हे नम्रता के सागर !
दीन की हीन कुटिया के निवासी !
गंगा यमुना और ब्रह्मपुत्र से सिंचित
इस सुन्दर देश में
तुझे सब जगह खोजने में मुझे मदद दे !
मुझे खुला दिल और ग्रहणशीलता दे
इस देश की जनता से एकरूप होने की
शक्ति और उत्कंठा दे ।
हे भगवन् , मुझे वरदान दे
कि सेवक और मित्र के नाते
जिस जनता की हम सेवा करना चाहते हैं
उससे कहीं अलग न पड़ जाँय !
हमें त्याग , भक्ति और नम्रता की मूर्ति बना
ताकि इस देश को हम ज्यादा समझें और ज्यादा चाहें !
महात्मागांधी
वर्धा
१९-९-१९३४