— सुजाता चौधरी —
भारतीय उपनिषदों के दर्शन में अर्धांश आत्मा की चर्चा की गई है, यानी किसी किसी दम्पत्ति में पति पत्नी दोनों में उच्च आत्मा का निवास होता है । दोनों जीवन भर एक पथ पर चलते हैं और अंत में दोनों को मोक्ष मिल जाता है। महात्मा गांधी और उनकी पत्नी कस्तूरबा सम्भवत: ऐसे ही अर्धांश आत्मा वाले दम्पत्ति थे।दोनों एक दूसरे के पूरक थे। कस्तूरबा-जिन्हें प्यार से हम लोग बा पुकारते हैं| अपने पति से छह महीने पहले इस दुनिया में आई और ताउम्र गांधीजी के संघर्ष में कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी रहीं।
गाँधी जी कि संघर्ष गाथा में सहयात्री एवं हमसफर की भूमिका के साथ -साथ बा ने एक ऐसे किरदार की भूमिका का निर्वाह किया, जिसे मित्र, दार्शनिक एवं मार्गदर्शक की भूमिका भी कही जा सकती है|यह समझने वाली बात है कि महात्मा गांधी के पहले कोई भी गृहस्थ महात्मा क्यों नहीं बन पाया ? बुद्ध को अपनी पत्नी यशोधरा को छोड़ना पड़ा तो महावीर को भी अपनी पत्नी का त्याग करना पड़ा। एकमात्र गांधी ही हैं जिन्होंने पत्नी के साथ रहकर महात्मा की पदवी पाई। महात्मा भी कैसा ?पूरा का पूरा सनकी, जिस सूत्र को पकड़ लिया और सत्य मान लिया उसे जीवन में उतारना है ,चाहे कुछ भी हो जाए |सत्य को ही पकड़ लिया तो अब उसे उन्हें जीवन में आत्मसात करना है, उसे किसी कीमत पर छोड़ना नहीं है, चाहे अपनी जान जाए या पत्नी की ,बेटे का कैरियर जाए या सर्वस्व जाए |ऐसे में भला कोई साधारण स्त्री अपने पति के साथ कैसे सामंजस्य बना पाती ? आदर्शवादी पति को झेलना, उनके साथ निर्वाह करना कदापि साधारण बात नहीं मानी जा सकती |
कस्तूरबा तेरह साल की उम्र में महात्मा गांधी की पत्नी बन जाती है ,उस समय महात्मा गांधी मोहन हैं, मोहन अपनी उम्र से बड़े दोस्त शेख मेहताब से शिक्षा लेता है कि पत्नी को दबा कर रखना चाहिए और वह दबाने की कोशिश भी करता है। मोहन अपनी पत्नी कस्तूर से कहता है -तुम यहां नहीं जाओगी ,वहां नहीं जाओगी, उनसे बातें नहीं करोगी ,उनसे बातें करोगी ।कस्तूर अपने पति की बात नहीं मानती बल्कि वह स्पष्ट बता देती है कि वह गलत बात किसी की नहीं मान सकतीं । महात्मा गांधी ने स्वयं स्वीकार किया है कि किसी की गलत बात मत मानो चाहे वह कोई भी क्यों न हो, इस बात की शिक्षा मैंने कस्तूरबा से लिया है ।यानि उलटे वह अपने बाल पति के मन पर अपना स्थाई प्रभाव छोड़ती हैं|
गांधी जब अपनी बैरिस्टरी की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाने लगते हैं, कस्तूरबा तत्क्षण, बिना एक क्षण गवाएं अपने गहने की पोटरी लाकर गांधी के सामने रख देती हैं- इसे बेचकर आप इंग्लैंड जाकर पढ़ाई करें। उस समय उनकी उम्र साढ़े सत्रह साल की है, लेकिन उन्हें अपने फर्ज का पता है।
