— रणधीर कुमार गौतम —
सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट महमूद प्राचा की याचिका पर ‘पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट, चंडीगढ़’ ने 9 दिसंबर 2024 को, अक्टूबर में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव के सभी चुनाव-सम्बन्धी कागज़ात और दस्तावेज़, नियम 93(2)(ए) के तहत 6 सप्ताह के भीतर उपलब्ध कराने और दिखाने का निर्देश दिया था।
हाईकोर्ट के इस आदेश के बाद, चुनाव आयोग से परामर्श कर केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय ने 2 सप्ताह के भीतर ही 20 दिसंबर 2024 को इस नियम में संशोधन कर दिया। इस संशोधन के कारण, जो अधिकार जनता को चुनाव संचालन से संबंधित तमाम जानकारी प्राप्त करने के लिए पहले मिला हुआ था, उसे केंद्र सरकार ने नियम 93(2)(ए) में संशोधन कर खत्म कर दिया। रूल 93(ए) में इस तरह के संशोधन के पीछे की पृष्ठभूमि क्या है?
देश में चुनाव प्रणाली के संबंध में संविधान के द्वारा अनुच्छेद 324 के तहत लोकसभा और विधानसभा का स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए एक स्थायी और स्वायत्त निकाय चुनाव आयोग का गठन किया गया है। अनुच्छेद 324 के अंतर्गत संसद ने एक कानून बनाया, जिसे “Representation of the People Act” (RPA) कहा गया।
संविधान 1949 में तैयार हो गया था, लेकिन इसे 1950 में लागू किया गया। 1951 में Representation of the People Act बनाया गया।1961 में इसी एक्ट के अंतर्गत Conduct of Election Rules बनाए गए, जिसमें चुनाव से संबंधित प्रक्रियाओं पर विस्तार से चर्चा की गई। रूल 93 शुरू से ही इसका हिस्सा था।
1971 में रूल 93 में “सेक्शन ए” जोड़ा गया। इसके बाद 1992 में दो संशोधन किए गए। पहले संशोधन में 93 के सब-सेक्शन 1 को A, B, C, D में विभाजित किया गया।”D” के तहत यह तय किया गया कि वह पैकेट जिसमें रिपोर्टर्स का रजिस्ट्रेशन होता है (फॉर्म 17ए के तहत) जनता को भी दिया जाएगा।
पारदर्शिता को बढ़ाने के लिए कंट्रोल यूनिट को सील करने का प्रावधान जोड़ा गया, जिसे केवल अदालत के आदेश पर ही खोला जा सकता था। अब तक रूल 93 में केवल दो मकसद से संशोधन हुए थे:
1. पारदर्शिता बढ़ाने के लिए।
2. कंट्रोल यूनिट के सील किए जाने के संबंध में।
लेकिन 20 दिसंबर 2024 को सरकार ने एक भिन्न मकसद से नया संशोधन किया। यह ध्यान देने वाली बात है कि Conduct of Election Rules में संशोधन का अधिकार केवल भारत सरकार को है। चुनाव आयोग अपने मन से इसमें संशोधन नहीं कर सकता।
संविधान में संशोधन के लिए संसद में दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। लेकिन Representation of the People Act में संशोधन करना हो तो संसद में 50% बहुमत की जरूरत होती है। वहीं, नियमों (रूल्स) में संशोधन के लिए संसद में पास करने की आवश्यकता नहीं होती। सरकार अपनी मर्जी से संशोधन कर सकती है और इसे संसद के पटल पर रख सकती है।
इस प्रकार, अगर सरकार चालाकी से नियमों में संशोधन करे, तो वह लोकतांत्रिक संस्थाओं को कमजोर कर सकती है। जहां तक इस नियम संशोधन की बात है, उसमें स्पष्ट रूप से यह लिखा गया है कि सरकार द्वारा किए गए संशोधन में इलेक्शन कमीशन ऑफ इंडिया से परामर्श किया गया है। नोटिफिकेशन की भाषा से यह प्रतीत होता है कि सरकार ने सर्वप्रथम अपने विवेक से इस पर विचार किया, फिर चुनाव आयोग से परामर्श लिया, और उसके निर्णय के बाद सरकार ने इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया।
दूसरी व्याख्या यह हो सकती है कि चुनाव आयोग ने सरकार को यह सुझाव दिया और सरकार ने उसके आधार पर संशोधन के प्रस्ताव को आगे बढ़ाया। अगर ऐसा हुआ होता, तो प्रोफेसर जगदीप चोकर के अनुसार, नोटिफिकेशन में यह लिखा जाना चाहिए था: “At the suggestion of the Election Commission of India.”
