अकबरपुर में डाॅ. लोहिया के एक अभिन्न सहयोगी थे, चौधरी सिब्ते मोहम्मद नक़वी. मई, 1963 में फ़र्रुखाबाद के कांग्रेस सांसद मूलचंद के निधन के बाद उस सीट के लिए उपचुनाव घोषित हुआ था.तब आम चुनाव में पं. नेहरू से हारकर लोकसभा पहुंचने से रह गए डाॅ. लोहिया अपने उन समर्थकों के दबाव में एक बार फिर चुनाव मैदान में उतरे, जिनके अनुसार देश की जटिल होती जा रही स्थिति के मद्देनज़र उनका संसद में होना ज़रूरी था.
वे सिब्ते को प्रचार कार्य में मदद के लिए अकबरपुर से फर्रुखाबाद ले जा रहे थे तो रास्ते में पार्टी के किसी साथी ने कह दिया कि सिब्ते भाई के चलते मुसलमानों के वोट हमें आसानी से मिल जाएंगे.इतना सुनना था कि डाॅ. लोहिया ने मोटर रुकवाकर सिब्ते को उतारा और अकबरपुर लौट जाने को कह दिया.
साथियों से बोले, ‘जो भी वोट मिलने हैं, हमारी नीतियों व सिद्धांतों के आधार पर मिलें तो ठीक. किसी कार्यकर्ता के धर्म, संप्रदाय या जाति के नाते मिले तो क्या मिले! इस तरह वोट बढ़ाकर जीतने से बेहतर होगा कि मैं फूलपुर की तरह यह मुक़ाबला भी हार जाऊं.’सिब्ते और साथियों ने बहुत बार कहा कहा कि इस बाबत वे एक बार फिर सोच लें, लेकिन वे अडिग रहे और सिब्ते को लौट जाना पड़ा.