दूसरों की विजय तुम्हारी नहीं
क्यों पीट रहे हो छाती
किसी की हार पर
जीत पर ढोल
जीत और हार
दोनों का चलता है व्यापार
चलचित्र में किसी नायक की विजय
तुम्हारी नहीं
खलनायक की विजय भी
कैसे हो सकती है तुम्हारी
राजनीति में शासकों की विजय भी
तुम्हारी नहीं
खेल के मैदान में खिलाड़ी की जीत पर
बजाते हो तालियाॅं
यह तो जीत है व्यापारी की
हार है तुम्हारी
दूसरे की जीत को
क्यों मान लेते हो अपनी विजय
चल रहा सारा खेल ही तुम्हें हराने का
अपने आपसे डिगाने का
दूसरों की विजय को
अपनी मान लेने का यह नाटक
रचा ही गया है तुम्हें हराने के लिए
आ सको तो
इस नाटक से बाहर आओ
सोचो! क्यों खुश हो लेते हो
दूसरों की जीत पर
क्यों नहीं कर पाते सामना
अपनी हार का
कोई हिसाब तो लगाओ
जीत के व्यापार का
तुम्हारी विजय का रास्ता
इस रंगशाला के बाहर है
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