पहला प्रमाण रहा कि देश के स्वतंत्रता के इतिहास में पहली बार लोकसभा और राज्यसभा के विपक्ष नेता श्री राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे इस समारोह से नदारद रहे। भारतीय लोकतंत्र के लिए बहुत ही दुर्भाग्य पूर्ण!
कांग्रेस के प्रवक्ता ने कारण बताया कि पिछले साल इस समारोह में पिछले अपनाए जा रहे प्रोटोकॉल कि लोकसभा विपक्ष और राज्य सभा के विपक्ष के नेता को प्रधानमंत्री के बाद अगली पंक्ति में बैठाया जाता रहा है पर उन्हें अंतिम पंक्ति में बैठा कर उनके साथ घोर तिरस्कार किया जाना है। निंदनीय है और यह लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा खतरा है इसकी हर भारतवासी को निंदा करनी ही है और विपक्ष के नेता का अहम सरकारी कार्यक्रमों और संसद में संविधान के मुताबिक सम्मान मिलना ही है यह किसी व्यक्ति विशेष के व्यक्तिगत खुन्नस या रह्मोकरम पर निर्भर नहीं करता है।
दूसरा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस समारोह में लालकिले की प्राचीर से संघ के कसीदे पढ़े गए। संघ का भारत की आजादी में बिल्कुल कोई योगदान नहीं रहा है उल्टे संघ परिवार ने आजादी की लड़ाई में विशेषकर 1942 के “अंग्रेजों भारत छोड़ो अभियान” में अंग्रेज हुकूमत को इस संघर्ष को कुचलने के पत्राचार आज भी उपलब्ध हैं। और इस समय जब पूरे देश में आंदोलन कर रहे नेता जेलों में अंग्रेजों द्वारा ठूंसे गए थे यातनाएं दी गईं उस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी बंगाल प्रोविंस की सरकार में मुस्लिम लीग के साथ सांझा रूप में फाइनेंस मिनिस्टर के पद पर थे कल के प्रधानमंत्री के भाषण में उनका भी जिक्र था। इसी प्रकार संघ और भाजपा के प्रिय सावरकर का भी कोई इस संघर्ष में योगदान नही रहा उल्टे वो अंग्रेजों से उस समय 60 रुपए प्रति माह पेंशन लेते थे अब भाजपा संघ ही बताए कि अंग्रेज उन पर क्यों मेहरबानी कर रहे थे। इसी प्रकार नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ दिखने के लिए ये लोग बहुत विशेष लगाव रखते हैं पर इतिहास गवाह है कि संघ परिवार ने भारतीय नौजवानों को नेता जी द्वारा बनाई गई INA सेना में भर्ती न होने का फरमान जारी किया और उल्टे अंग्रेज सेना में भर्ती होने की अपील की।
संघ शुरू से ही महात्मा गांधी के विचारों से इत्तफाक नहीं रखते थे और उनके भारतीय आवाम के मन मस्तिष्क प्रभाव से बहुत विचलित थे इसलिए बहुत खिन्न थे और 1930 से ही संघ परिवार के विचारों से प्रभावित लोग जिसमें नाथूराम गोडसे भी शामिल थे महात्मा गांधी पर जान लेवा हमले करते रहे और अंत में आजादी के बाद जब वो पहले भारत के विभाजन का विरोध करते रहे और जब अंग्रेजों ने विभाजन कर ही दिया और आजादी के बाद देंगे भड़के जिसमें पाकिस्तान में मुस्लिम लीग से जुड़े लोग और भारत में भी संघ विचारधारा से जुड़े लोग दंगे में एक दूसरे की हत्या यानी नरसंहार करने में लगे हुए थे तब महात्मा गांधी लोगों के बीच जा कर बीच बचाव कर रहे थे और जब दंगे नहीं रुके तो उन्होंने आमरण व्रत रखा जिससे सरकार और संघ के साथ दूसरे लोगों ने लिखित आश्वासन देने के बाद ही महात्मा गांधी ने अनशन तोड़ा।
महात्मा गांधी ने मुस्लिम समाज को यहां रुकने के लिए अनुरोध भी किया क्योंकि मुस्लिम अपनी मातृभूमि को किसी भी सूरत में छोड़ना नहीं चाह रहे थे। और महात्मा गांधी के प्रयास से ही भारत का संविधान सेकुलर बना। संघ तो शुरू से ही हिंदू राष्ट्र वो भी मनुस्मृति आधारित विधान के साथ चाह रहा था जिसमें सार्वभौमिक मताधिकार की जगह विशेष लोगों को जिसमें महिला वंचित यानी शुद्र जिनके पास न जमीन और न ही संपत्ति का अधिकार था इसमें शामिल नहीं होंगे अपने प्रतिनिधि चुनने यानी सरकार बनाने का अधिकार होगा।
आखिर में 30 जनवरी 1948 को महात्मा गांधी को दिल्ली में विरला मंदिर में प्रार्थना सभा में संघ विचार धारा से आरोतप्रोत नाथु राम गोडसे ने 3 गोलियां सीने में मारकर हत्या कर दी। इस हत्या के षड्यंत्र में सावरकर पर भी आरोप लगे पर कोर्ट में पुख्ता सबूत के अभाव में बरी हुए। आज भी भाजपा संघ के लोग महात्मा गांधी के विचारों को मिटाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते।
आज लाल किले से जिस SIR और घुसपैठिए को वोट से बाहर करने की मंशा असल में यही है कि वोट देने के अधिकार से गरीबों वंचितों माइनोरिटी को हटाया जाए। बिहार में चुनाव के ऐन वक्त इस वोट छंटाई जिसे SIR का हवाला दिया जा रहा है और जिस पर पूरे देश में लाने की बात हो रही है और इसका विरोध हो रहा है तो प्रधानमंत्री अपने पुराने हथकंडे जिसमें मुसलमानों के प्रति हिंदुओं में नफरत फैला कर अपने वोट बैंक को साधने का प्रयास हो रहा है। कुल मिलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण अपनी 11 साल की विफलताओं जिसमें आर्थिक सामाजिक विदेश नीति मुख्य हैं और नागरिकों को आंतरिक और बाहरी सुरक्षा देना जिसमें हाल ही में पहलगाम में सुरक्षा की चूक से हमारे 26 निर्दोष लोग आतंकवाद की भेंट चढ़े शामिल हैं से ध्यान भटकाया जाना ही मुख्य ध्येय है।
चुनाव आयोग की विश्वसनीयता बिल्कुल खत्म है क्योंकि इन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी व्यक्तिगत निष्ठा के आधार पर ही चुन रहे हैं और अफसोस से कहना पड़ रहा है कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार और वर्तमान मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के साथ दूसरे चुनाव आयुक्त भाजपा संघ के दफ्तर की तरह ही व्यवहार कर रहे हैं। इनके इस रवैया की वजह से आज 2024 लोकसभा चुनाव के साथ उड़ीसा और बाद के हरियाणा महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में बड़े स्तर पर वोट चोरी के आरोप लग रहे हैं जिसके लिए लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने बंगलौर लोकसभा सीट की वोट चोरी को देश के सामने उजागर किया। इसके साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अपने चुनाव क्षेत्र बनारस से भी बड़े स्तर पर हेराफेरी के आरोप लग रहे हैं बहुत ही सनसनीखेद और गंभीर आरोप हैं। यहां तक कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चोरी के वोट से ही 2024 लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री बने हैं। इसकी जांच होना जरूरी है। इसलिए स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण बहुत ही निराशाजनक और देश के लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है।
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