दक्षिण अफ्रीका की ही बात करें तो, जब कस्तूरबा दक्षिण अफ्रीका पहुंचती है तो बैरिस्टर गांधी का घर सुख-सुविधाओं से परिपूर्ण एक सुसज्जित घर है, जहां नौकर हैं, चाकर हैं ,सारी सुख सुविधाएं कस्तूरबा को सहज प्राप्त है ।एक दिन अचानक उनके पति त्यागमय जीवन को अपना लेते हैं, शारीरिक सुख सुविधाओं को तिलांजलि दे देते हैं और यह फैसला कर लेते हैं कि आज के बाद गरीबों की तरह रहना है , यानी वे ऐच्छिक गरीबी अपना लेते हैं ।अपनी इच्छा से गरीब बन जाना असाधारण बात है ।फिनिक्स आश्रम बनता है जिसमें गांधी सहित सभी लोग शारीरिक श्रम करते हैं और इस आश्रम जीवन मे कस्तूरबा ऐसी रचती बसती हैं जैसे पूर्व का जीवन हमेशा आश्रममय रहा हो।
दक्षिण अफ्रीका की घटना जिसका पुण्यस्मरण और प्रायश्चित के रूप में वर्णन गाँधी ने अपनी आत्मकथा में किया है ,वह कम आश्चर्यजनक नहीं है।आश्रम में यह नियम बनाया जाता है कि सभी अपने अपने शौचालयों की सफाई करेंगे।अतिथियों की मूत्रदानी गांधी स्वयं धोते हैं या कस्तूरबा।कस्तूरबा के लिए दूसरों की मूत्रदानी को धोना कठिन काम है ,लेकिन फिर भी वह धोती हैं।पंचम जाति के मुंशी की मूत्रदानी धोते वक्त कस्तूरबा की आंखों में आंसू देखकर महात्मा गाँधी को अच्छा नहीं लगा ,वे चाहते थे ,कस्तूरबा प्रसन्नता पूर्वक इस कार्य को करें|कस्तूरबा की आँखों में विषाद देख गाँधी के मुख से निकल गया -यह झगड़ा मेरे घर में नहीं चलेगा|
यह वचन कस्तूरबा को मर्माहत कर दिया और वे तड़प उठीं – आप अपना घर अपने पास रखें ,मैं चली | गांधी ने सत्य के प्रयोग में लखा है- “मैं तो उस समय ईश्वर को भूल गया उस के हाथ पकड़ कर दरवाजे की ओर खींचा “।उस समय कस्तूरबा, उन्हें खबरदार करती है -दुनिया क्या कहेगी ,जब इस बात को जानेगी ,अब शरमाइये और दरवाजा बंद कीजिए| कस्तूरबा का पति कोई साधारण मनुष्य तो था नहीं उसने इस बात को पूरी दुनिया को बताकर प्रायश्चित किया ।
इस बात के लिए गांधी की बहुत आलोचना भी हुई लेकिन कस्तूरबा मानती है- “मुझे जैसा पति मिला है, वैसा तो दुनिया में किसी भी स्त्री को नहीं मिला होगा|वे अपने सत्य से सारे जगत में पूजे जाते हैं| हजारों लोग उनसे सलाह लेने आते हैं, हजारों को वे सलाह देते हैं| मेरी गलती के बिना उन्होंने कभी मेरा दोष नहीं निकाला| हाँ, मेरे विचार उदार न हों, मेरी दृष्टि ओछी हो, तो जरुर वे मुझसे कहते हैं| लेकिन यह तो सारी दुनिया में चलता आया है|गाँधी जी इस बात को अपना दोष स्वीकार अख़बार में छाप देते हैं, जबकि दूसरे पति घर में झगड़ा मचाते रहते हैं|”
क्या सचमुच कस्तूरबा साधारण स्त्री थीं? यदि वे साधारण होतीं तो क्या गांधी के संघर्ष में कदमताल मिलाकर चल पातीं? क्या वे स्त्रियों के हक दिलाने के लिए जेल जा पातीं?
