— राजेन्द्र राजन —
कितना आसान है
किसी और मुल्क में हो रहे
जुल्म के खिलाफ बोलना
इस पर वे भी बोलते हैं
जो अपने मुल्क में तमाम सितम
चुपचाप देखते रहते हैं
कभी मुंह नही खोलते।
कितना आसान है
दूसरों को उदारता का पाठ पढ़ाना
करते रहते हैं
उस धर्म के
कट्टरपंथ की निंदा।
कितना आसान है
महापुरुषों की तस्वीरों और प्रतिमाओं पर
फूल चढ़ाकर
अपनी जिम्मेदारियों से बचे रहना
हमारे समय के निठल्ले और कायर भी
गाते हैं पुरखों की वीरता के गीत
सुनाते हैं क्रांतिकारियों के किस्से।
कितना आसान है
अतीत के अत्याचारियों से लड़ना
हमारे समय के अत्याचारी भी
करते हैं अतीत के अत्याचारों की चर्चा।
कितना मुश्किल है
अपने गिरेबां में झांकना
खुद को कसौटी पर कसना।
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