क्या 1962,1965, 1971 और 1999 के युद्धों में भारत की सेना ने अपनी अटूट देशभक्ति और अद्भुत वीरता का परिचय नहीं दिया था?

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mohan bhagwat and indian army

Vinod kochar

— विनोद कोचर —

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने विजयादशमी के अपने भाषण में ये कहकर कि, “हमारी सेना की अटूट देशभक्ति व अद्भुत वीरता, हमारी सरकार का स्वाभिमानी रवैया तथा देश के लोगों का धैर्य चीन को पहली बार देखने को मिला, उससे उसके ध्यान में यह बात आ जाना चाहिए कि भारत पहले वाला नहीं है।’, 1947 से 2014 तक की, भारत की सेना की अटूट देशभक्ति और अद्भुत वीरता का अपमान किया है।

क्या 1962,1965, 1971 और 1999 के युद्धों में भारत की सेना ने अपनी अटूट देशभक्ति और अद्भुत वीरता का परिचय नहीं दिया था?

ये उद्बोधन न केवल सेना का बल्कि संदर्भित समय की सरकारों के नेतृत्व कौशल का भी अपमान है।

नरेंद्र मोदी की विरुदावली गाने के लिए क्या पँ नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और अटल बिहारी बाजपेयी के नेतृत्व की खिल्ली उड़ाना जरूरी था, भागवत जी?

अब जब भागवत जी ने अपनी मर्यादा का सीमोल्लंघन करते हुए नरेन्द्र मोदी को देश के अब तक हुए सारे प्रधानमंत्रियों की तुलना में सर्वाधिक स्वाभिमानी प्रधानमंत्री निरूपित कर ही दिया है तो उनसे ये पूछा जा सकता है कि जब चीन 2020 में लद्दाख के कई भूभागों पर जबरन कब्जा कर चुका था तब नरेंद्र मोदी का ये कहना कि चीन ने भारत के किसी भी भूभाग पर कब्जा नहीं किया है, नरेंद्र मोदी के स्वाभिमानी रवैय्ये का द्योतक था या चीन को बेगुनाही का झूठा सर्टिफिकेट देने वाले देश विरोधी शर्मनाक रवैये का द्योतक?

1962 में दुखी हृदय से, नेहरू ने कम से कम स्वीकार तो किया था कि चीन ने भारतीय भूभाग पर कब्जा कर लिया है।उन्होंने चीन के खिलाफ युध्द तो लड़ा था।चीन प्रमुख के साथ झूला तो नहीं झूला था!

विजया दशमी के अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत का ये भाषण नरेन्द्र मोदी की चापलूसी करने वाला, देश की सेना की देशभक्ति और वीरता के स्वर्णिम इतिहास का अपमान करने वाला और पूर्व प्रधानमंत्रियों के नरेंद्र मोदी से भी कई गुना अधिक स्वाभिमानी रवैयों का अपमान करने वाला, अब तक का सबसे घटिया और शर्मनाक भाषण है।

बकौल दुष्यंत:-

अज़मते मुल्क इस सियासत के
हाथों नीलाम हो रही है अब

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