दक्षिण अफ्रीका में जब कस्तूरबा को बहुत रक्तस्राव हो रहा था, गांधी जेल में थे, डरबन से डॉक्टर का फोन आता है- कस्तूरबा को मांसाहार देना होगा ,तभी वह बचेगी ।गांधी के मना करने पर भी डॉक्टर नहीं मानता है। गांधी कहते हैं- कस्तूरबा से पूछ लीजिए। डॉक्टर कस्तूरबा से नहीं पूछता है और वह मांस का शोरबा दे देता है। गांधी की हिम्मत नहीं होती है कि वे उन्हें बता सके कि उनको मांसाहार दिया जा चुका है ।कुछ दिनों बाद जब कस्तूरबा को पता चलता है तो वह पूछती हैं – आपने मुझे बताया क्यों नहीं ?गांधी कहते हैं- मैं सोच रहा था जब तुम्हारा शरीर इस बात को सहन करने लायक हो जाए तब तुम्हें बताऊँ,मैं तुम्हारी वेदना को समझ रहा हूँ।कस्तूरबा की आंखों में आंसू आ जाते हैं लेकिन वह दृढ़ता के साथ डॉक्टर से कहती है-आप मेरे पति और बच्चों के साथ मांस के प्रयोग या महत्ता पर जितनी बात करना चाहते हैं करें किन्तु मुझसे इस विषय पर कोई बात न करें।मुझे मांस खाकर स्वस्थ नहीं होना है।
इस घटना के बाद कस्तूरबा के गर्भाशय की स्क्रेपिंग ऑपरेशन करनी पड़ी। कस्तूरबा बिना क्लोरोफॉर्म के ऑपरेशन कराने को तैयार हो गई। बापू ने महादेव भाई को स्वयं बताया –ऑपरेशन के समय मैं जरा दूर खड़ा था ।मैं कांप रहा था ।गर्भाशय में औजार डालकर उसे चौड़ा करके डॉक्टर चीरने लग गए, तब तड़ तड़ की आवाज सुनाई पड़ती थी। बा के मुख पर दुख दिखाई पड़ रहा था ,पर उसने उफ्फ़ तक नहीं किया ।मैं उसे कह रहा था- देखना हिम्मत ना हारना, लेकिन मैं स्वयं ही कांप रहा था ।मुझसे उनका दुख देखा नहीं जाता था। महादेव देसाई ने आश्चर्य चकित होकर कहा- यह तो सहनशक्ति का चमत्कार कहा जाएगा ।
बापू ने कहा -बेशक ,ऑपरेशन में काफी समय लगा था ।दूसरा कोई होता तो चीखे चिल्लाए बिना ना रहता। लेकिन बा ने अनोखी शक्ति दिखाई। सन 1913 में दक्षिण अफ्रीका की गोरी सरकार ने यह कानून पास किया कि जो विवाह सरकार के विवाह विभाग के अधिकारी के दफ्तर में दर्ज हुए हों-उन्हें छोडकर सभी विवाह अमान्य हैं| गांधी ने कस्तूरबा से कहा -तुम्हें पता है ,आज से तुम मेरी व्याहता नहीं मेरी रखैल हो। बा का चेहरा तमतमा गया-,ऐसा किसने कह दिया?कहाँ से रोज एक नई समस्या ले आते हो?
लेकिन अब हम स्त्रियों को क्या करना चाहिए?
– लड़ना चाहिए , गांधी ने कहा।
– लड़ाई करने पर तो जेल जाना पड़ता है और तुम तो अभी अभी जेल से आए हो,कस्तूरबा ने चिंतित होकर कहा| गांधी ने सहजता के साथ कहा- स्त्रियां भी जेल जा सकती हैं ।
–स्त्रियां भी जेल जा सकती हैं ……? बा ने आश्चर्य चकित होकर पूछा।
– क्यों नहीं ?राम के साथ सीता वन में गई, नल के साथ दमयंती, हरिश्चंद्र के साथ तारामती।
— वे लोग तो देवता थे, बा ने श्रद्धा पूर्वक कहा।
— हम भी बन सकते हैं-गांधी ने जब कहा, कस्तूरबा का स्वाभिमान जाग गया-मैं भी यह कर सकती हूँ, तुम बताओ मैं क्या करूं?
गांधी कहते है- जेल जाओ, संघर्ष करो। राम का साथ सीता ने दिया, तारामती ने हरिश्चन्द्र का साथ दिया। लेकिन फिर भी एक बात याद रखना मैं तुम्हें सत्याग्रह करने के लिए विवश नहीं करूंगा।क्योंकि तुम्हें कुछ हो गया तो में अपने आपको माफ नहीं कर पाऊँगा ।कस्तूरबा ने गांधी को दोबारा बोलने का मौका नहीं दिया- अगर तुम सहन कर सकते हो,मेरे बच्चे सहन कर सकते हैं तो मैं क्यों नहीं कर सकती?
