— राकेश कायस्थ —
संकट के समय सरकार के साथ खड़े होना नागरिक का कर्तव्य है। लेकिन सरकार का कर्तव्य क्या है? पिछले सात दिनों में हमने जो देखा उससे स्पष्ट है कि न्यूतनम मानवीय गरिमा को छोड़कर इस राष्ट्रीय आपदा का इस्तेमाल सिर्फ विभाजनकारी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
एक नागरिक के तौर पर मेरी निष्ठा सिर्फ भारतीय गणराज्य या इंडियन स्टेट से है, किसी व्यक्ति या सरकार से नहीं। मेरे लिए सरकार की गलत नीतियों का विरोध करना ही सच्चा देशप्रेम है। इस समय जो कुछ चल रहा है, वह भविष्य की बहुत डरावनी तस्वीर पेश कर रहा है। मैं बिंदुवार बताता हूं कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हूं—
1. दुनिया के किसी भी हिस्से में पहलगाम जैसी घटना होती है तो देश का नेता सबसे पहले अपने सभी नागरिकों से एकता, शांति और सद्भाव बनाये रखने की अपील करता है। भारत के प्रधानमंत्री ने ऐसी कोई अपील नहीं की।
2. प्रधानमंत्री ने पीड़ित परिवारों के प्रति कितनी संवेदनशीलता दिखाई इसके विस्तार में जाने की आवश्यकता नहीं है। पूरे देश को पता है।
3. केंद्र सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों में एक पीयूष गोयल ने कहा कि 140 करोड़ भारतीय जब तक एक भी व्यक्ति देशभक्ति को धर्म नहीं मानेंगे ऐसा होता रहेगा। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के पास कोई अधिकार नहीं है। फिर भी उन्होंने विधानसभा में घटना की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए देश से माफी मांगी। केंद्र सरकार ने क्या किया? पीयूष गोयल ने पाकिस्तान के बदले हमले की जिम्मेदारी भारतीय नागरिकों पर डाल दी। यह शर्मनाक, निष्ठु और संवेदनहीन बयान है।
4. पहलगाम के बहाने सरकार और उसे चलाने वाली पार्टी ने अपने ही देश के एक नागरिक समूह के खिलाफ एक तरह का छाया युद्ध छेड़ दिया है। मंत्री, सांसद और विधायकों के उकसावे भरे बयानों का असर यह है कि देश के अलग-अलग इलाकों में एक समुदाय विशेष के लोगों पर हमले हो रहे हैं और सरकार की तरफ से इसे रोकने की कोई कोशिश दिखाई नहीं दे रही है। देश के तमाम धार्मिक समूहों ने पहलगाम की घटना का पुरजोर तरीके से विरोध किया है लेकिन एक खास समुदाय को अपमानित करने और उकसाने की संस्थागत कोशिशें चल रही हैं।
5. पीयूष गोयल का बयान कुछ इस तरह का है, जैसे कोई भीड़ को संबोधित करते हुए मां बहन की गाली दे रहे हों और कह रहे हों.. तुम में….. कोई …. है। कायदे से पूरे देश में इसका प्रतिकार होना चाहिए था। लेकिन बहुत से लोग इस बात पर मुदित हैं कि गालियां किसी एक समुदाय को पड़ रही है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि एक नागरिक के तौर पर उनकी मौत का मर्सिया पढ़ा जा रहा है।
6. यह बात साफ तौर पर समझ में आ रही है कि पाकिस्तान को युद्ध में पराजित करना या उसे सबक सिखाना उदेश्य नहीं है। अगर ऐसा होता तो सरकार सभी नागरिक समूहों को साथ लेती, प्रेम सद्भाव और एकता की बात करती।
7. एक समुदाय के खिलाफ छेड़े गये छाया युद्ध का उदेश्य एक राज्य की तरह पूरे देश को सांप्रादायिक रूप से स्थायी तौर पर विभाजित करना नज़र आता है, ताकि बिना किसी उत्तरदायित्व के अनंत काल तक सत्ता सुख भोगने का मार्ग प्रशस्त हो सके।
8. सबसे ज्यादा डरावनी चीज़ यह है कि भारतीय शब्द को बड़ी चालाकी से हिंदू शब्द से रिप्लेस करनी की कोशिश की जा रही है। भारत या भारतीयता एक शब्द नहीं है। हज़ारों साल से सृजित समस्त शुभ इच्छाओं की सामूहिक अभिव्यक्ति है। जो इसे निगलने की कोशिश करेगा, उसकी अंतड़ियां जल जाएंगी।
9. जिस हिंदू को रोल मॉडल बनाकर पेश किया जा रहा है, वह नया हिंदू कौन है? वह नया हिंदू वही है, जो सरकारी जमीन पर कब्जा करके मंदिर या मठ बनाकर बैठा है। जो कलम पकड़ने वाले हाथों में डंडे और तलवार पकड़ा रहा है। उन्हीं प्रतिनिधि हिंदुओं में एक हिंदू ने शांति बहाल करने गये एक पुलिस अधिकारी की हत्या करवाई थी और अब सीधे-सीधे प्रधानमंत्री से यह कहने की हिमाकत कर रहा है कि मैं तो तुम्हारे मुंह पर थूकूंगा भी नहीं।
10. अगर कोई और व्यक्ति होता तो उसपर बुलडोजर चल गया होता। लेकिन यह नया हिंदू है, अभी सरकार को उसकी जरूरत है। मिलिटेंट ओबीसी हिंदू इसलिए खड़ा किया जा रहा है ताकि अपने लिए शिक्षा और समान अवसर मांग रही विशाल बहुजन आबादी को संगठित होने से रोका जा सके। यह एक बेहद खतरनाक खेल है और आनेवाले दिनों में यह भारत को अफगानिस्तान या सोमालिया जैसा बना देगा।
11. इसी चक्कर में शास्त्रीय हिंदू परंपराओं को ताक पर रखकर, शंकराचार्यों को दर-किनार करके आपराधिक वृति वाले हिंसक किस्म के नये धर्मगुरूओं को आगे किया जा रहा है। पता नहीं ये बदलाव उच्चवर्णीय हिंदुओं को कैसे नहीं दिखाई दे रहा है, खासकर ऐसे लोगों को जिन्हें अपनी परंपराओं से बहुत प्यार है।
12. दुनिया की कोई भी सरकार राष्ट्रीय आपदा के समय अपने नागरिकों का गुस्सा भड़काने का काम नहीं करती है बल्कि उन्हें आश्वस्त करती है कि देश सुरक्षित हाथों में है और अपनी पेशेवर क्षमता के आधार पर सर्वश्रेष्ठ निर्णय लेती है। लेकिन इस वक्त सिर्फ हेडलाइन मैनेजमेंट चल रहा है। एक इवेंट की तरह स्थायी तनाव बनाये रखने में पूरा मीडिया तंत्र जुटा हुआ है। मैं एक नागरिक को दूसरे नागरिक से लड़ाये जाने के इन कुत्सित प्रयासों का विरोध करता हूं और देशहित में इसके खिलाफ बोलते रहने का संकल्प लेता हूं।