— मधु लिमये —
हिन्दू राज और मुस्लिम राज के जमानों के पक्षपातपूर्ण दांडिक कानूनों में बुनियादी फेरबदल अंग्रेजी राज के जमाने में हुए थे। ‘अंग्रेजी शासन ने सबसे पहला परिवर्तन दंड व्यवस्था में किया।प्राचीन भारतीय दंड व्यवस्था मनुस्मृति पर आधारित थी।इसमें अपराध और अपराधियों को दिये जाने वाले दंड की व्यवस्था जाति और वर्ण के आधार पर निश्चित की गई थी।जैसे-यदि ब्राह्मण शूद्र को मार डाले तो उसको फांसी की सजा कदापि नहीं दी जा सकती थी, लेकिन शूद्र या अति शूद्र यदि वरिष्ठ जातियों के सदस्यों के साथ छेड़खानी भी कर ले–हत्या तो कल्पना से परे की चीज थी–तो उन्हें मृत्युदंड तक दे दिया जाता था।जाति और जनम के आधार पर ऊंच-नीच, भेद-भाव बरतना हमारी दंड व्यवस्था का आधार था।
मुसलमानों के जमाने में आपराधिक कानून की व्यवस्था मुस्लिम शरीयत के अनुसार थी, यानी किसी भी काजी की अदालत में अगर कोई गैर मुसलमान किसी मुसलमान के खिलाफ कोई गवाही देता था तो उसकी गवाही प्रमाणित नहीं मानी जाती थी, उसके आधार पर कोई निर्णय नहीं होता था।’
(स्रोत: ‘स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा, पेज25)