गाँधी देख रहे थे ,कस्तूरबा के चेहरे पर संतुलित आक्रोश और संघर्ष में उतरने का दृढ संकल्प प्रलक्षित हो रहा था| 23 सितम्बर 1913 को जेल जाते वक्त बा की अगुयाई में चार महिलाएं और भी जेल जाने के लिए दृढ संकल्पित होकर उनके साथ हो गईं थीं|यह बहुत बड़ी बात थी कि भारतीय महिलाएं अपने देश से बाहर अपने अधिकारों के लिए जेल जा रही थीं| कस्तूरबा इतिहास रच रहीं थीं|लेकिन उनके चेहरे पर दर्प का नामोनिशान नहीं था| उस समय बा बहुत कमजोर थी।गांधी को भी लग रहा था, कमजोरी की वजह से बा लौट आएगी।उन्होंने एक बार कहा भी- अगर तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक न रहे तो तुम ….|
कस्तूरबा ने वाक्य पूरी करते हुए कहा—तुम निश्चिन्त रहो,कस्तूर जान गई है अगर जेल तुम्हारा दूसरा घर हो गया है,तो मेरी भी नई ससुराल| लेकिन उनके कनिष्ठ पुत्र देवदास को विश्वास था- बा कभी नहीं लौटेंगी ,जब चुनौती आ जाती है तो वे मरते मरते भी जी उठती है। आपने देखा नहीं था केसे उन्होंने अपने जीवन की परवाह नहीं की थी और मांसाहार ग्रहण करने से इंकार कर दिया था । तीन महीने के बाद जेल से निकलते वक्त बा लड़खड़ा रही थीं।वे इतनी कमजोर लग रही थीं कि पत्रकारों को लगा वे गांधी की मां हैं।
दक्षिण अफ्रीका में ही प्राण जीवन मेहता के द्वारा दी गई छात्रवृति की मदद से गाँधी ने छगनलाल को वकालत की पढाई करने के लिए इंग्लैण्ड भेजा, उससमय उनके ज्येष्ठ पुत्र हरिलाल की बहुत इच्छा थी कि इस वजीफे पर उनके पिता उन्हें इंग्लैंड भेजते, उन्होंने अपनी माँ कस्तूरबा के सामने अपनी इच्छा जाहिर कि ,लेकिन पिता से कुछ भी नहीं कह पाए| संयोग ऐसा कि छगनलाल को बीमार होने की वजह से बीच में ही पढाई छोड़कर फिनिक्स आना पड़ा|उनके स्थान पर दूसरी बार सोराबजी को पढ़ाई करने के लिए भेजना, हरिलाल को इतना मर्माहत कर दिया कि आजीवन पिता से दूरी बना ली| हरिलाल इंग्लैण्ड जाना चाहता है,वह गांधी का पुत्र है, कस्तूरबा की दृष्टि में हरिलाल की मांग नाजायज नहीं है |वह भी चाहती है हरिलाल पढ़ लिखकर बैरिस्टर बने |वह मां है, लेकिन अपने पति के सिद्धांतों में खलल नहीं पहुंचाती| गांधी की सत्य दृढ़ता उन्हें अपने पुत्र से दूर कर देती है| कस्तूरबा इस दुख को पी जाती है|
भारत क्या, कस्तूरबा संसार की शायद पहली महिला है जो महिलाओं के सम्मान के लिए अपनी मर्जी से जेल गई थी| कस्तूरबा जब दक्षिण अफ्रीका से लौट रही थी अपनी खुली आंखों से अनुभव कर रही थी दक्षिण अफ्रीका में प्रवेश करते वक्त और यहां से विदा लेते वक्त उनके जीवन में कितना अधिक फर्क पड़ गया था|अब वे सिर्फ एक महात्मा की पत्नी ही नहीं थी, स्वयं उनका भी व्यक्तित्व बहुत बड़ा बन चुका था|वे एक असाधारण सामाजिक कार्यकर्ता बन चुकी थी, महिलाओं की अगुवाई करने वाली नेत्री बन चुकी थी|
