और पूरे देश के लिए मार्गदर्शक साबित होगी। खासकर महिला आरक्षण विधेयक पर बहस के समय जिस तरह से संसद में ओबीसी और जातीय जनगणना का मामला उठा वह बिहार के लिहाज से कम बड़ी उपलब्धि नहीं थी।

वैसे, जीविका भी महिला सशक्तीकरण के क्षेत्र में एक अच्छी पहल रही। वैसे ही जल जीवन हरियाली ग्लोबल वार्मिंग को देखते हुए एक अच्छा प्रयास रहा। इसी क्रम में हर घर बिजली और घर-घर नल जल भी देश के लिए एक मिसाल बना। लेकिन इसमें व्यापक भ्रष्टाचार के कारण जमीनी सफलता वैसी नहीं मिली। घर-घर बिजली योजना में भी व्यापक भ्रष्टाचार और गड़बड़ी की शिकायतें सामने आयीं। जल जीवन हरियाली निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बड़ी सोच और जलवायु परिवर्तन को देखते हुए एक ऐतिहासिक पहल है, लेकिन जमीनी स्तर पर अभी भी इस योजना में अधिकारियों पर बड़ी नकेल की जरूरत है।

जीविका मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की बेहद महत्वाकांक्षी योजना है, लेकिन लालफीताशाही के कारण गरीबों तक इसका सही ढंग से लाभ नहीं पहुंच रहा। योजना में पारदर्शिता का घोर अभाव है। समूह से प्राप्त होने वाली राशि की ब्याज दर और बचत में कई गड़बड़ियां हैं। इसकी बैंकिंग प्रणाली को अगर सुदृढ़ कर दिया जाए तो ग्रामीण क्षेत्र के गरीबों के लिए बड़ी मददगार योजना हो सकती है। जिससे ग्रामीण क्षेत्र में फैल रहे बंधन बैंक जैसे माइक्रो फाइनेंसिंग कंपनियों और उनकी ऊंची ब्याज दर के द्वारा होने वाला शोषण रुक सकेगा।

निश्चित तौर पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल से महिला सशक्तीकरण, बालिकाओं के सशक्तीकरण और कुछ जमीनी योजनाओं से देश को भी दिशा मिली है। लेकिन इसकी चर्चा देश दुनिया में जिस तरह से होनी चाहिए थी वह नहीं हो पायी है। वैसे, इसका भी कारण है। नीतीश कुमार के साथ गठबंधन सरकार की मजबूरी रही है और उनके दल की राष्ट्रीय पहचान इतने वर्षों में भी नहीं बन पायी। यह सच है कि मुख्यमंत्री की सोच अच्छी रही लेकिन उसे जमीन पर सही ढंग से अमली जामा पहनाने में कसर रही।

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