जगहें तेज़ी से ख़ाली हो रही हैं, भर जरा भी नहीं रहीं !

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shravan garg

— श्रवण गर्ग —

मा जी को लेकर स्मृतियाँ कोई अट्ठावन साल पुरानी हैं।बनारस में गंगा तट के निकट स्थित और तब सर्व सेवा संघ और गांधी अध्ययन संस्थान,आदि को अपने अंतःस्थल में समाए राजघाट परिसर में बिताए गए दिनों की। तब वह परिसर जीवंत था। कई परिवार जो उस समय वहाँ निवास करते थे उनमें नारायण भाई देसाई का प्रमुख था। उड़ीसा के प्रसिद्ध मुख्यमंत्री रहे नवकृष्ण चौधरी और मालती देवी की बेटी और नारायण भाई की अर्द्धांगिनी उत्तरा बहन देसाई परिवार की ‘बा’ थीं। उमा जी तब संघमित्रा थीं। वे तब या तो डॉक्टरी की पढ़ाई कर रहीं थीं या पूरी कर चुकीं थीं। मैं तब नारायण भाई और अमरनाथ भाई के एक सर्वोदय शिविर का शिविरार्थी था।शिविर कई दिनों का था।शायद दो सप्ताह से अधिक समय का रहा होगा। तब की स्मृतियों में यह भी शामिल है कि नारायण भाई के साथ गंगा की सैर करते हुए कैसे अचानक बरसात होने लगी और नाव में पानी भरने लगा था। शाम का वक्त था और नाव तब बीच गंगा में थी।सारे शिविरार्थी तब घबरा गए थे।

आज जब वे हमारे बीच नहीं रही संघमित्रा जी की बोलचाल, खादी की उड़िया साड़ी का उनका पहनावा, उनकी विनम्र आवाज़ स्मृतियों में उभर रहा है। नचिकेता उनसे छोटे थे। अफ़लातून के बारे में ज़्यादा याद नहीं पड़ता। नचिकेता ने तो बाद में मेरे साथ इंदौर में पत्रकारिता भी की थी। उसके भी पहले वे बिहार आंदोलन में सहयोगी रहे थे। संघमित्रा जी को लेकर यह भी याद पड़ता है कि बाद में वे इंदौर के किसी कार्यक्रम में भाग लेने आईं थीं। नारायण भाई भी उसमें थे। कोई सर्वोदय शिविर था।

नारायण भाई के संपर्क में बने रहने के कई अवसर मिलते रहे थे। दिल्ली, बिहार और अहमदाबाद इनमें शामिल हैं। दिल्ली में राजघाट कॉलोनी स्थित गांधी स्मारक निधि का परिसर ,बिहार में कदम कुआँ स्थित जेपी का निवास और अहमदाबाद में नारायण भाई का अपना घर।संघमित्रा जी के बारे में हमेशा ही सुनते रहते थे कि उन्होंने किस तरह अपने वैज्ञानिक पति डॉ सुरेंद्र गाडेकर के साथ मिलकर नारायण भाई के दक्षिण गुजरात में वेडछी स्थित संपूर्ण क्रांति विद्यालय का सारा काम संभाल लिया है।

पहले नारायण भाई, फिर नचिकेता और अब उमा जी भी चली गईं। एक-एक करके सब जा रहे हैं। जगहें तेज़ी से ख़ाली हो रही हैं, भर जरा भी नहीं रहीं ! उमा जी को विनम्र श्रद्धांजलि

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