— राजकुमार जैन —
आजकल सोशलिस्टों खास तौर से जयप्रकाश नारायण तथा डॉ लोहिया को बदनाम, तथा उन पर कीचड़ उछालने में लगे हैं। इनका आरोप है कि आरएसएस बीजेपी, जेपी, लोहिया की वजह से गद्दी नशीन हुई है। अगर पड़ताल की जाए तो पता चलेगा कि इनमें अधिकतर वे लोग हैं जो कांग्रेसी राज्य में मलाई चाट रहे थे। किसी न किसी पद पर काबिज थे। कांग्रेस ने 54 साल केंद्र में तथा राज्यों में अपना शासन चलाया, कांग्रेसी राज की बुनियाद मैं आजादी के जंग की विरासत तथा उसके गर्भ से निकले पंडित जवाहरलाल नेहरू मौलाना अब्दुल कलाम आजाद सरदार पटेल की रहनुमाई तथा उसके सामने मजबूत विपक्षी दल का न होना था। इस तथ्य को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि कांग्रेस के लंबी अवधि के राज में कांग्रेस पार्टी की ओर से कैडर निर्माण, वैचारिक शिक्षण प्रशिक्षण, की कोई परिपाटी नहीं थी। इसका फायदा उठाते हुए तथाकथित प्रगतिशील एक तपका सरकारी साधनों का इस्तेमाल, कांग्रेस के मंत्रियों की जी हजूरी तथा उनको प्रगतिशील करार देने की सनद देकर सरकारी विभागों मंत्रालयों, विदेश में जाने वाले प्रतिनिधि मंडलों, यूनिवर्सिटी के उप कुलपतियों, प्रोफेसरों, विभिन्न सरकारी निकायों की सलाहकार समितियों की परामर्शदाता समितियों, टेलीविजन और प्रिंट मीडिया संस्थानों की सलाहकार समितियों उसके निदेशक मंडलों इत्यादि के साथ-साथ अपने द्वारा बनाई गई संस्थाओं में बड़े स्तर पर सरकार तथा औद्योगिक व्यापारिक घरानों से आर्थिक मदद भी पाता रहा। कांग्रेस राज के जाने तथा भाजपा के शासन में आने के बाद उनके पद छिन गये, उससे व्यथित होकर इन्होंने अपनी कुंठा निराशा बौखलाहट जेपी लोहिया पर आरोप लगाकर अपनी खाज खुजलाने का सुख महसूस कर रहे हैं।
डॉ लोहिया ने 1952, 57 62 के आम चुनाव में कांग्रेस की एक तरफा जीत तथा बंटे हुए विपक्ष को देखते हुए गैर कांग्रेसवाद की रणनीति, जिसका मुख्य आधार समयबद्ध न्यूनतम कार्यक्रम,जो कांग्रेस तथा विपक्ष की नीतियों के फर्क को दर्शाता था दी थी। उसमें कम्युनिस्ट पार्टी भी शामिल थी। आठ राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी जिसमें कम्युनिस्ट पार्टी के भी मंत्री बने। डॉ लोहिया घोषणा पत्र को अमली जामा पहनाने के लिए लिए अडिग थे। न्यूनतम कार्यक्रम में सवा छह एकड़ अलाभकारी जोत से लगान माफ करने का नियम बनाया था। उत्तर प्रदेश की सरकार ने उसको अभी तक क्रियान्वित नहीं किया था डॉ लोहिया ने अपनी नाराजगी प्रकट करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार में शामिल सोशलिस्ट मंत्रियों को फटकार लगाई उनसे मिलने से मना कर दिया। इसी प्रकार बिहार में एक संसद सदस्य ने मंत्री बनने के लिए संसद सदस्यता छोड़कर विधानसभा में मंत्री बनने का प्रयास किया। कर्पूरी ठाकुर दिल्ली में आए और डॉक्टर साहब से कहा कि आप इस नियम में ढील दीजिए वरना सरकार गिर सकती है, उसके उत्तर में डॉक्टर लोहिया ने कहा कल की गिरती आज गिर जाए। 57 साल की उम्र में डॉक्टर लोहिया का इंतकाल हो गया।
