— चंचल —
लैला ( लीला , लइला ) कबीर फर्नांडिस का कल निधन हो गया । लैला कबीर फर्नांडिस मशहूर समाजवादी , मजदूर नेता जार्ज फर्नांडिस की पत्नी थी , लेकिन उनकी बस इतनी भर पहचान नहीं रही कि वे जार्ज की पत्नी थी । लैला की शख़्सियत बिल्कुल अलहदा थी । लैलाके पिता मरहूम हुमायूँ कबीर एक बड़े शिक्षा विद थे और पंडित नेहरू की सरकार में शिक्षामंत्री थे , लैलाकी मा शांति देवी कई स्वयंसेवी संस्थाओं की संस्थापक रही । लैला ख़ुद कई अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं से जुड़ी रही , वे रेडक्रास संस्थान से जुड़ी थी ।
वी पी सरकार मे जॉर्ज रेल मंत्री थे , हम उनके सहायक । जार्ज को जिस दिन संसद में रेल बजट पेश करना था , जार्ज ने हमे बुलाया –
– आज रेल बजट पेश होनाहै , जार्ज रुके , फिर बोले तुम लैला को संभाल सकते हो क्या ?
– क्या मतलब?
– आज संसद की दीर्घा में दो “ डैंजरस “ महिलायें बैठेगी , रेल बजट के दौरान किसी भी समय वे बजट के ख़िलाफ़ और मेरे ख़िलाफ़ नारा लगा सकती हैं , तुम्हें उनको संभालना है । दोनों तुम्हें मानती हैं ।
– कौन कौन हैं ?
– लैला और प्रमिला दंडवते
– देखता हूँ
– दर्शकदीर्घा me तुम उनके साथ रहना ।
संसद में हम लगातार दोनों महिलाओं के साथ रहा , बजट पेश हो गया , लैला और प्रमिला जी को रेल बजट पसंद आया । समाजवादियों की एक ख़ास अदा रही है , खुजली करने की , वे चैन से बैठ ही नहीं सकते । उस दिन हम बहुत ख़ुश रहे – चलो आज बड़ा काम हुआ । शाम को हम जार्ज के आस गए ।
– हाँ ! बोलो चंचल ?
– नहीं कुछ नहीं , सोचा आप काफ़ी पी रहे होंगे
– रुको बनाता हूँ , हमे भी पीना है ।
हम कमरे से बाहर आ गए , लान में कुर्सी लगा कर बैठ गए । जार्ज ख़ुद बहुत अच्छी काफ़ी बनाते थे । पावडर काफ़ी नहीं , काफ़ी बीज को मशीन से पीस कर काफ़ी बनाते थे । इसमें वक्त लगता है ।
उसूल और रिश्ते का यह नायाब जोड़ा तवारीख़ का हिस्सा है ।
अलविदा लैला जी !