वह साल नहीं है यह साल!

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New Year 2025

shravan garg

— श्रवण गर्ग —

यह साल वह साल नहीं है
जो किसी साल था
सालों साल पहले कभी
सिर पर छाए आकाश की छत जैसा !
लौटकर आता था जो हर बार
घर पहुँचे पिता की तरह
नहला-सहला कर फसलों को खेतों से !

एक सुबह, मुँह अंधेरे
नहीं जगा था सूर्य भी जब नींद से
चला गया था ‘साल’ घर-गांव छोड़कर
नहीं लौटा वह फिर कभी
पिता या मेले में हाथ छुड़ाकर भाग गए
किसी ज़िद्दी बच्चे की तरह !

निकल गया था फिर पूरा गांव उसे ढूँढने
गुम हुए एक बच्चे,एक पिता और अपने अतीत को
करता तलाश नंगे पैर हज़ारों मील साल-दर-साल
बिना किए परवाह भूख की, प्यास की
कभी ऑक्सीजन के खाली सिलेंडरों,
इंजेक्शनों की सुइयों के ढेरों के बीच
तो कभी अस्पतालों के पलंगों और
श्मशानों में लावारिस लटकी पड़ी
अस्थियों की पोटलियों के बीच !
बिताते हुए रातें
रेलगाड़ी के पहियों के नीचे !

दे रहे हो अर्ध्य तुम जिस नए साल के सूर्य को
वह वह नहीं है जो उगा था कभी, किसी साल
प्रतीक्षा करना पड़ेगी तुम्हें
बताएगा कोई ईमानदार ज्योतिषी
नहीं हुए हैं क्षीण कितने पुण्य तुम्हारे
कि लौटेगा कि नहीं वह बीता साल कभी
कि आएगी कि नहीं वह सुबह लौटकर
कर रहे हो तुम जिसकी प्रतीक्षा सालों से !

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