जंगे आजादी मैं बरतानिया हुकूमत के खिलाफ लड़ते हुए जयप्रकाश नारायण ने 6 साल जेल की यात्राएं सही। आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उनको अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने का इसरार किया। परंतु जयप्रकाश जी ने मजबूत विपक्ष के लिए कांग्रेस पार्टी छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी बनाकर संघर्ष का पथ चुन लिया। उस दौर में देश पर आई विपत्तियों कश्मीर, नागालैंड जैसे सवालों पर हस्तक्षेप करते हुए इसका हल निकालने पर जुट गए। चंबल बीहड़ के डाकुओं को आत्म समर्पण करवा उस समस्या का शांतिपूर्ण हल निकाला। बिहार में लोकतंत्र की बहाली तथा भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए चल रहे छात्र आंदोलन में अन्य संगठनों के साथ-साथ अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के नेता भी उसमें जुटे हुए थे। कांग्रेसी और कम्युनिस्टों ने आरोप लगाया की जयप्रकाश जी फासिस्टो की रहनुमाई कर रहे हैं, तो जयप्रकाश जी ने आंदोलन में जुटे हुए उन छात्रों का पक्ष लेते हुए कहा कि अगर यह फास्टिस है तो मैं भी। एक विशेष संदर्भ में उनके कहे गए वाक्य को पकड़कर उन पर दोषारोपण किया जा रहा है। लोहिया 58 साल तथा जयप्रकाश जी 45 साल पहले इस दुनिया से चले गए हैं। जयप्रकाश लोहिया पर आरोप लगाना अपने मुंह पर ही थूकना होगा।
दूसरी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ भाजपा के इतिहास को भी जानना जरूरी है 1925 में बना राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अपनी विचारधारा पर अडिग रह कर लाखों स्वयंसेवकों को तैयार कर, बिना किसी आंतरिक टूट के अपने संगठन की जड़ें पाताल में जमाने में लगा रहा। संघ एक और भाजपा पार्टी के तौर पर कार्य कर रहा था वहीं सैकड़ो उसके सहमना संगठनों जो की मुख्तलिफ नाम, क्षेत्र, वर्गों, भाषाई ग्रुपों, धार्मिक, जातियों, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक संगठनों के तले अपना विस्तार दूर दराज आदिवासी क्षेत्रों, नॉर्थ ईस्ट तक में फैलाता रहा। कांवड़ जैसे धार्मिक आयोजन कर बेरोजगार पिछड़े वर्गों के नौजवानों को उसमें जोड़कर उन्मादी नारे लगवा कर बजरंग दल जैसे संगठन की मार्फत अपना कैडर बनाने में लगा रहा। हिंदू मुस्लिम नफरती नारे उछालकर हिंदुओं को गोलबंद करने में भी सफलता प्राप्त करता गया।
कांग्रेसी राज और भाजपा राज का अंतर देखिए। भाजपा के राज में धनपतियों और रिश्वत से मिले पैसों को भाजपा के मंत्री अपनी जेब भरने के साथ-साथ पार्टी फंड में भी बड़ी राशि के रूप में देते रहे, जिसका नतीजा है कि दिल्ली शहर की सबसे महंगी जमीन पर हजारों गज के भूखंडों को अपने संगठनों को आवंटित करवा कर भव्य भवन बनाकर सैकड़ो स्वयंसेवकों को पूर्णकालिक संगठन के कार्य में लगा दिया। झंडेवालन दिल्ली में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मुख्य कार्यालय के नए बने भवन को देखकर आप दंग रह जाएंगे।