एक पुलिस शिमला जिला अधिकारी संजीव गांधी शिमला के मुख्य सड़क द्वार पर ट्रैफिक नियंत्रण जगह पर तैनात पुलिस सिपाही के साथ खड़े होकर पीक समय में ट्रैफिक नियंत्रण करते हुए:
कल हम सुबह 10 बजे के आस पास शिमला में टनल पर बने क्रॉसिंग पर अपनी गाड़ी यूटर्न कर रहे थे और हमें अपने गाड़ी को बैक कर मोड़ना पड़ा इससे दो चार सेकंड का व्यवधान पड़ा। मेरी नजर जब ट्रैफिक नियंत्रण करने वाले सिपाही पर पड़ी तो एका एक नजर वहां खड़े पुलिस अधीक्षक संजीव गांधी पर भी पड़ी। वो मुस्कराए और हमने भी उनका अभिवादन मुस्करा कर दिया। फिर यकीन हुआ कि वे तो पुलिस अधीक्षक शिमला हैं। हमारे पीछे बैठे एक पुलिस सिपाही ने भी इसकी तस्दीक की। क्या संयोग है। हम संजीव गांधी को तब से जानते हैं जब वो कांगड़ा में सहायक पुलिस अधीक्षक ( ASP) एक अद्ध बार पहले भी मिलें होंगे। पर इतना याद किसे रहता है। पर किसी जिला का पुलिस अधीक्षक (SP) यदि ऐसे ड्यूटी देता है तो अवश्य ही उसमें अपनी जिम्मेदारी के प्रति जवाबदेही कूट कूट कर भरी है। यह तो अहसास उनका पीछे चर्चा में आए मुख्य अभियंता यानी चीफ इंजीनियर विमल नेगी की संदिग्ध मौत में हो रही जांच में खुद को बड़ी संजीदगी से high court में डिफेंड करने मामले में सामने आया। वाक्य ही पुलिस को किसी भी मामले में निष्पक्ष जांच करनी होती है। और सरकार के साथ high court या सुप्रीम कोर्ट को भी पुलिस की निष्पक्षता में विश्वास करते हुए समय देना ही होता है। मामला बहुत ही पच्चीदा है और सीबीआई भी अभी तक एक मास के लगभग समय बीतने पर नहीं सुलझा पाई है और सीबीआई के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए लगता नहीं कि वो ऐसा कर पाएं क्योंकि वे कुछ पूर्वाग्रह से प्रभावित या किसी और वजह से जांच करते हैं या फिर लीपा पोती करते हैं। केंद्र का प्रभाव इनके ऐसे कंट्रोवर्शियल मामलों में अक्सर देखा गया है।
जिस तरीके से भाजपा संघ विशेषकर पूर्व मुख्यमंत्री व विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने इसका राजनीतिकरण कर प्रदेश की सरकार के मुखिया सुखविंदर सिंह सुक्खू को घेरा है। इससे इस मामले की निष्पक्षता से जांच होने पर सवालिया निशान लगे हैं। जिस तरीके से सरकार की तरफ से गठित जांच अधिकारी अतिरिक्त मुख्य सचिव ओंकार शर्मा और उस समय के डीजीपी डॉ वर्मा ने सीधे high court में एफिडेविट दिया। वो सरकारी नियमावली का सीधा उल्लंघन था। नियम यह है कि सरकार का कोई भी एफिडेविट केवल एडवोकेट जनरल के माध्यम से ही high court में फाइल होता है। जिस तरह से High court ने भी इसे इंटरटेन किया है इस पर भी अवश्य ही प्रश्न उठता है। अतः अवश्य इस मामले में राजनीति हुई है और इसमें सही जांच सीबीआई की होगी इस पर अवश्य ही सवाल उठेंगे।
भाजपा संघ के प्रदेश नेतृत्व के साथ केंद्रीय नेतृत्व शुरू से हिमाचल प्रदेश की कांग्रेस की सरकार को अस्थिर करने का षड्यंत्र करते रहे हैं इसका सीधा प्रमाण राज्य सभा की सीट को धोखे से या किसी लेन देन के सहारे मेजॉरिटी न होते हुए भी भाजपा संघ के प्रत्याशी हर्ष महाजन का जीतना फिर कांग्रेस के बागी 6 विधायकों का सरकार के बजट पास करने की महत्वपूर्ण बैठक में अनुपस्थित रहना और बाद में डिफेक्शन रुल के मुताबिक अयोग्य घोषित होने के बाद भाजपा संघ में शामिल हो कर भाजपा संघ के प्रत्याशी के रूप में उप चुनाव लड़ना एक गहरी साजिश का हिस्सा है और इसमें भाजपा संघ सरकार के केंद्रीय नेतृत्व का सीधा हस्तक्षेप नजर आता है। ऐसे में कोई ईमानदार अधिकारी यदि अपनी ड्यूटी संजीदगी से निभाता है इसकी भूरी भूरी प्रशंसा देशवासियों को करनी ही है और ऐसे कर्मठ ईमानदार सक्षम अधिकारियों का बचाव सरकार और प्रदेश देश की जनता को करना ही है तभी देश का लोकतंत्र बचेगा और तभी प्रदेश देश में लॉ एंड ऑर्डर की बेहतर स्थिति होगी।
हम हिमाचल प्रदेश के ऐसे जांबाज पुलिस अधिकारी संजीव गांधी SP शिमला की अपनी ड्यूटी के लिए कटिबद्धता की तह दिल से प्रशंसा करते हुए उन्हें बिग सलूट करता हूं। प्रदेश को ऐसे अधिकारियों पर नाज है वे सच्चे देश की अस्मिता के रखवाले हैं।