— राहुल देव —
भारत के मुख्य न्यायाधीश के आधिकारिक निवास पर प्रधानमंत्री का पहुँच कर उनके परिवार के साथ गणेश चतुर्थी की पूजा में शामिल होने का मुद्दा हमारे गणतंत्र के साथ-साथ न्यायिक स्वतंत्रता की आत्मा पर भी गहरा और दीर्घकालिक प्रभाव डालने वाला है।
भारत के एक मुध्य न्यायाधीश और एक प्रधानमंत्री के बीच मुख्य न्यायाधीश के आवास पर सार्वजनिक रूप से जो कुछ भी होता है, वह महज बुनियादी शिष्टाचार और त्योहारों के साधारण उत्सव के अंतर्गत नहीं आता है। वे महज़ दो आम ‘इंसान’ नहीं हैं। वे जिन पदों पर हैं वे बेहद असाधारण हैं, वास्तव में एक लोकतांत्रिक गणराज्य में सबसे असाधारण। इस तथ्य को न तो वे और न ही हम नजरअंदाज कर सकते हैं। यहां कई बातों पर विचार करना होगा।
यह स्पष्ट रूप से सावधानीपूर्वक कोरियोग्राफ किया गया कार्यक्रम है। यह कैसे घटित हुआ? क्या सीजेआई ने पीएम को आमंत्रित किया? क्या वे अपने संबंधित पदों पर पहुंचने से पहले से ही इतने अच्छे पुराने पारिवारिक मित्र माने जाते हैं? क्या प्रधान मंत्री पहले भी सीजेआई के घर पर ऐसे धार्मिक और सामाजिक समारोहों में शामिल होते रहे हैं, और मुख्य न्यायाधीश प्रधानमंत्री निवास पर भी? मेरी जानकारी में, नहीं।
क्या प्रमं. ने खुद को आमंत्रित किया? शायद वे दोनों फोन पर सामान्य पर बातचीत कर रहे थे, जो अपने आप में बहुत असामान्य नहीं होगा, जिसके दौरान मु.न्याया. ने यूँ ही अपने घर पर पूजा का जिक्र किया और कहा, “सर, आप हमारे यहाँ क्यों नहीं आते और पूजा में शामिल हो जाते? ” और प्रधानमंत्री ने प्रसन्नता से कहा, “क्यों नहीं? यह एक अच्छा विचार है। आता हूँ।”
यह दोस्तों के बीच एक सामान्य बातचीत है। सिवाय इसके कि इसमें शामिल व्यक्ति सामान्य नहीं हैं।
उनकी औपचारिक और अनौपचारिक भूमिकाओं में स्पष्ट रूप से परिभाषित लंबे समय से स्थापित मानदंड हैं। संवैधानिक रूप से निर्धारित ‘शक्तियों के पृथक्करण’ के स्पष्ट सिद्धांत के अलावा, 1971 में सर्वोच्च न्यायालय की पूर्ण बैठक में स्पष्ट रूप से उच्च न्यायपालिका के लिए एक मूल्य कोड निर्धारित किया गया है। वह संलग्न है। किसी स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं है।
‘न्यायिक जीवन के मूल्यों के पुनर्कथन’ में सबसे प्रभावी वाक्य है,
“एक न्यायाधीश को अपने कार्यालय की गरिमा के अनुरूप एक हद तक असंगता (aloofness) का व्यवहार करना चाहिए।”
वीडियो में हम जो देख रहे हैं वह ‘न्यायिक असंगता’ की संपूर्ण और सार्वजनिक उपेक्षा है। हम जो देख रहे हैं वह एक स्पष्ट व्यक्तिगत निकटता है जिसे सावधानीपूर्वक रिकॉर्ड किया गया है और गर्व से दुनिया के साथ साझा किया गया है।
मान लेते हैं कि श्री मोदी और श्री चंद्रचूड़ व्यक्तिगत मित्र हैं। इसमें कोई नुकसान नहीं। आगमन और पूजा को किसने रिकॉर्ड किया? सीजेआई के वीडियोग्राफर ने या प्रधानमंत्री के? क्या पीएम वीडियोग्राफर को अपने साथ ले गए थे? क्या वह सभी व्यक्तिगत मुलाकातों में ऐसा करते हैं और उन्हें दुनिया के साथ साझा करते हैं? क्या सीजेआई ऐसा करते हैं?
पिछले मुख्य न्यायाधीशों के आवास पर हमने ऐसे कितने दृश्य देखे हैं? क्या वे कम धार्मिक थे? क्या उनके दोस्त कम थे? कितनों ने अपने घरों में ऐसी घटनाओं के दृश्य साझा किए? मैं कहूंगा, बहुत कम। मुझे ऐसी कोई तस्वीर याद नहीं।
टोपी पारंपरिक महाराष्ट्रीय संस्कृति का हिस्सा है। प्रधानमंत्री महाराष्ट्रीय नहीं हैं लेकिन टोपी पहने हुए हैं जबकि सीजेआई, जो महाराष्ट्रीय हैं, टोपी नहीं पहने हैं। ऐसा कैसे? क्या प्रधानमंत्री अपनी सभी पूजाएं टोपी पहनकर करते हैं? हम जानते हैं कि वह ऐसा नहीं करते। तो अब क्यों?
क्या यह वास्तव में दो पारिवारिक मित्रों की एक रोजमर्रा की तस्वीर है जो एक साथ त्यौहार मनाते हुए अपने “व्यक्तिगत धार्मिक आस्था का पालन करने के संवैधानिक अधिकार” का प्रयोग कर रहे हैं?
क्या हम वास्तव में इस स्पष्ट राजनीतिक महत्व/संदेश को नजरअंदाज कर सकते हैं कि यह वीडियो उन महाराष्ट्रीय मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए बनाया और प्रसारित किया गया है जो जल्द ही अगली विधानसभा का चुनाव करने वाले हैं?