समाजवादी स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामकिशन जी को सादर सलाम।

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Randhir K Gautam

— रणधीर गौतम —

लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के सह-चिंतन शिविर दिनांक 12 अप्रैल 2025 को लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान के सह-चिंतन शिविर में प्रख्यात समाजवादी नेता एवं आंदोलनकारी पंडित रामकिशन जी के सुपुत्र डॉ. संजय शर्मा जी से मुलाकात हुई पंडित रामकिशन जी अब सौवें वर्ष में प्रवेश कर चुके हैं। उनकी सामाजिक और राजनीतिक संघर्ष यात्रा की शुरुआत 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ से हुई थी, और तब से उन्होंने जीवनपर्यंत राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा के साथ समाजवाद और स्वतंत्रता संग्राम के मूल्यों को अपने राजनीतिक सिद्धांत, कर्म और वचन में साकार किया। वे 1977 में भरतपुर से सांसद रहे, साथ ही चार बार—1962, 1967, 1974 और 1990 में—विधानसभा सदस्य के रूप में चुने गए।

उन्होंने अपने संस्मरणों, जीवन अनुभवों और देश के प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं के साथ अपने संवादों को एक पुस्तक के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसका शीर्षक है—”मैं जिंदा हूं: शताब्दी का साक्षी—समाजवाद का प्रहरी”।

राजस्थान के भरतपुर को अपनी राजनीतिक साधना का केंद्र बनाकर पंडित रामकिशन जी ने समाजवादी विचारधारा और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत से प्राप्त मूल्यों और प्रेरणाओं को जनसेवा के माध्यम से मूर्त रूप देने का कार्य किया।

पंडित रामकिशन जी के दर्शन का सौभाग्य मुझे मधुलिमये जनशताब्दी समारोह में प्राप्त हुआ था, जो समाजवादी समागम द्वारा आयोजित किया गया था। मात्र 20 मिनट की बातचीत में मुझे उनके व्यक्तित्व की गहराई और प्रेरणा का अनुभव हुआ—वह सब कुछ मूर्त रूप में दिखा जिसे हमने प्रोफेसर आनंद कुमार के मार्गदर्शन में प्रकाशित उनके अभिनंदन पत्र में समाहित किया था।
लोकतांत्रिक राष्ट्र निर्माण अभियान जहां-जहां भी शिविर आयोजित करता है, मैं प्रयास करता हूं कि उसमें अवश्य शामिल हो सकूं। ऐसे शिविरों में भाग लेने से न केवल आंदोलन, लोकतंत्र और सामाजिक न्याय पर गंभीर विमर्श को समझने का अवसर मिलता है, बल्कि अनेक गुमनाम नायकों की प्रेरणादायी कहानियों, संस्मरणों और उनके शिष्यों के अनुभवों के माध्यम से भी जनमानस को सीखने और प्रेरणा ग्रहण करने का अवसर प्राप्त होता है।

डॉ. संजय शर्मा यह बताते हुए कि उन्होंने प्रोफेसर आनंद कुमार को इस पुस्तक के विमोचन में क्यों आमंत्रित किया, कहते हैं कि प्रोफेसर आनंद कुमार का परिवार तीन पीढ़ियों से समाजवादी आंदोलन और स्वतंत्रता संग्राम की विरासत को सहेजने और आगे बढ़ाने में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। उनकी दो पीढ़ियों के लोग पंडित रामकिशन जी के राजनीतिक जीवन और समाज-केन्द्रित, परिवर्तनशील एवं न्यायपूर्ण कार्यों से भलीभांति परिचित हैं।

पंडित रामकिशन जी के कार्यों की जानकारी प्रोफेसर आनंद कुमार को 1962-63 से ही मिल रही थी, विशेषतः उनकी समाजवादी पारिवारिक पृष्ठभूमि के कारण। राजस्थान में सूर्य नारायण चौधरी के माध्यम से, और बाद में विज्ञान मोदी जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं के जरिए भी उन्हें पंडित रामकिशन जी के बारे में निरंतर जानकारी मिलती रही।

