पश्चिम की जनता गांधी जी को पूर्व का ईसा मसीह समझती है।

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gandhi ji and christmas

लार्ड माउंटबेटन ने 30 जनवरी 1948 को गांधीजी को श्रद्धांजलि देते हुए लिखा कि अगर इतिहास आपका निष्पक्ष विश्लेषण कर सका तो वह आपको ईसा और बुद्ध की श्रेणीं में रखेगा। माउंटबेटन ने अपने जीवन में जो एक दो बातें सही कही उनमें ये बात शामिल है। गांधीजी ईसा को मानवता के महान शिक्षकों में से एक मानते थे जिन्होंने अहिंसा के आदर्शों की शिक्षा दी। हालांकि अहिंसा की बात भारत के लिए नई नहीं थी , महात्मा बुद्ध ईसा से बहुत पहले अहिंसा के बीज बो चुके थे। गांधीजी ने अपनी जान देकर इस फसल को बचाया। यह भी एक अजीब इत्तफाक है कि ईसा शुक्रवार को सूली पर चढ़ाये गए और इसी मनहूस शुक्रवार को गांधी की हत्या कर दी गई।

गांधीजी का अध्ययन भारत से ज्यादा इंग्लैण्ड के लोग कर रहे हैं जिनके खिलाफ वे चार दशक तक अनवरत लड़ते रहे। ये भी आश्चर्य है कि ब्रिटिश साम्राज्य का श्रीअंत करने वाले गांधी जब आधी धोती पहनकर इंग्लैंड से गए तो वहां की जनता ने उन्हें पूर्व के ईसा के रूप में देखा।

आखिर पश्चिम ने गांधीजी में इतनी दिलचस्पी क्यों दिखाई यह शोध का विषय है। एक ओर गांधी इंग्लैंड से लड़ रहे हैं और दूसरी ओर इंग्लैंड का समाज इसे इस तरह ले रहा है कि कौन बड़ा आदमी पश्चिम के उद्धार के लिए आया है। दरअसल 19 वीं सदी तक इंग्लैंड थोड़ा सुधर चुका था। विज्ञान के आविष्कारों से यूरोप में बुद्धिवाद बढ़ा, जिसके कारण अंग्रेजों में यह भाव जगा कि धार्मिक उन्माद और हुड़दंग ठीक नहीं है और ईसाई धर्म में जितनी आध्यात्मिक गहराई है वह गहराई गांधी के व्यवहारिक जीवन में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। औद्योगिक अशांति, बेरोजगारी, सामाजिक अन्याय और अधिभौतिकतावाद के शिकंजे में जकड़ी जनता ने सूती चादर ओढ़े और आधी धोती पहने पूर्व के इस शांतिदूत में प्रेम का संदेश देते ईसा मसीह दिखे।

अमेरिकी लेखक व दार्शनिक हेनरी डेविड थोरो प्रारंभिक भारतीय दर्शन और विचार से प्रभावित थे, जिससे उन्होंने “Duty of Civil Disobedience” निबंध के लिए प्रेरणा ली। उन्होंने लिखा “यदि कानून इस तरह का है कि आपको दूसरे के प्रति अन्याय का एजेंट बनाता है, तो मैं कहता हूं कि उस कानून तोड़ें, अपने जीवन को दमन की मशीन को रोकने के लिए एक प्रति-घर्षण के रूप में इस्तेमाल करें।” थोरो की ये बात गांधीजी के दिल में गहराई से बैठ गयी जब वे दक्षिण अफ्रीका में थे। इस बात ने उन्हें महान अहिंसक सविनय अवज्ञा के लिए प्रेरणा दी, जिसे वे बाद के वर्षों में इतने प्रभावी ढंग से अपना सके। मुझे पक्का यकीन है कि दक्षिण अफ्रीका के लोग कभी गांधी को भूल नहीं पाएंगे। क्योंकि गांधी को आत्मा आज भी स्वतंत्र और लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका पर अपना सर्वश्रेष्ठ आशीर्वाद बरसा रही है।

थोरो की सीख पर अमल करते हुए महात्मा गांधी ने भारतीयों से कहा कि अगर दुनिया की सबसे ताकतवर सत्ता भी यदि तुम्हें कोई आज्ञा दे तो उस आज्ञा की जांच करो उस आदेश के बारे में सोचो और यदि वह तुम्हारी व्यक्तिगत न्याय की परिभाषा की कसौटी पर खरा उतरती तो उसे मानो। लेकिन यदि वह ऐसा नहीं करती तो अकेले उसका विरोध करने का साहस अपने भीतर पैदा करो। इसलिए गांधीजी का सबसे बड़ा आंदोलन जो हम सब जानते हैं उसका नाम सविनय अवज्ञा आंदोलन था। अवज्ञा करना, आज्ञा का पालन नहीं करना हालांकि वह सबसे बड़ी सत्ता के द्वारा दी जा रही है।

