रामकिशोर अब नहीं रहे!

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— राजकुमार जैन —

केला हूं, पर विरोध जरूर करूंगा। ऐसे थे हमारे साथी रामकिशोर जो अब नहीं रहे। लखनऊ के वरिष्ठ सोशलिस्ट साथी रामकिशोर के इंतकाल की खबर से एक खालीपन महसूस हुआ। रामकिशोर जी एक वैचारिक प्रतिबद्ध सोशलिस्ट होने के साथ-साथ एक प्रमुख लेखक, साहित्यकार भी थे। सोशलिस्ट तवारीख में वे एक सक्रिय संगठनकर्ता, सत्याग्रही तमाम उम्र बने रहे, उसकी अनेकों मिसाले हैं। वाराणसी में महात्मा गांधी के विचार केंद्र राजघाट के सर्व सेवा संघ परिसर को केंद्रीय सरकार द्वारा अवैध रूप से पुलिस के बल पर कब्जा कर जमीनदोज कर दिया गया था, उसके विरोध में आश्रम के बाहर मोर्चाबंदी की गई। रामकिशोर जी बीमार होने के कारण वहां जा नहीं सकते थे, परंतु उन्होंने घर पर ही उपवास करते हुए अपना विरोध प्रकट कर दियाl

लखनऊ में देशभक्तों की याद में समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों का वह आयोजन करते रहते थे। आचार्य नरेंद्र देव, जय प्रकाश नारायण, डॉक्टर लोहिया के अनुयाई होने के साथ-साथ वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भी बड़े प्रशंसक थे। समाजवादी सिद्धांतों, नीतियों, विचार दर्शन के प्रचार प्रसार में वे बड़ी शिद्दत से लगे रहते थे। सोशलिस्ट चिंतक मधु लिमए के जन्मशताब्दी समारोह के अवसर पर उन्होंने लखनऊ में एक बड़ा आयोजन किया था। इस प्रकार के आयोजनों में वह बेहद रूचि रखते थे। कपूरी ठाकुर जन्म शताब्दी समारोह के संदर्भ में मैंने उन्हें खत लिखा उन्होंने तत्काल उसका जवाब देते हुए लिखा।

साथी रामकिशोर जी,
सप्रेम नमस्कार,
जैसा कि आप जानते हैं कि कर्पूरी ठाकुर जी का जन्मशताब्दी वर्ष है। समाजवादी समागम पहल करके पूरे वर्ष इसको मुल्क के मुख्तलिफ स्थानो पर आयोजित करने का प्रयास कर रहा है। कई स्थानों पर प्रोग्राम की रूपरेखा भी बन चुकी है। आप हमेशा सोशलिस्ट तहरीक के विचारों, सिद्धांतों, नीतियो तथा उनके नेताओं पर अपने व्हाट्सएप ग्रुप तथा सभाओ इत्यादि द्वारा आयोजन करते रहते हैं। इसी कड़ी में आपसे अपेक्षा है, की महान सोशलिस्ट कर्पूरी जी की स्मृति में कोई आयोजन आप लखनऊ में अवश्य आयोजित करें। हमारा भरपूर सहयोग रहेगा। क्रांतिकारी अभिवादन के साथ, राजकुमार जैन प्रिय साथी राज कुमार जी नमस्ते।
आपका सुझाव बिल्कुल उचित और अनुकरणीय है। हम आपकी पोस्ट्स बराबर देखते रहते हैं और उनसे प्रेरणा लेते रहते हैं।हम स्वयं भी कर्पूरी जी पर कार्यक्रम करने की योजना बना रहे थे। और अब तो आपका निर्देश है। हम शीघ्र ही साथियों से बात करके कार्यक्रम की रुपरेखा आपसे साझा करते हैं ।

आपका साथी
राम किशोर

मैंने अपने एक लेख में सोशलिस्ट आंदोलन में लगाए जाने वाले नारों जो एक प्रकार का सोशलिस्ट मेनिफेस्टो होता था लिखा था। उसको पढ़कर उन्होंने जो खत मुझे लिखा उसमें समाजवादी आंदोलन तथा मुल्क की तात्कालिक सियासत की समीक्षा ही प्रस्तुत कर दी।

“जैन साहेब , आपने ऊपर जो नारे लिखे हैं हमने भी खुब लगाएं है। लेकिन ये नारे अब क्यों नहीं लगाए जाते हैं। इन नारो का लुप्त होना ही भाजपा की ताकत है। जब तक यह नारे लगते थे तब तक साम्प्रदायिकता इस तरह हावी नहीं थी। लेकिन जैसे ही यह नारे विलुप्त होने लगे जनसंघ स्वतंत्र पार्टी और शिवसेना जैसी पार्टियों का वर्चस्व बढने लगा। बहुत बार मुझे लगता है कि सवेरे सवेरे जो प्रभातफैरिया निकती थी उनका भी समाज में बहु असर होता था। लेकिन 1977 के बाद जो बिना सिंद्धांत और नीति के तिकड़म की राजनीति शुरू हुई है उसने देश की दिशा और दशा बदलने में प्रमुख भूमिका निभाई। 1990 के बाद तो बड़ी बेशर्मी से हमने समाजवाद को सबसे खराब सिद्धांत के रूप में देखने लगे। जमाजवाद का नाम लेना भी पाप करने जैसा हो गया। 1990 के बाद से जितनी सरकारे आई किसी ने भी नरसिम्हा राव की नीति से हटने का नाम भी नहीं लिया। आज हालत इतने भयावह है कि बयान करना मुश्किल है। खैर मै तो यह कहना चाहता हूं कि फिर से उन्ही नारो को लगाया जाए और लगवाए जाय तो स्थित में बदलाव संभव है “।

