आज महाकुंभ के लिए जाते समय नई दिल्ली स्टेशन पर भगदड़ में 15 व्यक्तियों के कुचलकर मरने की खबर है। यह मेरे लिए बहुत दर्दनाक है और मन में क्षोभ पैदा कर रहा है। सरकारी स्तर पर 144वें साल और 45 करोड़ के स्नान करने की संभावना आदि का प्रचार करने वालों ने जिस तरह हिंदू जनता को बार–बार प्रयागराज आने के लिए उकसाया, वह हत्या के अपराध से कम नहीं है। सरकार का काम सुविधाओं और सतर्कता का प्रचार करना है न कि लोगों को इसमें बड़े पैमाने पर आने के लिए उकसाना?
जनता के पैसे से जनता मारी जा रही है! गंगा में कुंभ से अमृत गिरा तो केवल प्रयागराज की गंगा अमृतमयी हुई या समूची गंगा? क्या अपने घर के पास वाली गंगा में नहाने से काम नहीं चलता?
मीडिया भी पता नहीं किस मशीन से गिनकर रोज 50 करोड़– 60 करोड़ का हल्ला मचा रहा है और हिन्दुओं को आने के लिए उकसा रहा है। मानो यदि वे नहीं आए तो अभागे हैं और उन्हें नरक जाना पड़ेगा। मीडिया ने धर्म को आस्था से बहुत दूर ले जाकर कल्पित आंकड़ों को अपनी रेटिंग का माल बना दिया है। देखने में लगेगा कि वह हिंदू धर्म का प्रचार कर रहा है, जबकि वह हत्यारा है!
हमने देखा कि प्रयागराज में भगदड़ की घटना हो या नई दिल्ली स्टेशन की, हिंदू ने हिन्दू को कुचला! किसी ने नहीं देखा कि वह जिन्हें कुचल रहा है, वे हिंदू हैं। अपनी जान, अपना अस्तित्व सबकुछ हो गया। जब धर्म धार्मिक पागलपन में बदल जाता है, वह आदमी को बर्बर बना देता है।
कई राजनीतिज्ञ इससे संतुष्ट हैं कि चलो 500–1000 लोग नहीं मरे। इतना बड़ा महाकुंभ, कुछ तो मरेंगे ही! इस महाकुंभ ने हिन्दू धर्म का अर्थ स्पष्ट करने की जगह सिर्फ यह शिक्षा दी है, अपने पुण्य और स्वर्ग की चिंता करो, बाकी को छोड़ो! धर्म की आंच में केवल अपनी रोटी सेंको! इस तरह की सोच धार्मिक नहीं बनाती अमानवीय बनाती है!
धर्म से यदि बुद्धि तत्व का निष्कासन हो जाता है, वह अपने में किसी नरक से कम नहीं होता!