शरीर में सिंदूर: एक प्राण घातक स्थिति!

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— बोधिसत्व —

जो वैद्यक जानते हैं उनको पता है कि शरीर में सिंदूर प्राण घातक यानी जानलेवा होता है! क्योंकि सिंदूर में शीशा जैसे तत्त्व होते हैं जो जीवन समाप्त कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति को बचाने के लिए गोबर आदि पिला कर उल्टी करवायी जाती है! कभी बहुत पहले मेरे गाँव की एक स्त्री ने सिंदूर पी लिया था तो उसे गोबर का घोल पिला कर उल्टी करवाने की बात का मुझे स्मरण है! और यदि सिंदूर नशों में है तब तो संकट बहुत गहरा है!

पुराणों में एक सिंदूर नाम के असुर का वर्णन मिलता है! उसका अंत देवी ने किया तो असुर का उबलता रक्त देवी के भाल पर पड़ा तो वहाँ से स्त्रियों की माँग में सिंदूर भरने की परंपरा आरंभ हुई! अभी समस्या है सिंदूर से जीवन मुक्ति का! क्योंकि शरीर में बहता सिंदूर कुछ भी कर सकता है।

सिंदूर का पेड़ आँगन में अशुभ माना जाता है और उसके बाग भी नहीं लगाए जाते! और अक्सर सिंदूर का प्रयोग शत्रुओं को भोजन आदि में मिला कर धीमे जहर के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है!

डॉक्टरों की मानें तो शरीर में गया सिंदूर साँस की गति रोक सकता है। दिमाग़ की नशें चिटक सकती हैं! व्यक्ति का बोलना रुक सकता है जिसे बोलती बंद होना कहते हैं! या कुछ भी आव बाव बकने लग सकता है! अपने पैर खड़े रहने की शक्ति खो देते हैं और पौरुष नष्ट हो जाता है। शरीर जगह जगह से फट सकता है! पाचन तंत्र पूरी तरह से नष्ट हो सकता है। तंत्रिका तंत्र नष्ट हो जायेगा!

अंग्रेजी पद्धति में भी शरीर को सिंदूर हीन करना ही एक मात्र उपाय रह जाता है! लेकिन यदि सिंदूर गरम है तब तो संकट और गहरा है। ऐसे में पहले सिंदूर और उसके प्रभाव को ठंडा करना होगा! सिंदूर से भरे शरीर वाले व्यक्ति को किसी शीत गृह में रखना होगा! नशों का सिंदूर तो गोबर आदि से तो नहीं निकलेगा!

एक डर और है सिंदूर सेवी व्यक्ति के प्रभाव में आये लोग सिंदूर का सेवन और लेपन न आरंभ कर दें! आपात स्थिति के लिए स्वास्थ्य सेवा विभाग को तैयार रहना होगा! इसके साथ मुझे हनुमान जी और गणेश जी के पौराणिक वैभव कम होने का भय है! कहीं लोग थोक में सिंदूर चुपड़ कर सड़क पर उतर पड़ें?  और तो और अनेक स्त्रियों के सिंदूर हीन होने की आशंका भी बनी हुई है! उनके सुहाग के साथ सिंदूर व्यापारियों की भी रक्षा हो! वे बेचारे शुद्ध सिंदूर अब कहाँ से पायेंगे! सारा सिंदूर तो कहीं और प्रवाहित हो रहा है!

सिंदूर वहीं शोभता है जहां उसका स्थान है! अन्यत्र उसे होना नहीं चाहिए! लेकिन यह युग ही बेढंगा है!

कैसे कैसे ऐसे वैसे हो गये
ऐसे वैसे कैसे कैसे हो गये


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