— विष्णु नागर —
पूर्व प्रधानमंत्री एच डी देवेगौड़ा के पोते और पूर्व सांसद प्रज्ज्वल रेवन्ना को बलात्कार कांड का दोषी बताया गया।इस बारे में खबर पढ़ते हुए एक जगह अटक गया कि बलात्कार पीड़ित महिलाओं में कुछ ‘प्रतिष्ठित परिवारों ‘ से थीं।
ये ‘प्रतिष्ठित परिवार’ क्या होता है?बाकी जिन परिवारों की औरतों से इस कमीने ने बलात्कार किया और उनके विडियो बनाकर पेन ड्राइव में रखे,वे क्या ‘अप्रतिष्ठित परिवारों ‘से थीं?क्या गरीब, साधारण,दलित,पिछड़े, मुस्लिम परिवारों से होना अपने-आप में किसी महिला को ‘अप्रतिष्ठित’ बना देता है? क्या उनसे बलात्कार क्षम्य होता है?
प्रतिष्ठा अगर धन,पद ,जाति आदि से तय होती है तो यह बलात्कारी भी एक ‘प्रतिष्ठित परिवार ‘से ही था। इससे ज्यादा ‘प्रतिष्ठित परिवार ‘ कौन-सा होगा,जिसका सबसे वृद्ध व्यक्ति एक समय देश का प्रधानमंत्री रह चुका हो मगर उसी परिवार के एक व्यक्ति ने-जो कभी सांसद भी रह चुका हो- क्या किया,अब यह सारी दुनिया जानती है!और ऐसे अनेकानेक व्यक्ति और परिवार हैं,जो तथाकथित रूप से प्रतिष्ठित हैं मगर वहां वह सब होता है, हुआ है, जिससे प्रतिष्ठित परिवार शब्द की पोल खुलती रहती है।
जो लोग अपना श्रम बेचते हैं, कम खाकर, कम पहनकर असुविधाओं में रहकर ईमानदारी का जीवन जीते हैं, वे इनसे अधिक प्रतिष्ठित हैं। प्रतिष्ठा को धन और पद और जाति की चेरी बनाने की मानसिकता से हिंदी के अखबार, टीवी चैनल और पूर समाज को अब उबरना चाहिए।सब तब तक प्रतिष्ठित हैं,जब तक अप्रतिष्ठा का कोई काम नहीं करते? जो अपने मातहतों से दुष्टता, अमानवीयता, बर्बरता का व्यवहार करते हैं,वे भी अप्रतिष्ठित हैं।और इस मामले में बलात्कार पीड़िता सभी महिलाएं प्रतिष्ठित हैं,चाहे वे किसी वर्ग से हों। महिला होना ही प्रतिष्ठित होना है,आज इस अति तक जाने का मन है।
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