प्रोफेसर केदार जी, मुरलीधर व्यास, सूरज नारायण चौधरी, मानिकचंद सुराना, गणेश मंत्री (प्रो. पुरुषोत्तम मंत्री के पुत्र), हीरालाल जैन और पंडित रामकिशन जी जैसे समाजवादियों ने राजस्थान में वैकल्पिक राजनीति की अवधारणा को आगे बढ़ाने का कार्य किया। समाजवादी धारा को स्वच्छ, संघर्षशील और न्यायपूर्ण राजनीति के लिए पहचाना जाता था, जिसमें पंडित रामकिशन जी का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है।

डॉ. राममनोहर लोहिया ने 1958 में पंडित रामकिशन जी को राजस्थान में सोशलिस्ट पार्टी का पहला प्रेसिडेंट नियुक्त किया था। इस पर पंडित जी ने कहा था कि हीरालाल जैन जी हमसे अधिक पढ़े-लिखे हैं, उन्हें यह पद मिलना चाहिए। इस पर डॉ. लोहिया ने मुस्कराते हुए कहा—”मुझे मत बताओ कि मुझे क्या करना है।” पंडित रामकिशन जी ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में लोहिया जी के इस विश्वास को कभी भी झूठा साबित नहीं होने दिया। इसी तरह, जब पंडित रामकिशन जी ने एक बार डॉ. लोहिया को अपने गांव में किसी सभा के लिए आमंत्रित किया, तो डॉ. लोहिया ने नर-नारी समता पर एक अत्यंत विचारोत्तेजक उद्बोधन दिया। अपने वक्तव्य में उन्होंने यह भी कहा कि उनकी एक महिला मित्र हैं, जिनके साथ वे दिल्ली में रहते हैं—यह संकेत उन्होंने रमा मित्रा की ओर करते हुए दिया। वे ग्रामीण समाज की संकीर्णताओं के बीच भी नर-नारी समता और स्वतंत्रता पर आधारित संबंधों की बात खुलकर कर रहे थे। डॉ. लोहिया अपने भाषणों में अक्सर स्वतंत्रता-उन्मुख रिश्तों की बुनियाद को बेहिचक लोगों के सामने रखते थे। यह देख पंडित रामकिशन जी अत्यंत आश्चर्यचकित रह गए।

पंडित रामकिशन जी ने दलितों और वंचितों की आवाज़ बनकर सामाजिक न्याय और बंधुत्व की भावना को साकार किया। साथ ही पर्यावरण के मुद्दों, विशेष रूप से जल संकट पर भी उनका विशेष ध्यान रहा। राजस्थान में जल संकट एक गंभीर चुनौती रही है। सन् 2007 में भरतपुर जिले की तीनों नदियां सूख गई थीं। उसी दौरान समाचार आया कि कोटा बैराज से छोड़ा गया अतिरिक्त जल समुद्र में व्यर्थ जा रहा है। पंडित जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मिलकर सुझाव दिया कि कोटा बैराज का सरप्लस पानी गंभीरी नदी में डाला जाए। इसके बाद चंबल के बजाय कालीसिंध नदी पर बांध बनाकर 13 जिलों को लाभ पहुंचाने की योजना बनी। यह पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण प्रयास था। आपको यह जानकर आश्चर्य नहीं होगा कि 37,000 करोड़ की Eastern Rajasthan Canal Project (ERCP) के पीछे भी पंडित रामकृष्ण जी का लगभग दो दशकों का संघर्ष और आंदोलन छिपा हुआ है।

एक संस्मरण में पंडित रामकिशन बताते हैं कि एक बार जब जगजीवन राम जी उनसे मिले, तो उन्होंने पूछा, “राम जी, मेरे क्षेत्र के लोग मुझे खुलकर वोट क्यों नहीं देते?” इस पर पंडित रामकिशन जी ने प्रतिप्रश्न किया, “क्या आप बता सकते हैं कि आपके क्षेत्र में कितने लोग बेरोज़गार हैं?” जगजीवन राम जी ने उत्तर दिया, “यह मुझे कैसे पता होगा?” इस पर पंडित जी ने कहा, “जब मैं विधायक था, मेरे क्षेत्र में तीन बेरोज़गार थे—दो दलित और एक ब्राह्मण। मैंने तीनों को नौकरी दिलवा दी थी।”

