स्वभाव से बहुत लचीले पर मूल्यों को बदलने वालों के लिए बहुत कठोर थे गांधीजी

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Gandi And Abdul Gaffar Khan

kumar prashant

— कुमार प्रशांत —

गांधीजी हर व्यक्ति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते थे। उनमें गजब का लचीलापन था। पर एक जगह पर आकर वे कठोर भी थे, जहां पर कोई उसकी आस्था और बदलने की कोशिश करे। इसीलिए आस्था और मूल्यों को बदलने के मुद्दे पर गांधी पहाड़ की तरह अडिग दिखाई देते थे।

गांधीजी लोगों से केवल इस प्रकार व्यवहार नहीं करते थे कि वे किसी समुदाय के सदस्य हैं, बल्कि उनके साथ काम करने वालों का यह कहना है कि वे हर किसी से एक व्यक्ति के रूप में रिश्ता कायम करते थे। हर व्यक्ति अलग है, उसकी जरूरतें अलग अलग हैं और वे उन जरूरतों का ख्याल रखते हुए उसकी उपयोगिता को समझते थे। अपने खुद के आग्रहों को छोड़ते हुए वे आश्रम में रहने आये बहुत से लोगों से कहते थे कि तुम यह करो हालांकि आश्रम का नियम यह है और आश्रम वाले इस बात को कभी नहीं समझेंगे लेकिन तुम अपना ख्याल छोड़ना मत। व्यक्ति को बुनियाद मानने की उनकी यह सोच गांधी के चिंतन की भी बुनियाद है।

गांधी यह भी समझते हैं कि व्यक्ति केवल व्यक्ति नहीं है।ये व्यक्ति कुछ और भी है मसलन ये मुसलमान भी है, ईसाई भी है, जैन भी है, उसको वे नजरअंदाज नहीं कर रहे हैं। अगर वो जिस परिस्थिति में मिलने आया है उस परिस्थिति में उसका मुसलमान होना महत्वपूर्ण है तो वे उस पक्ष को नजरअंदाज नहीं करते।

गांधीजी खुद आधी धोती पहनते थे जब ज्यादा ठंड पड़ती थी तो एक चादर ओढ़ लेते थे। लेकिन उन्होंने कांग्रेस की वर्किंग कमेटी में ऐसा कोई नियम नहीं बनाया था कि सभी आधी धोती पहनें। गांधी के बगल में नेहरू बैठते थे जो पायजामा और अचकन पहनते थे, जिसमें वे गुलाब का फूल भी लगाते थे। दूसरी ओर मौलाना आजाद बैठते थे और मौलाना कांग्रेस वर्किंग कमेटी के एकमात्र सदस्य थे, जो गांधीजी के सामने सिगार पीते थे। एक बार नेहरू क्यूबा की यात्रा पर गए वहां किसी ने उन्हें मंहगा सिगार का पैकिट गिफ्ट में दिया। क्यूबा की सिगार बड़ी बेशकीमती मानी जाती है। जब नेहरू वहां से लौटकर आये तो वे गांधीजी को दिखाते हैं कि देखो बापू मुझे गिफ्ट में सिगार का पैकिट भी मिला है। गांधीजी ने तुरन्त सिगार का पैकिट उठा लिया और कहा कि इस पैकिट को मैं रख लेता हूँ और मौलाना को दे दूंगा, उन्हें सिगार बहुत पसंद है।

गांधीजी का लचीलापन देखिए कि उनके सामने कोई सिगरेट या सिगार पिये इसके लिए उसको बड़ी हिम्मत की जरूरत होगी क्योंकि वे तो किसी से मना नहीं करते। लेकिन वे ध्यान रखते हैं कि किस व्यक्ति को क्या पसंद है।

सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान जब गांधीजी के सेवाग्राम में आये तो गांधीजी ने बाजार से उनके लिए मांसाहारी भोजन मंगवाया। उन्होंने कहा कि ये आदमी रात को खाना कैसे खायेगा? इसको तो आदत है यही खाने की। जबकि आश्रम में मांसाहार वर्जित था। लेकिन सीमान्त गांधी के लिए उन्होंने इस नियम को लचीला बना दिया। व्यक्ति के बारे में कितना लचीलापन है यह समझने की जरुरत है। वे किसी के खानपान को प्रतिबंधित करने को पाप समझते थे।