कस्तूरबा जब गुजरात पहुँचती हैं तो साबरमती आश्रम उनका आश्रय स्थल बनता है| दलित दूधा भाई का परिवार जब आश्रम में रहने के लिए आता है तो,सभी लोगों द्वारा विरोध होता है कस्तूरबा भी उसी पक्ष में खड़ी दिखती है|उन्हें भी लगता है ,इतने लोगों के विरोध में जाना ,वह भी अपने लोगों के खिलाफ, सही फैसला नहीं है | दूधाभाई की छोटी बेटी लक्ष्मी को खेलते हुए एकटक देख रही कस्तूरबा का मातृत्व जग जाता है और उन्हें लगता है उनसे इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई? जिस राह पर अस्पृश्यता को मिटाने के लिए उसका पति चल रहा है,वह तो मानवता का पुजारी है, उसे भी मानवता की पुजारिन बनना है और वह उठकर छोटी सी लक्ष्मी को गले से लगा लेती है ,और आजीवन उसकी बा बनी रहती है|
आश्रम व्रत अपनाने की खातिर कस्तूरबा अपने बच्चों, पोतियों तक के लिए कपड़े रखने के मोह को छोड़ देती है|
जब गांधी चंपारण आते हैं तो बा भी साथ होती हैं, वह स्वयं प्रशिक्षिका बन जाती है और साथ में देवदास को भी लगाती हैं, देवदास बच्चों को पढ़ाते हैं, कस्तूरबा भी उनके साथ स्कूल के काम में लग जाती हैं|शिक्षा और सफाई में जुट जाती हैं, कैसे गंदगी समाप्त हो, इसके लिए बा महिलाओं की टोली बना लेती हैं और टोली बनाकर गांव की सफाई में जुट जाती है |
सेवाग्राम आश्रम में सबों का ख्याल वे एक माता के समान रखती थीं| सत्कार या प्यार पाने का एक मात्र स्थली थी-बा |चार्ली एंड्रूज की चाय हो या जवाहरलाल जी की खास स्वाद वाली चाय, कस्तूरबा सबका ख्याल रखती थी, जवाहरलाल कभी कभी बा को चिढाते भी, लेकिन जिस दिन खामोश रहते तो बा, बापू के सामने प्रश्नों की झरी लगा देतीं -आज जवाहर क्यों उदास है,आपने तो कुछ नहीं कहा? पटेल का बा विशेष ख्याल रखती ही थीं| राजेन्द्र प्रसाद के प्रति भी बा बहुत स्नेहिल थीं|सिर्फ इन बड़े नामों के प्रति ही नहीं बा सम्पूर्ण आश्रमवासियों के प्रति भी इतनी ही स्नेहमयी थीं| वे समस्त आश्रमवासियों को अपना कुटुंब समझती थीं, एक वात्सल्यमयी माँ की तरह सभी के लिए खटती रहती| तभी तो आश्रम में कोई कार्यक्रम होता तो वे आश्रम के कार्यकर्ताओं से कहती -तुम सब लोग जाओ | तुमलोग उम्र में मुझसे छोटे हो ,इस उम्र में देखने-सुनने और घुमने का एक उमंग और उत्साह होता है| तुमलोग जाओ ,रसोई का काम मैं सम्भाल लूंगी|
इतने दायित्वों का निर्वहन करते करते कभी कभी थक जातीं, उसदिन भी वे थक गई थीं|इसीसे मोतीलाल नेहरु के आने पर गाँधी और आश्रमवासियों ने उन्हें नहीं जगाया|लेकिन बर्तन गिरने की आवाज ने उन्हें जगा दिया|बा ने ऑंखें मलते हुए पूछा- मुझे क्यों नहीं जगाया?