अंततः यह कहा जा सकता है कि यह संशोधन चुनाव आयोग की जानकारी और सहमति से हुआ है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट का फैसला:
जैसा कि हम जानते हैं, 9 दिसंबर 2024 को पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट महमूद प्राचा ने हरियाणा विधानसभा चुनाव (जो हाल ही में हुआ था) से संबंधित फॉर्म 17C, वीडियो रिकॉर्डिंग, और CCTV फुटेज की मांग की थी।
सरकार ने शुरुआत में कोर्ट में कहा कि एडवोकेट महमूद प्राचा न तो हरियाणा के मतदाता हैं और न ही चुनाव लड़े हैं, इसलिए उन्हें यह जानकारी नहीं दी जा सकती। लेकिन कोर्ट ने कहा कि महमूद प्राचा देश के नागरिक हैं, इसलिए उन्हें जानने का पूरा अधिकार है। हाईकोर्ट ने यह फैसला सुनाया कि उम्मीदवारों को तो यह जानकारी मुफ्त में दी जाएगी, लेकिन एडवोकेट महमूद प्राचा को कुछ शुल्क देना होगा। साथ ही, कोर्ट ने 9 दिसंबर 2024 को आदेश दिया कि हरियाणा चुनाव से संबंधित जानकारी 6 सप्ताह के भीतर प्रदान की जाए।
सरकार की संभावित रणनीति:
सरकार ने यह संशोधन किया है कि जो कुछ भी रूल्स में लिखा होगा, वही जानकारी महमूद जी को दी जाएगी। अब यह आशंका है कि सीसीटीवी फुटेज और अन्य वीडियो फुटेज को रूल्स में शामिल ही न किया जाए।
ध्यान दें कि 1971 में जब रूल 93 बना और 1992 में इसमें संशोधन हुआ, उस समय तक सीसीटीवी फुटेज या डिजिटल रिकॉर्डिंग जैसी चीजें मौजूद ही नहीं थीं। लेकिन दस्तावेजों की परिभाषा में वीडियो फुटेज भी शामिल होता है, जैसा कि एक आरटीआई के तहत जानकारी से पता चला है।
महत्वपूर्ण तारीखें:
1. कोर्ट का फैसला: 9 दिसंबर 2024
2. नोटिफिकेशन: 20 दिसंबर 2024
3. कोर्ट के फैसले का क्रियान्वयन: 20 जनवरी 2025
यदि 20 जनवरी 2025 तक महमूद प्राचा को संबंधित दस्तावेज नहीं मिलते हैं, तो वे कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट के आधार पर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं।
यह संशोधन और इसकी प्रक्रिया लोकतांत्रिक पारदर्शिता के लिए गंभीर सवाल खड़े करती है।अब दूसरा सवाल जो सामने आता है, वह यह है कि क्या संवैधानिक फैसले को सरकार किसी नोटिफिकेशन से बदल सकती है या नहीं? प्रोफेसर जगदीप चोकर कहते हैं कि इसे नोटिफिकेशन से नहीं बदला जा सकता। संविधान और अदालत के फैसलों को नोटिफिकेशन के माध्यम से बदलना संभव नहीं है।
यह मामला कोर्ट में जाएगा, और कोर्ट इस प्रकार के नोटिफिकेशन को निरस्त करेगी। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आगे क्या होता है। इस नोटिफिकेशन के संदर्भ में प्रोफेसर जगदीप चोकर कहते हैं कि सरकार द्वारा यह नोटिफिकेशन जवाबदेही से बचने के लिए लाया गया है, जो कहीं न कहीं लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करने की साजिश है।
एक सतर्क नागरिक के कर्तव्य से प्रेरित होकर, इस प्रकार के तमाम नोटिफिकेशन को लेकर सरकार से संवाद करना चाहिए। यदि सरकार संवाद न करना चाहे, तो आंदोलन करना चाहिए और इन फैसलों को अदालत में चुनौती देनी चाहिए। फिलहाल, महमूद प्राचा जी को सतर्क नागरिकता के कर्तव्य का पालन करने और लोकतांत्रिक चेतना जगाने के लिए साधुवाद।
(5 जनवरी ,2025 को जसवा द्वारा आयोजित एक ऑनलाइन गोष्ठी में आये विचारों के आधार पर)