दिल्ली शहर के हर जिले में भाजपा के अपनी मिल्कियत के कार्यालय स्थापित है। उनके सैकड़ो बुद्धिजीवी नियमित रूप से संगठन के विस्तार के लिए रिसर्च में लगे रहते हैं। हिंदुस्तान के तमाम प्रकार के प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया संस्थानों को अपने कब्जे में कर उसमें स्वयंसेवकों को लगाकर अपने प्रचार तंत्र को दिन-रात मजबूती प्रदान कर रहा है। दूसरी ओर इतने दिनों शासन में रहने वाली कांग्रेस के वैचारिक प्रकोष्ठ का जमीनी कोई कार्य ही नहीं था। भ्रष्ट कांग्रेसी मंत्रियों ने करोड़ों रुपए लूटकर केवल अपनी जेबें भरी, कांग्रेसी संगठन को दमड़ी भी नहीं दी जिसके कारण हालात यहां तक पहुंच गए कि कांग्रेस के मुख्यालय के पास बिजली, पानी वहां के कर्मचारियों को वेतन देने का भी संकट उत्पन्न हो गया।
1977 में केंद्र में पहली गैर कांग्रेसी सरकार मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी। सरकार में शामिल जनसंघ ने जनता पार्टी संगठन और सरकार को अपनी मुट्ठी में बंद करने का कार्य शुरू कर दिया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने एजेंडे को तेजी से लागू करने का प्रयास शुरू कर दिया। इस खतरे को भांपकर सबसे पहले सोशलिस्ट नेता मधु लिमए ने दोहरी सदस्यता का सवाल उठाकर आवाज लगाई कि जनसंघं को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से अपना नाता तोड़ना होगा। बावेला मच गया। इसमें न केवल संघी, वे लोग भी जो मंत्री पद पर बैठे थे उन्होंने सोशलिस्टों पर हमला बोल दिया। यह पार्टी तोड़क है, विदेश से इन्हें धन मिल रहा है जैसे आरोप लगाने शुरू कर दिए। इस लड़ाई में सोशलिस्टों ने भी गोलबंद होकर मधु लिमए, राजनारायण, कर्पूरी ठाकुर के नेतृत्व में संघ के खिलाफ मुहिम छेड़ दी। राज्यों में उत्तर प्रदेश में सोशलिस्ट मुलायम सिंह तथा बिहार में लालू यादव की सरकारें थी। उन्होंने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को रोकने तथा बिहार में लालकृष्ण आडवाणी के राम रथ को रोकने के लिए अपनी सरकारे दांव पर लगा दी। उसके बाद सोशलिस्टों ने भाजपा के खिलाफ बिगुल बजा दिया जो आज तक जारी है। अब सवाल है यह है कि इन मलाई चाटने वालों का क्या इतिहास है? उन्होंने कितना त्याग या संघर्ष भाजपा के खिलाफ किया। सोशलिस्ट, जवाहरलाल नेहरू का विरोध प्रधानमंत्री की नीतियों का करते थे, परंतु जब भाजपाइयों ने जवाहरलाल नेहरू पर व्यक्तिगत हमने शुरू कर दिए तो सबसे पहले सोशलिस्ट बुद्धिजीवियों ने जंगे आजादी के अपने नायक पंडित जवाहरलाल नेहरू के पक्ष में लिखना शुरू कर दिया। सोशलिस्ट जानते हैं कि हमारी एकमात्र लड़ाई संघ भाजपा से है। अगर संघ रहा तो हिंदुस्तान से लोकतंत्र, समता स्वतंत्रता, गंगा जमुनी तहजीब का खत्मा हो जाएगा इसलिए अपने पुराने सारे मतभेदों को बुलाकर कांग्रेस के साथ साझेदारी करके उत्तर प्रदेश, बिहार में भाजपा के खिलाफ मोर्चाबंदी कर दी।