बापू ने हंसते हुए कहा-तुम्हें पता नहीं, मैं तुमसे डरता भी हूँ|
बापू ने स्वयं कहा है- जो लोग मेरे और बा के सम्पर्क में आये हैं,उनमे अधिक संख्या तो ऐसे ही लोगों की है,जो मेरी अपेक्षा बा पर अनेक गुना श्रद्धा रखते हैं|महात्मा गाँधी ने महादेव भाई को बताया -जब मैं दक्षिण अफ्रीका में जेल गया तो किसी को कोई फ़िक्र नहीं हुई, किन्तु जब बा जेल गई तो फिरोजशाह मेहता तक ने एक विशाल जनसभा बुलाकर क्रांतिकारी भाषण दिया|
जब बा को सी श्रेणी के जेल में रखा गया तो कभी क्रोध नहीं करने वाले मि. पोलक आग बबूला हो गए | पटेल ने बा का प्रतिरूपण करते हुए गाँधी से कहा था -बा की स्थिति से किसी को भी बिना दुःख हुए रहना मुश्किल है|बा अहिंसा की प्रतिमूर्ति हैं|अहिंसा की ऐसी छाप मैंने आजतक किसी स्त्री के मुख पर नहीं देखा|उनकी अपार नम्रता,उनकी सरलता,किसी को भी आश्चर्य में डाल सकती है|
यह सुनकर बापू ने कहा- यह बात सच है वल्लभभाई, लेकिन उनका सबसे बड़ा गुण है-उनकी बहादुरी का गुण ,हिम्मत का गुण|
बा बहादुर थीं ,बहुत बहादुर|लेकिन माँ की ममता बहादुर से बहादुर महिला को कमजोर बना देती है|बा का बड़ा पुत्र-हरिलाल बड़ी आयु में कुसंग में पड़कर बुरे रास्ते पर लग गए थे ,यहाँ तक कि अपना धर्म परिवर्तन कर लिया | महात्मा गाँधी ने राज्य, देश की सीमाओं को लांघते हुए वैश्विक शख्सियत बनकर समस्त नवयुवकों को अपना पुत्र मान लिया था किन्तु एक माँ के लिए यह कितनी मुश्किल घड़ी रही होगी|लेकिन कस्तूरबा में ममतामयी माँ की झलक तो दिखाई पडती हैं लेकिन कहीं भी वे मोहग्रस्त नहीं दिखतीं |कस्तूरबा का हरिलाल को लिखा यह पत्र उनके मजबूत चरित्र को दर्शाता है|
चिoहरिलाल.मेरे सुनने में आया है कि कुछ दिन पहले मद्रास के एक आम रास्ते पर शराब के नशे में तूफान मचाने के अपराध में पुलिस ने तुझे पकड़ा और दुसरे दिन मजिस्ट्रेट के सामने खड़ा कर दिया|उन्होंने तुझे एक रुपया का नाममात्र का जुर्माना किया|वे भले आदमी होंगे और तेरे पिताजी के प्रति अपनी सद्भावना बताई है|मेरी समझ में नहीं आता कि मैं तुझसे क्या कहूँ|पिछले कई वर्षों से से मैं तुझसे विनती करती आ रही हूँ ,तू अपने जीवन पर संयम रख|लेकिन तू तो दिन रात बिगड़ता जा रहा है|अब तो मेरे लिए दुनिया में जीना भी कठिन हो गया है|तू अपने माता-पिता को उनके जीवन के संध्याकाल में कितना दुःख दे रहा ,इसका तो जरा विचार कर| तू जानता है तेरे पिताजी चरित्र की शुद्धी को कितना अधिक महत्व देते हैं लेकिन उनकी उस सलाह पर भी थोडा सा भी ध्यान नहीं दिया|तेरे पिताजी तो तुझे क्षमा करते ही रहते हैं किन्तु भगवान तेरे इस बर्ताव को कभी सहन नहीं करेगा|वह तुझे क्षमा नहीं करेगा|
अपने इस लम्बे पत्र में बा की ममता तो दिखती है किन्तु मोह में अंधी माँ का दर्शन दूर दूर तक दृष्टिगोचर नहीं होता|
