नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कैसे बनाई थी यह सरकार?

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Netaji Subhash Chandra Bose

Vinod kochar

— विनोद कोचर —

सुभाष चंद्र बोस को गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी मां भारती के एक सच्चे सपूत का दर्जा हासिल है। उन्होंने 1943 में 21 अक्टूबर के दिन आजाद हिंद फौज के सर्वोच्च सेनापति के रूप में स्वतंत्र भारत की प्रांतीय सरकार बनाई। सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज के कमांडर की हैसियत से भारत की अस्थायी सरकार बनायी, जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपीन्स, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दी थी।

साल 1943 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर में प्रातीय आजाद हिंद सरकार की स्थापना की थी। इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली और उसके तत्कालीन सहयोगी देशों का समर्थन मिलने के बाद भारत में अंग्रेजों की हुकूमत की जड़े हिलने लगी थी। ये सरकार 1940 के दशक में भारत के बाहर ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक राजनीतिक आंदोलन था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद निर्वासित भारतीय राष्ट्रवादियों ने इसके गठन में अहम भूमिका निभाई थी।

आजाद हिंद सरकार का अपना बैंक था, जिसका नाम आजाद हिंद बैंक था। आजाद हिंद बैंक की स्थापना साल 1943 में हुई थी। आजाद हिंद बैंक ने दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये का नोट जारी किया था। एक लाख रुपये के नोट पर सुभाष चंद्र बोस की तस्वीर छपी थी। सिर्फ बैंक व मुद्रा ही नहीं, इस सरकार का अपना डाक टिकट व अपना ध्वज भी था।
आजाद हिन्द सरकार की आजाद हिंद फौज ने ने बर्मा की सीमा पर अंग्रेजों के खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी थी। इतिहास की यह अत्यंत दुखद और क्षोभजनक विडंबना है कि नेताजी सुभाषचंद्र बोस जैसे भारत के तेजस्वी सपूत के साथ न तो कांग्रेस ने न्याय किया और न ही कांग्रेस को पानी पी पीकर अपने जन्म काल, 1925 से लेकर आजतक कोसते रहने वाले आरएसएस और उसकी राजनीतिक संतान भाजपा ने ही कोई न्याय किया।

आरएसएस और भाजपा तो गाँधीजी की चरित्र हत्या करने के लिए, एक तरफ, अक्सर भगत सिंह और नेताजी को अपना आदर्श बताते हुए, हमलावर बने रहते हैं और दूसरी तरफ इन दोनों महान क्रांतिकारी और समाजवादी विचारधारा के अनुयायी अर्थात वामपंथी शहीदों के अनुगामी बुद्धिजीवियों, लेखकों एवं सामाजिक कार्यकर्ताओं पर शहरी नक्सलवादी का लेबल लगाकर, उन्हें देशद्रोही साबित करने की घटिया जुगत में सत्ता की शक्ति का दुरुपयोग भी करते हैं।

आजाद हिंद सरकार के गठन के बाद इस सरकार को मान्यता देते हुए, जापान ने नेताजी को अंडमान निकोबार द्वीप समूह भेंट किये तो नेताजी ने इन दोनों द्वीपों को क्रमशः शहीद और स्वराज द्वीप का नाम दिया था। लेकिन 15अगस्त 1947 से आजतक, न तो कांग्रेस और न ही संघ/भाजपा इन द्वीपों को नेताजी द्वारा दिये गए नाम ही वापस लौटा सकी है।

सरकारें आजतक, नेताजी से भीतर ही भीतर डरती हैं क्योंकि नेताजी के व्यक्तित्व की तेजस्विता से आंख मिलाने वाले नैतिक मनोबल और संकल्प शक्ति का लेशमात्र भी इन सरकारों के पास नहीं हैं।

लेकिन इससे क्या होता है?

नेताजी भारत की 140 करोड़ जनता के दिलों की धड़कनों में बसे हुए हैं। उनके साथ इतिहास, आज नही तो कल, इंसाफ अवश्य करेगा।

-बकौल दुष्यंत

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