महाराष्ट्र के एक बड़े नेता थे मैं नाम नहीं ले रहा हूं जो कांग्रेस वर्किंग कमेटी में थे। कुछ लोगों ने गांधीजी से कहा कि आपने किसको वर्किंग कमेटी में ले रखा है ये तो शराब पीता है। गांधी ने पूछा कि शराब कब पीता है? उत्तर मिला कि रात में पीता है। गांधीजी ने कहा कि ठीक है रात में पीता है, तो दिन में उससे काम लिया जा सकता है न। कल को जब वे शराब छोड़ देंगे तो और बड़ी जगह हो जाएगी उनके लिए। क्योंकि वे बड़े वकील भी थे।
हर आदमी का इस्तेमाल है मेरे पास। इतना लचीलापन है उनमें। वे वह हर व्यक्ति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं, पर एक जगह पर आकर वे कठोर भी हैं ।जहां पर कोई उसकी आस्था बदलने की कोशिश करे। वहां वे बहुत कठोर है। इसी लिए आस्था बदलने के मुद्दे पर गांधी पहाड़ की तरह अडिग दिखाई देते हैं।

एक प्रसंग बड़ा रोचक है 11 जनवरी 1948 को दिल्ली के कुछ अल्पसंख्यक समुदाय के लोग गांधीजी से मिलने बिड़ला हाउस पहुंचते हैं। दिल्ली में हिंसा का तांडव चल रहा था ऐसे माहौल में अल्पसंख्यक प्रतिनिधिमंडल ने गांधीजी से कहा कि महात्मा जी हमने आप पर बहुत भरोसा करके देख लिया, लेकिन अब बहुत हो चुका। अब हम ऐसे असुरक्षा के माहौल में भारत में नहीं रह सकते । आपसे हाथ जोड़कर विनती है कि आप हमारा सुरक्षित रूप से पाकिस्तान जाने का इंतजाम करवा दीजिए। गांधीजी एकदम चुप रहते हैं एक शब्द भी नहीं बोलते । लेकिन उनके दिल को बड़ा धक्का लगता है।

हिंसाग्रस्त दिल्ली में गांधीजी 13 जनवरी से 18 जनवरी 1948 तक अपने जीवन के आखिरी अनशन पर बैठते हैं। उपवास के तीसरे दिन गांधीजी सरदार पटेल को दिल्ली की बिगड़ती हुई कानून व्यवस्था पर फटकार लगाते हुए कहते हैं कि तुम वो सरदार नहीं हो जिनसे मैं खेड़ा सत्याग्रह में मिला था, तुम बदल गए हो। 18 जनवरी को सभी दलों के नेता डॉ राजेन्द्र प्रसाद के नेतृत्व में उन्हें लिखित में वचन देते हैं कि दिल्ली में अब शांति हो चुकी है। आप अपना अनशन खत्म कर दीजिए। आपका जिंदा रहना बहुत जरूरी है। अब हम सभी भाई भाई की तरह शांति से रहेंगे।

19 जनवरी को वे मुसलमान नेता गांधीजी के पास फिर से बिड़ला हाउस आते हैं और वे नेता कुछ बोलें इससे पहले गांधीजी उनसे कहते हैं कि मैंने नेहरू और माउन्टबेटन से कहकर तुम लोगों के सुरक्षित पाकिस्तान पहुंचाने का इंतजाम कर दिया है। जल्दी बताओ किस तारीख को जाना है? मुसलमान नेता गांधीजी से कहते हैं कि महात्मा जी आपके अनशन से दिल्ली में शांति हो चुकी है, हम एकदम सुरक्षित हैं। अब हम भारत में ही रहेंगे। गांधीजी ने उनसे कहा कि उस दिन मैंने तुमसे एक शब्द भी नहीं बोला था , चुपचाप तुम्हारी बातें सुनता रहा, आज मेरी बारी है। इस बुड्ढे की एक बात हमेशा के लिए गांठ बांध लेना कि मुसीबत के समय देश छोड़ने वालों को देश कभी माफ नहीं करता।

इस तरह हम देखते हैं कि आपनी पूरी जिंदगी में गांधीजी हर व्यक्ति के साथ अपना जुड़ाव महसूस करते हैं, पर एक जगह पर आकर वे कठोर भी हैं। जहां पर कोई उसकी आस्था बदलने की कोशिश करे, वहां वे बहुत कठोर दिखते है। इसीलिए आस्था बदलने के मुद्दे पर गांधी, पहाड़ की तरह अडिग दिखाई देते हैं। गांधीजी उन चीजों के लिए कठोर हैं जहाँ कोई उनके मूल्यों को, उनकी आस्था को बदलने की कोशिश करे। ऐसे थे हमारे गांधीजी।

(इस लेख के प्रसंग कुमार प्रशांत के भाषण से लिये गए हैं)

Gandhi Darshan – गांधी दर्शन, 13 सितम्बर 2024

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