— साने गुरुजी —
एक बार बंगाल के सफर में गांधीजी एक जमींदार के घर ठहरे थे। यह जमींदार अपनी आदत के अनुसार हर काम के लिए नौकरों का उपयोग करता था। नौकरों की सारी भागदौड़ इस जमींदार का काम करने के लिए थी।
एक दिन बँगले के बरामदे में सदा की भाँति गांधीजी प्रार्थना के लिए उच्च आसन पर बैठे। उनकी प्रार्थना और बाद का प्रवचन सुनने के लिए बहुत सारे लोग सामने बैठे थे। उन दिनों गांधीजी बत्ती बुझाकर प्रार्थना किया करते थे। प्रार्थना के समय जमींदार गांधीजी के पास आकर बैठा। प्रार्थना शुरू होने से पहले गांधीजी ने जमींदार को बत्ती बुझा देने को कहा। बत्ती का बटन जमींदार के सिर पर ही था। परन्तु अपनी आदत के अनुसार उन्होंने नौकर को बुलाया।
इतने में चमत्कार हुआ। वत्तियाँ एकाएक बुझ गयीं और अंधेरे में प्रार्थना का आरम्भ हुआ। गांधीजी ने स्वयं उठकर बट से बटन दबा दिया था।
प्रार्थना के बाद प्रश्नोत्तर के समय गांधीजी ने प्रसंगवशात् कहा : “आजकल के पढ़े-लिखे और धनी लोगों को शरीर-श्रम करने में लज्जा आती है, उसे वे हीन काम मानते हैं, लेकिन यह गलत है। गीता में तो कहा है कि जो शरीर-श्रम न करके खाता है, वह चोर है।”
जमींदार को अपनी भूल मालूम हुई। उस पर किया गया व्यांय वह भाँप गया और बाद में….
बाद में एक मजेदार बात हुई। भीड़ के कारण पास की एक टेबुल लुढ़क गयी और उस पर रखा चीनी मिट्टी का गमला नीचे गिरकर चूर-चूर हो गया। फौरन जमींदार उच्च आसन से कूद पड़ा और फूटे गमले के टुकड़े समेटने लगा।
थोड़ी ही देर में उन टुकड़ों को बटोरने वे. लिए नौकर दौड़ आये परन्तु मालिक ही घुटने के बल बैठकर टुकडे बटोर रहा था।
यह दृश्य गांधीजी ने देखा। परन्तु उनके शब्दों ने तो अनंजाने ही अपना काम कर दिया था।
बापूजी का दैनिक जीवन नसीहतों से भरा हुआ था। उनके जीवन का प्रत्येक क्षण संसार को सन्देश देता था।