1930 के सत्याग्रह के समय जब बापू को करारी नामक स्थान पर सरकार ने गिरफ्तार कर लिया , उसके बाद बा ने भरसक बापू का काम अपने हाथ में ले लिया| वे गांव गांव घूमने लगीं| लेकिन काम के बोझ और दौड़-धूप के कारण उनकी तबीयत बिगड़ गई| कस्तूरबा को तब श्री नरहरि पारिख की पुत्री श्री बनवाला पारिख के साथ मरोली आश्रम में आराम करने के लिए जाना पड़ा| एक दिन सुबह की प्रार्थना करने के बाद सब लोग नाश्ता करने बैठे ही थे, तभी डाकिया आकर तार दे गया| तार में लिखा था -हमें कस्तूरबा के साथ की जरूरत है| बा तार के भीतर के गहरे अर्थ को समझ गई और नाश्ता छोड़कर जल्दी-जल्दी जाने की तैयारी करने लगी| तार बोरसद गांव से आया था| वहां किसानों को जमीन महसूल न भरने की सलाह देनेवाली कुछ बहनों पर सरकार ने लाठी चलाई थी| इससे सारे गांव में हाहाकार मच गया था| अनेक बहनें घायल होकर अस्पताल में पड़ी थी |इन्हीं बहनों ने बा को तार देकर बुलाया था ताकि बा गांव वालों को हिम्मत बंधा सके|
बा की इस उतावली को देखकर बनवाला पारिख घबरा उठी| बोरसद जाने से बा की तबीयत ज्यादा बिगड़ जाएगी, ऐसी चिंता के कारण उन्होंने बा से कहा- बा, आप यह क्या करती हैं ? आप में ताकत है, वहां जाने की? शरीर में खून की एक बूंद भी तो नहीं है! इसीलिए डॉक्टरों ने आपको आराम कर लेने की सलाह दी है| आपके बदले मैं बोरसद जाती हूं| भगवान के नाम पर आप यहीं रहें|
किंतु कंबल और दूसरी चीजें झोले में रखते हुए बा ने कहा- “पुलिस की लाठियां बहादुरी से झेलने वाली बहनों के पास मुझे पहुंचना ही चाहिए| बापू होते तो इस समय वे बहनों के पास खड़े होते| लेकिन वे तो जेल में बंद हैं|” इतना कहकर बा बोरसद की गाड़ी पकड़ने के लिए तेजी से स्टेशन की ओर चल पड़ी|
बोरसद पहुंचकर बा ने अस्पताल में घायल बहनों को हिम्मत बंधाई और ग्राम वासियों से मिलकर गांव पर छाए हुए डर और घबराहट को भी दूर किया| अपनी कमजोर तबीयत की रत्ती भर भी परवाह न करके वे सुबह से शाम तक एक पैर पर खड़े होकर काम करने लगीं| इससे उनकी तबीयत और बिगड़ गई| डॉक्टर ने उन्हें आराम पर खूब जोर देने को कहा और बा को चेताया कि आप की तबीयत ज्यादा बिगड़ सकती है, उसका परिणाम बुरा होगा| डॉक्टरों की बात सुनकर बा ने कहा- लेकिन मुझे तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगता, मैं सिर्फ बापू जी के पदचिह्नों पर ही चल रही हूं |बापू की अनुपस्थिति में मुझे काम करने का यह अवसर मिला है, आराम करना तो मेरे लिए असंभव है| डाक्टर बेचारे क्या करते ,निराश हो कर लौट गए और बा अपने काम में जुट गई|कस्तूरबा सच्चे अर्थों में गाँधी की अर्धांगिनी थीं ,सच कहें तो उपनिषदों के अनुसार बा बापू की अर्धांश ही थीं|
बा के खादी प्रेम की दीवानगी की तो कोई हद ही नहीं , उनकी उंगली से खून की धारा बहते देख आश्रम की बहनें मिल की बनी मुलायम बैंडेज लेकर दौड़ी|बा ने मना कर दिया- मुझे तो खादी की बैंडेज बांधनी है,वह खुरदुरी भी होगी तो मुझे कोई कष्ट नहीं होगा|
1942 में करो या मरो का नारा देने के बाद जब गांधी की गिरफ्तारी हो जाती है, तो कस्तूरबा आगे बढ़कर अगस्त क्रांति के मैदान में एक वीरांगना की तरह देशवासियों को संबोधित करती हैं | उस समय जनसमूह को कस्तूरबा में गांधी दिखाई पड़ते हैं और देशवासियों का जोश बढ़ जाता है|