मुझे तो ऐसी भी सूचना मिली है कि भाजपा ने अपना एक गुप्त संगठन जिसमें ऐसे लोगों को भर्ती किया जो ऊपरी तौर पर भाजपा विरोधी तस्वीर बनाए रखेंगे परंतु हकीकत में वे उन संगठनों, नेताओं को जो भाजपा का घोर विरोध संसद से लेकर सड़क तक कर रहे हैं उनको बदनाम करने का काम करेंगे ताकि भाजपा का शासन निर्बाध चलता रहे। राहुल गांधी ने कांग्रेस संगठन में स्लीपर सेल के नाम से इनका जिक्र भी किया है। भाजपा के इन छिपे हुए तत्वों ने ऊपरी तौर पर कांग्रेस हमदर्द का चोला पहनकर आपातकाल का भी समर्थन शुरू कर दिया ताकि भाजपा हमलावर तरीके से इस सवाल को उठा सके। आज भी भाजपा हर साल 25 जून को आपातकाल विरोधी दिवस के रूप में बड़े स्तर पर आयोजित करती है ताकि लोकतंत्र का गला घोंटने के लिए कांग्रेस को कटघरे में खड़ा किया जा सके। हालांकि कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेताओं ने आपातकाल की अपनी गलती को स्वीकार कर माफी भी मांग ली। सोशलिस्टो पर आरोप लगाने वाला तपका नीतीश कुमार, रामविलास पासवान, जॉर्ज फर्नांडीज जैसे लोगों का उदाहरण देकर सोशलिस्टों को बदनाम करने का प्रयास करता है। मगर वह भूल जाते हैं कि कुछ गद्दारों से तमाम संगठन पर लानत नहीं लगाई जा सकती। जिस स्तर पर कांग्रेस से भाजपा में शामिल होने वालों की सूची है तो आंखें चुंधिया जाएगी।
बरसोंबरस राज्यों के मुख्यमंत्री, केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मंत्री, संसद सदस्य, विधायक रहे कांग्रेसियों की लिस्ट बनानी भी मुश्किल हो जाएगी। यह वर्ग लोहिया पर आरोप लगाता है कि उन्होंने 1967 में जो गैर-कांग्रेसवाद की नीति बनाई थी उसके कारण भाजपा को समाज में स्वीकृति मिल गई। इन लोगों को शायद यह पता नहीं कि1962 में चीनी हमले के बाद भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 1963 की गणतंत्र दिवस की परेड में संघ के गणवेश धारी जत्थे को गणतंत्र दिवस की परेड में शामिल किया था। इस तर्क से तो संघ को इज्जत दिलाने का आरोप तो सबसे पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू पर लग सकता है। 1984 के आम चुनाव में भाजपा को केवल दो लोकसभा सीट मिली थी। परंतु 1989 में भारत के प्रधानमंत्री के तौर पर विश्वनाथ प्रसाद सिंह ने शपथ ली थी। इस सरकार को भाजपा और कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वाम मोर्चे का भी समर्थन मिला हुआ था। उस समय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता हरकिशन सिंह सुरजीत और ज्योति बसु, कम्युनिस्ट पार्टी के नेता इंद्रजीत गुप्ता और भाजपा के अटल बिहारी वाजपेई, तथा लाल कृष्ण आडवाणी हर मंगलवार को प्रधानमंत्री के निवास पर बैठक कर सरकार के शासन प्रशासन पर चर्चा करते। हालांकि हम जानते हैं की व्हाट्सएप ग्रुप के इन वीरों की कोई औकात नहीं, जमीनी स्तर पर भाजपा के खिलाफ लड़ने का इनका कोई माद्दा नहीं, फिर भी ऐसे तत्वों का जो कांग्रेस के हमदर्द बनकर भाजपा विरोधियों में गलतफहमी पैदा करना चाहते हैं, उनका पर्दाफाश करना जरूरी है। आज के हालात में सभी मुल्क परस्त, तरक्की पसंद, लोकतांत्रिक समाजवादी, सांप्रदायिकता विरोधी ताकतों का मजबूती से गोलबंद लामबंद होकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ,भाजपा के खिलाफण संघर्ष करना जरूरी है।