सोशलिस्ट विचारधारा के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने “सोशलिस्ट व्हाट्सएप ग्रुप” भी बनाया। जिसमें एक व्यक्ति विशेष जो लगातार सोशलिस्ट आंदोलन खास तौर से जेपी, लोहिया के विरुद्ध विष वमन करने में लगा हुआ है, उसने उस ग्रुप को भी अपने प्रचार का जरिया बनाने का प्रयास किया। परंतु राम किशोर जी ने उस पर कड़ी आपत्ति व्यक्त करते हुए लिखा,
“ग्रुप बनाते समय यह सोचा नहीं था कि स्वयं को सोशलिस्ट कहने और मानने वाले साथी अपने ही नेताओं को जिन्हें समूचा विश्व समादर देता है इतनी थोथी छिछली और स्तरहीन बाते कहेगें। इस तरह से कीचड़ उछालने से किसको लाभ मिल रहा है , कौन नहीं जानता।

हमने शुरू में ही निवेदन किया था कि कृपया इस ग्रुप में धार्मिक, गुड मॉर्निंग, गुड इवनिंग, बर्थडे संबंधित पोस्ट्स कतई न डालें, ये समूह सीरियस डिस्कशंस, उपयोगी जानकारी, वैचारिक विमर्श, socialist reactions, sharing relevant documents, के लिए है, प्रयास है कि बचे खुचे committed socialists, इस मंच से जुड़े और एक दूसरे का सहारा बनकर अंधेरे को आलोकित करें हम चाहते हैं कि डेली मुख्य मुद्दों पर सोशलिस्ट प्वाइंट ऑफ व्यू रख दिया जाए, जिससे बहस में क्लैरिटी और दिशा रहे, चुनावी राजनीति से बाहर निकलकर राष्ट्र के दूरगामी हितों का संदर्भ लेते हुए प्रतिक्रिया व्यक्त की जाए, सरकारें आएंगी, चली जायेंगी, देश और समाज यहीं रहेगा।

हम सोचते थे कि हमारे साथी महगाई , बेरोजगारी , निरंतर बढ़ती जा रही आर्थिक असमानता………………. मणिपुर जैसे प्रश्नों पर अपने विचार रखेंगे , सोशलिस्टो को क्या करना चाहिए, सुझाव देगें …………..

I HATE UGLYNESS AND CRUELITY THAT IS WHY I AM SOCIALIST……. YUSUF MEHAR ALI”
इसके बाद उस इंसान को वहां से हटना पड़ा। राम किशोर जी सत्याग्रही होने के साथ-साथ एक उच्च कोटि के लेखक और साहित्यकार भी थे। उनकी अभी तक 15 पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।

‘पोटा एक काला कानून’ ‘इंकलाब जिंदाबाद’ ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस’ ‘सोशलिस्ट चिंतक विचारक मधु लिमए’ ‘धर्मनिरपेक्षता और राष्ट्रीय एकता’ ‘जब्तशुदा कहानीया’ ‘फांसी के तख्त से प्रेरक प्रसंग” राही मासूम राजा की कहानीया’ ‘नेताजी सुभाष चंद्र बोस युवकों से’ ‘राष्ट्रवाद देशभक्ति और देशद्रोह’ ‘हजार रंग में डूबी हुई हवा’ ‘साहित्यकारों की दृष्टि में राममनोहर लोहिया’ ‘नेताजी सुभाष बोस के महत्वपूर्ण भाषण’ ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ ।

वक्त वक्त पर विभिन्न समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में उनके द्वारा सैकड़ो लेख लिखे गए थे। साहित्यकारों के दब्बूपन पर अफसोस व्यक्त करते उन्होंने लिखा था।

“साहित्य फिलहाल थम सा गया है। लगता है रचनाकार साँस लेने को भी कतरा रहे हैं। जब जीवन जर्जरित हो रहा है। कलम के सिपाही मौन धारण करके बैठे हुए हैं। एक दिन यह मौन विस्फोटित होगा”।

वह डॉक्टर राही मासूम रजा साहित्य अकादमी के संस्थापक महामंत्री तथा सोशलिस्ट फाउंडेशन के संस्थापक अध्यक्ष भी थे।हमारे वरिष्ठ साथी रामकिशोर जी के जाने से निश्चित तौर पर सोशलिस्ट तहरीक को गहरी क्षति हुई है। मैं अपने श्रद्धा सुमन उनकी याद में अर्पित करता हूं।

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