डॉ. मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी के अहिंसक आंदोलन से बड़े प्रभावित थे। उन्होंने लिखा कि अहिंसक प्रतिरोध उस शक्ति संरचना को पंगु और भ्रमित कर देता है जिसके खिलाफ इसे तैयार किया जाता है। वे लिखते हैं कि विश्व इतिहास में गांधी शायद पहले व्यक्ति थे जिन्होंने बड़े पैमाने पर लोगों को एक शक्तिशाली और प्रभावी सामाजिक शक्ति के रूप में तैयार करने के लिए ईसा मसीह की प्रेम नीति को आधार बनाया। यह प्रेम पर आधारित गांधीवादी आंदोलन था और इस अहिंसक आंदोलन से मैंने सामाजिक सुधार का वह तरीका खोजा जिसकी मैं लम्बे समय से अमेरिका में तलाश कर रहा था।

विचारों के मामले में दूरियाँ कोई मायने नहीं रखतीं। गांधी के विचार पूरी दुनिया तक पहुंच रहे हैं। दरअसल, विचारों के प्रसारण मोनोवेग के रूप में होता है, जिसका अर्थ है मन की गति की कल्पना किसी ने नहीं की है और न कभी कर सकता है। इसलिए गांधी विचार और उनसे जन्मे आदर्श भारत और शेष दुनिया में तेजी से गूंजते रहते हैं। कुछ गांधी के विचारों को समझ पाते हैं, कुछ उन्हें अनुभव कर पाते हैं, और कुछ लोगों को गांधी और उनके विचार समझ नहीं आते। एक विनम्र गाँधी अध्येता के लिए ये एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।

पूर्व अमेरिकी उपराष्ट्रपति अल गोर (Al Gore) ने एक बहुत अच्छी पुस्तक लिखी है :Earth In The Balance’ जिसमें उन्होंने महात्मा गांधी का एक किस्सा लिखा है। (हालांकि इस किस्से का उल्लेख सम्पूर्ण गांधी वाङ्गमय में नहीं मिलता है) अल गोर लिखते हैं, ”महात्मा गांधी के पास एक दिन एक महिला आई। वह इस बात से चिंतित थी कि उसका बेटा बहुत अधिक मीठा खाता है। उसने महात्मा जी से अपने बेटे को इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में सलाह देने का अनुरोध किया। गांधी जी ने ऐसा करने का वादा किया, लेकिन उसे एक पखवाड़े के बाद लौटने के लिए कहा। उस महिला ने ऐसा ही किया, और गांधी जी ने लड़के को सलाह दी जैसा कि उन्होंने वादा किया था। माँ बहुत अधिक कृतज्ञ हुई, लेकिन अपनी उलझन को छिपा नहीं पा रही थीं कि गांधीजी ने दो सप्ताह के अंतराल पर आने का जोर क्यों दिया था। महात्मा अपने उत्तर में ईमानदार थे और उन्होंने कहा, `मुझे स्वयं मीठा खाना बंद करने के लिए दो सप्ताह चाहिए थे।”

हो सकता है कि अल गोर अपनी पुस्तक में गलती से महात्मा बुद्ध की जगह महात्मा गांधी लिख बैठे हों पर यह उद्धरण आज भारत के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। हम 20 वीं सदी के कड़वे अनुभवों से गुजरकर अब 21वीं सदी के तीसरे दशक के मध्य में आ चुके हैं। हम दुनियाभर की वैज्ञानिक ,बौद्धिक और रचनात्मक उपलब्धियों से मजबूत हुए हैं और साम्प्रदायिक उन्माद से कमजोर हुए हैं। इन समस्याओं के समाधानों की पहचान करने में हमारी सामूहिक क्षमता ही मजबूत हो सकती है। ले देकर भारत के पास बुद्ध और गांधी का शांति संदेश ही है लेकिन उन्हें दुनिया के सामने प्रस्तुत करने से पहले महात्मा बुद्ध या गांधीजी की तरह, हमें उनका अभ्यास करने में दो सप्ताह का समय लेना पड़ेगा।

गांधीजी ने जब पहली बार केंटरबरी में सूली पर चढे ईसा मसीह को देखा तो उनकी आँखो से आंसू निकल पड़े थे। उन्हें शायद इस बात का अनुमान हो गया था कि उनको भी एक दिन ईसा की तरह ही सूली पर चढ़ना पड़ेगा।

30 जनवरी, 1948 को पूर्व के ईसा गांधी की हत्या कर दी गयी। 31 जनवरी, 1948 को ‘हिंदुस्तान स्टैंडर्ड’ समाचार पत्र का मुख्य पृष्ठ कोरा पड़ा था और उस पर सिर्फ इतना लिखा था, ‘गांधी जी अपने ही लोगों द्वारा मार दिए गए, जिनकी मुक्ति के लिए जीए। विश्व इतिहास का यह दूसरा क्रूसीफिक्शन 30 जनवरी 1948 ठीक शुक्रवार को किया गया-ठीक वही दिन जब आज से एक हजार नौ सौ पंद्रह साल पहले ईसा मसीह को मारा गया था। परमपिता, हमें माफ कर दो।’

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