सभापति कुर्सी छोड़ कर भागा और गांधीजी को अपना वक्तव्य समाप्त करना पड़ा !

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४ फरवरी १९१६ : काशी हिन्दूविश्वविद्यालय में लार्ड हार्डिंग ने शिलान्यास किया और उसके बाद सभा की कार्यवाही प्रारंभ हो गयी।

देश के प्रमुख राजा अपनी राजसी पोशाक और हीरे-जवाहरात के आभूषणों से सजे-सजाये बैठे थे ,गवर्नर भी अलंकरणों से सुसज्जित थे, सेठ, साहूकार, जमीन्दार, तल्लुकेदार भी अपनी-अपनी शान के मुताबिक सुशोभित हो रहे थे, वकील, डाक्टर भी बड़ी संख्या में मौजूद थे।

गांधीजी दक्षिण-अफ्रीका से अभी-अभी लौटे ही थे , दक्षिण-अफ्रीका में आन्दोलन के कारण यहां उन्हें लोग जान तो गये थे किन्तु उनका भाषण लोगों ने सुना नहीं था।

कई लोगों के द्वारा अंग्रेजी में दिये गये वक्तव्यों के बाद समारोह में गांधीजी से भी बोलने के लिये कहा गया :

गांधीजी ने हिन्दी में बोलना प्रारंभ किया तो श्रीमती एनी वीसेंट ने उनसे कहा कि आप भी अंग्रेजी में ही बोलें, किन्तु

गांधीजी ने उनकी ओर से मुंह फेर लिया और धारा-प्रवाह बोलने लगे >>

एक ओर तो आप भारत की गरीबी पर भी बोल रहे हैं तथा दूसरी ओर आप लोग इतने भव्य रत्नाभूषणों से सज कर आये हैं कि पेरिस से आया हुआ जौहरी भी चकित हो जायेगा , मैं कहता हूं कि जब तक आप इन गहनों को उतार कर देशवासियों को अमानत के रूप में नहीं सोंप देंगे तब तक भारत का विस्तार नहीं हो सकता ।

विद्यार्थी तो ताली बजाने लगे और राजा लोग नाराज होकर सभा में से उठने लगे । गांधीजी कहे जा रहे थे >> यह धन आया कहां से है ,यह धन तो किसानों के पास से आया हुआ है । आप किसानों की मेहनत को इस प्रकार से छीन लेते हैं ।

यह भावना स्वराज के खिलाफ है !

बार-बार टोके जाने पर भी गांधीजी बिना रुके बोले जा रहे थे >..

>आप समझते हैं कि मैंने शिष्टाचार का उल्लंघन किया है तो मैं आपसे क्षमा मांग रहा हूं लेकिन मुझे तो अपने दिल की ही बात कहनी है
और वह तो कहूंगा ।

>>>>>>>>>>>>>>>वायसराय बनारस में आये तो इतने जासूस तैनात किये गये कि हम थर्रा गये हैं , यह अविश्वास क्यों ? इससे तो अच्छा यही होता कि वायसराय हार्डिंग मर जांय !
शक्तिशाली सम्राट का प्रतिनिधि इतना डरता है ?
वह तो जीते-जी डर से मर रहा है ।

>>>>>>>>>>>आपने इतने जासूस हम पर थोपे कि भारत में इसकी प्रतिक्रिया में विप्लवकारी सेना पैदा हो गयी है और मैं स्वयं भी विप्लवी हूं ।

>>>>>>>>>>>हमें किसीसे डरने की जरूरत नहीं है ,न वायसराय से न महाराजा से ,न जासूसों से , न जज से क्योंकि हम ईश्वर में विश्वास करते हैं ।

तभी श्रीमती एनी वीसेंट ने चिल्ला कर कहा कि इसे बन्द कर दीजिये ,इसे बन्द कर दीजिये ।

गांधीजी बोले जा रहे थे >> यदि आप सोचती हैं कि मेरे बोलने से देश और साम्राज्य का हित-साधन नहीं हो रहा है ,तो मैं बन्द कर दूंगा ।

सभा चिल्लाने लगी >> बोलते रहें ,बोलते रहें ।

तभी सभापति महाराज-दरभंगा कुर्सी छोड़ कर भाग गये ।
गांधीजी को भाषण बन्द करना पडा ।
श्री लुई फिशर ने गांधीजी के इस भाषण का विस्तार से वर्णन किया है !

महात्मागांधी को समझने के लिए गहरी साधना की जरूरत है ! संपूर्ण गांधी वाङ्मय को जाने बिना न हिन्दुत्व को जाना जा सकता है , न राष्ट्रीय-अन्दोलन को और न भारत को !

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