— विनोद कोचर —
भारतीय समाजवादी आंदोलन की कीर्ति ध्वजा फहराने वाले अग्रगण्य नेताओं में किशन पटनायक मेरी नजर में ,इसलिये सबसे प्रमुख हैं क्योंकि:-
(1) डॉ राममनोहर लोहिया और जयप्रकाश नारायण की, कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के अभियान में,कांग्रेस से भी बुरी,संकीर्ण, साम्प्रदायिक और अलगाववादी मुस्लिम विरोधी, आरएसएस परिवार की राजनीतिक शाखा, पूर्व जनसंघ (वर्तमान भाजपा) के साथ गठबंधन करना उन्होंने कभी स्वीकार नहीं किया।इस संस्था की विचारधारा का असली चेहरा तो 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के समय ही बेनकाब हो चुका था और तबसे लेकर अब तक इसी विचारधारा से बंधी इस पार्टी के साथ, कांग्रेस को सत्ताच्युत करने के लिए गठबंधन, एक तरह से आरएसएस के लिए संजीवनी और समाजवादी आंदोलन के लिए विषबेल ही साबित हुई है और किशनजी इस खतरे को देख भी रहे थे। डॉ लोहिया और जेपी के प्रति अगाध श्रध्दा और संगठन के प्रति समर्पित किशनजी ने ऐसी विपरीत परिस्थिति में भी लोहिया और जेपी के निधन के बाद समाजवादी आंदोलन की मशाल को बुझने नहीं दिया।
(2) जिस तरह लोहिया जी गांधी के अंधभक्त नहीं थे, उसी तरह किशनजी भी अपने प्रेरणा पुरुषों के अंधभक्त कभी भी नहीं रहे।संगठन के प्रति लोहियाजी के नजरिये से असहमत होते हुए किशनजी लिखते हैं कि:
‘लोहिया के चरित्र में एक विशिष्टता या विचित्रता थी।वे संगठन में बंधकर नहीं रहना चाहते थे। संगठन का कोई बड़ा पद स्वीकार करने की बजाय केवल कमेटी के सदस्य बने रहना चाहते थे।उनका यह मानना था कि संगठन गौड़ है, असल चीज है–आंदोलन और विचार।लेकिन राजनीतिक परिवर्तन के लिए संगठन भी आंदोलन और विचार जितना ही महत्वपूर्ण होता है।संगठन संबंधी अपनी मान्यता के कारण लोहिया को काफी असफलता का भी सामना करना पड़ा।’
किशनजी की यह धारणा समय की कसौटी पर शत प्रतिशत खरी साबित हुई है।आरएसएस में अपनी जवानी के14साल बर्बाद करने के बाद मैं मधु लिमये के सत्संग और प्रभाववश, 1976 में नरसिंहगढ़ जेल में समाजवादी विचारधारा में दीक्षित हुआ था इसलिये संगठन के महत्व का मुझे भीतर तक एहसास है।संगठन एक कला है, कौशल है जिसकी बुनियाद,साथियों के प्रति परस्पर सम्मान और स्नेह के साथ साथ सहनशीलता के ईंट गारे और सीमेंट से भरी जाती है।समाजवादी नेताओं में ये दुर्लभ गुण किशनजी में ही मुझे सर्वाधिक दिखाई दिया है।आज समता संगठन के माध्यम से समाजवादियों का जो थोड़ा बहुत संगठन बना है, वह किशनजी की ही देन है।
अपनी इन्हीं दो विशेषताओं के लिए, किशनजी मेरी नजर में, अन्य नेताओं की बनिसबद, सबसे खास हैं।उनकी अन्य सारी विशेषताएं भी कम नहीं हैं। लोहियाजी और जेपी की ही तरह किशनजी ने भी सादगी और अपरिग्रह के आदर्श कीर्तिमान रचे हैं।
आज उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर दिनकर जी की इन पंक्तियों के साथ, किशनजी को, समता संगठन के तमाम साथियों की ओर से विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ कि:
अंगार विभूषण यह उनका,
विद्युत पीकर जो आते हैं!
ऊंघती शिखाओं की लौ में,
चेतना नई भर जाते हैं!