— ध्रुव गुप्त —
देश में स्त्री शिक्षा की अलख जगाने वाली और स्त्रियों के अधिकारों की योद्धा सावित्री बाई फुले की जयंती पर आज देश उन्हें कृतज्ञता पूर्वक याद कर रहा है। मगर यह देखकर तकलीफ जरूर होती है कि स्त्री शिक्षा, विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा के लिए जीवन भर उनके साथ कदम से कदम मिलाकर काम करने वाली फ़ातिमा शेख को लोगों ने विस्मृत कर दिया। फ़ातिमा जी के बगैर सावित्री जी अधूरी थी। सावित्री बाई और उनके पति जोतीराव द्वारा लड़कियों को घर से निकालकर स्कूल ले जाने की बात उस वक़्त के सनातनियों को पसंद नहीं आई थी।
चौतरफा विरोध के बीच दोनों को अपना घर छोड़ना पडा था। पूना के गंजपेठ के उनके दोस्त उस्मान शेख ने जोतीराव फुले को रहने के लिए अपना घर दिया जहां उन्होंने अपना पहला स्कूल शुरू किया था। उस्मान की बहन फातिमा ने इसी स्कूल में शिक्षा हासिल की और शिक्षा पूरी करने के बाद सावित्रीबाई के साथ वहां पढ़ाना शुरू किया। वह पहली मुस्लिम महिला थीं जिन्होंने लड़कियों की शिक्षा के लिए अपना जीवन अर्पित किया। वह घर-घर जाकर लोगों को लड़कियों के लिए शिक्षा की आवश्यकता समझाती और उन्हें स्कूल भेजने के लिए अभिभावकों को प्रेरित करती। शुरू-शुरू में फातिमा को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। लोग उनकी हंसी उड़ाते और उन्हें पत्थर भी मारते। उनकी लगातार कोशिशों से धीरे-धीरे लोगों के विचारों में परिवर्तन आया.और वे लड़कियों को स्कूल भेजने लगे। उस वक़्त के मुस्लिम समाज की दृष्टि से यह क्रांतिकारी परिवर्तन था और फ़ातिमा शेख इस परिवर्तन की सूत्रधार बनीं।
सावित्री बाई फुले की जयंती पर उन्हें और फातिमा शेख दोनों को नमन, दोनों के एक दुर्लभ चित्र के साथ!