उन्होंने अपने क्षेत्र में शून्य बेरोज़गारी की स्थिति बनाने का प्रयास किया। डॉ. शर्मा बताते हैं कि पंडित रामकिशन जी ने उस समय हजारों लोगों को सरकारी नौकरियों में नियुक्त कराया था। उन्होंने यह भी सिद्धांत बनाया था कि सबसे पहले नौकरी उन्हें दी जाएगी जो भूमिहीन, अत्यंत गरीब अथवा विधवा के पुत्र हों। यह कर्पूरी ठाकुर की तरह का एक विशिष्ट “social empowerment model” था, जिसे उन्होंने राजस्थान में लागू किया। राजस्थान के सबसे वंचित वर्गों के पहले सरकारी सेवक बनने का अवसर पंडित रामकिशन जी ने ही साकार किया। उस समय जिला प्रमुख को यह अधिकार प्राप्त था कि वे कुछ नौकरियाँ सीधे तौर पर स्वयं नियुक्त कर सकते थे। जब वंचित वर्गों के लोगों को नौकरी दिलवानी होती, तो पंडित रामकिशन जी उन्हें नौकरी के योग्य बनाने के लिए विशेष रूप से तैयारी करवाते थे और प्रशिक्षण दिलवाते थे। इसके लिए वे सरकारी शिक्षकों का सहयोग भी लेते थे।

एक संस्मरण में वे बताते हैं कि एक स्नातक युवक चंबल से पैदल चलकर नौकरी की तलाश में उनके पास आया और भावुक होकर बोला, ‘मुझे नौकरी दीजिए, वरना मैं या तो मर जाऊँगा या फिर चंबल लौटकर बंदूक उठा लूँगा।’ उस समय पंडित रामकिशन जी के पास कोई उपलब्ध पद नहीं था, लेकिन उन्होंने तत्कालीन कलेक्टर से निवेदन किया कि किसी तरह उसे नौकरी दिलवाने का प्रयास करें।

कलेक्टर ने भरसक प्रयास किए और अपने कर्मचारियों को इस काम में लगाया। जब कहीं कोई जगह उपलब्ध नहीं दिखी, तो कलेक्टर ने यह पता लगाने को कहा कि कोई व्यक्ति है क्या जो दो-तीन महीनों में रिटायर होने वाला हो। एक ऐसा व्यक्ति मिला, जिसे कलेक्टर ने छुट्टी पर भेज दिया और उस स्थान पर चंबल से आए युवक को नौकरी पर रखवा दिया गया। वह व्यक्ति आज शिक्षक के रूप में कार्य कर रहा है।

जो व्यक्ति पहले आत्महत्या या डकैती जैसे रास्ते पर जाने को विवश था, वह आज समाज निर्माण में जुटा हुआ है—यह पंडित रामकिशन जी के प्रयासों का जीवंत प्रमाण है। ऐसे संस्मरण यह प्रेरणा देते हैं कि राजनीति में लोगों को “कुछ बनने” नहीं, बल्कि “कुछ करने” के लिए आना चाहिए।

ऐसे ही अनगिनत किस्से और प्रेरणादायक प्रसंग पंडित रामकिशन जी के अभिनंदन में प्रकाशित एक विशेष पुस्तक में संकलित किए गए हैं। इस पुस्तक का लोकार्पण 15 अप्रैल 2025 को राजस्थान की राजधानी जयपुर स्थित प्रेस क्लब में होने जा रहा है।

जयपुर में रहने वाले सभी साथियों से अनुरोध है कि इस लोकार्पण कार्यक्रम में अवश्य भाग लें और ऐसे जननायकों का हौसला बढ़ाएँ, जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र निर्माण को समर्पित कर दिया।

हम सबका नागरिक कर्तव्य है कि हम ऐसे नायकों को उचित सम्मान दें और आज के नेताओं के समक्ष एक नैतिक उदाहरण प्रस्तुत करें, जिससे उनके भीतर भी अंतरात्मा की आवाज जागे और राष्ट्र निर्माण की प्रेरणा उत्पन्न हो।

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