1942 में ही जब बापू ने उपवास की बात की तो ,सरोजिनी नायडू ने बापू को जालिम पति सम्बोधन करते हुए कहा- बापू ,इस बार आपका उपवास बा की जान ले लेगा|
गांधी ने उन्हें समझाते हुए कहा -मैं बा को आप लोगों से अधिक अच्छी तरह पहचानता हूँ|आपको बा की बहादुरी की कल्पना नहीं हो सकती ,मैंने पैंसठ साल उनके साथ बिताया है|वह आप सबों से अधिक हिम्मती है|हरिजनों के प्रश्न पर उपवास के वक्त मेरे जीने की आशा समाप्त हो चुकी थी| मेरे सामान तक बाँट दिए गये थे|बा ने अपने हाथों से भी बांटा, वह भी बिना ऑंखें गीली किए हुए|
वहीँ पर बैठी बा ने सरोजिनी नायडू से मुस्कुराते हुए कहा- सरकार के अत्याचारों का विरोध करने के लिए बापूजी के पास दूसरा क्या साधन है? नायडू निरुत्तर हो कर बा को निहारती रह गई|
आगा खां पैलेस में बा के प्रेम और समर्पण की पराकाष्ठा देखकर सभी लोग चमत्कृत हो जाते है| गांधी बीमार हैं, गांधी को देखने कस्तूरबा आती हैं| कस्तूरबा और महादेव भाई, गांधी के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित भी हो रहे हैं और एक दूसरे को दिलासा भी दे रहे हैं| कस्तूरबा महादेव से कहती है- महादेव तुम ज्यादा चिंता मत करो, तुम्हारी सेहत पर असर पड़ेगा| महादेव भी कहते हैं- आप भी ज्यादा फिक्र ना करें, आप बीमार हो जाएंगी | कस्तूरबा और महादेव,, दोनों की चिंता, दोनों की शंका सच साबित हो जाती है| महादेव के अचानक चले जाने पर कस्तूरबा को अपने सगे बेटे के जाने सा दुख होता है| दरअसल अब कस्तूरबा सिर्फ चार बच्चों की मां तो रह नहीं गई उनके मातृत्व के विस्तृत आँचल में अनेक संतानें समा गई थी|
महादेव देसाई के जाने के बाद गाँधी बा को इतिहास, भूगोल, गीता पढ़ाने लगते हैं और बा उम्र के इस दौर में भी एक जिज्ञासिनी की तरह पढने लगती हैं|यहाँ तक कि उस समय तक बा को अपनी मृत्यु का भी पूर्वाभास हो चूका है|उन्होंने मनु गाँधी और सुशीला नैयर से कहा भी था -अब इस आगा खां की कैद से बाहर नहीं जा सकूंगी |बस एक चाह है, बापू की गोद में सिर रखकर प्राण छोडूं|
बा के अवसान के एक दो दिन पहले ही बापू ने अपने साथियों के सामने यह बात कही थी—जिस भाग्यशाली ने जीवन में एकनिष्ठा से सेवा की होगी, उसी की गोद में बा देह छोड़ेगी| ऐसी सेवा किसने की है,यह तो भगवान ही जानता है|
जब वह भाग्यशाली व्यक्ति गाँधी निकले तब गाँधी को अपने एकनिष्ठ सेवा पर भरोसा हो गया|कस्तूरबा के जाने के बाद गांधी कहते हैं- मैं अक्सर सोचा करता था, कस्तूरबा इस दुनिया से कैसे जाएगी? मैं उस समय कहां होऊंगा ? मुझे कहां पता था, मेरी गोद में उसके प्राण जाएंगे | कस्तूरबा ने अपने अंतिम समय में मेरी गोद में अपने सिर को रख कर, मेरा कितना मान बढ़ाया,उसे शब्दों में कैसे व्यक्त कर सकता हूँ?
उपनिषद की अर्धांश आत्माओं कि परिकल्पना लगभग वैसी ही है जैसी महात्मा गाँधी की अर्धांगिनी कस्तूरबा थीं| वस्तुत: कस्तूरबा अपने जीवन ,अपने मरण ,अपने त्याग के साथ संपूर्णता में भारतीय नारी का गरिमा का, उसकी अस्मिता का उत्कर्ष है|
सन्दर्भ –
1 सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय
डा. सुजाता चौधरी
2-बा –गिरिराज किशोर
3 बा और बापू –मुकुलभाई कलार्थी