— रमाशंकर सिंह —
आतिशी मार्लेना दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रेष्ठ( तम ) कॉलेज सैंट स्टीफ़न्स की टॉपर हैं। आगे की उच्च शिक्षा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों जैसे आक्सफोर्ड युनिवर्सिटी से पूरी छात्रवृत्ति पाकर हुई और विरले छात्रों को मिलने वाली सुविख्यात रोढ्स स्कॉलरशिप भी मिली।
आतिशी के पंजाबी सिख पिता साम्यवादी विचार से प्रभावित थे इसलिये उन्होंने अपनी पुत्री का नाम मार्क्स और लेनिन के शब्दों को जोड़कर मार्लेना बनाया ! आतिशी का भावार्थ आप जानते ही हैं – क्रांतिकारी !
जब अन्ना हज़ारे का कथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन शुरु हुआ था तो बड़े पैमाने पर सैंकड़ों बल्कि पूरे देश में हजारों की तादाद में भारत के प्रतिभाशाली युवा दुनिया भर में अपना बड़ा काम धंधा नौकरी छोड़कर आंदोलन में जुड़े थे यह सोचकर कि अब देश में क्रांति होने वाली है और वांछित मूलभूत परिवर्तन आने वाला है। आतिशी भी उसी समय केजरीवाल की टीम का हिस्सा बनी ! कालांतर में केजरीवाल ने समूचे आंदोलन व हज़ारों सच्चे परिवर्तन आकांक्षी युवाओं को एक एक कर निकाल कर फैंक दिया और पार्टी बनाकर ख़ुदमुख़्तार व मुख्यमंत्री बन गये।
इसके बाद भी बचे खुचे लोग भी उनसे सहन नहीं हुये और प्रो आनंद कुमार, योगेन्द्र यादव, अजित झा , प्रशांत भूषण , कुमार विश्वास , खेतान , आशुतोष आदि को धकिया कर बाहर कर अपने निजी नियंत्रण की पार्टी में तब्दील कर दिया। मनीष सिसोदिया, गोपाल रॉय , संजय सिंह और आतिशी जैसे ही चंद कुछ बचे जो केजरीवाल की मनमर्ज़ी मुताबिक़ सोचते व चलते हैं। आतिशी जैसे ही पिछला चुनाव दिल्ली के सिख बहुल कालकाजी क्षेत्र से लड़ी उन्होनें अपना उपनाम बदल कर सिंह कर लिया – आतिशी सिंह।
एक नयी राजनीतिक संस्कृति का वायदा और नये क़िस्म का नेतृत्व देने की संभावना के आंदोलन का हश्र यह हुआ कि वह भी दूसरों जैसा सामान्य राजनीतिक दल बन गया । जैसे सब वैसे ही ये। कोई फ़र्क़ नहीं बचा सिवाय इसके कि पढ़े लिखे होने के नाते वे यह हिसाब लगाने में समर्थ हुये कि राज्य की कुल आय व्यय में से कितना खर्च कर बिजली पानी मुफ़्त दिया जा सकता है।
गरीब जनता के लिये बिजली पानी के बिल माफ़ कर देने से उनके मासिक पारिवारिक बजट में बड़ी राहत मिली और यही बात केजरीवाल को तीन चुनाव लगातार जितवाती रही है।
आतिशी सोचने समझने में समर्थ महिला है और उनका उर्वर दिमाग़ कुछ नये विचार क्रियान्वित कर सकता है लेकिन उनकी पार्टी का नेता इतना घाघ और स्वकेंद्रित है कि आतिशी को कठपुतली बनाकर रखना चाहेगा।
ख़ैर भविष्य की राजनीति क्या होगी इसका निर्णय आजकल मतदाताओं के साथ साथ संगठन व धनशक्ति भी करती है। देखते हैं कि आतिशी कुछ ठोस डिलीवर कर पाती हैं या स्टॉपगैप व्यवस्था ही बनी रहती है। एक तेजतर्रार सुशिक्षित खुले दिमाग़ का व्यक्ति कभी भी ऐसा कुछ कर सकता है जिससे समूचा परिदृश्य बदल जाये ! लेकिन यह बात अन्यपक्षों पर भी लागू होती है। फ़िलहाल दिल्ली का आसन्न चुनाव दिलचस्प ज़रूर हो गया है।
कामना की जाये कि आतिशी दिल्ली में अपने जनहितकारी काम का इतिहास रच सकें।