— इल्मा बदर —
जीवन की मोह नगरी में,
कोई कहीं छूट जाएगा।
कर्तव्य जो सिंचोगे तो,
प्रेम कहीं सूख जाएगा।
सपनों के भारी मेले में,
अपना कोई खो जायेगा।
हँसी के बीच अकेलापन,
एक रहस्यमय बन जाएगा,
समय की धारा निर्मोही है,
कभी न पीछे मुड़ पायेगी,
कल की आशा में जो जीये है-
वह आज सदा खो जाएगा।
पद-प्रतिष्ठा सब क्षणभंगुर है,
धन-माया मिट्टी हो जाये।
मत दौड़ो इतनी तेज़ डगर में,
कि रिश्ता पीछे रह जाये।
जीवन की मोह नगरी में,
रिश्ते ही दीपक होते हैं।
जो आँसुओं में भी जलते हैं,
वही अमरत्व की ज्योतें हैं।
मत सोचो कौन कहाँ छूटा,
मत रोओ किसने छोड़ा है,
हर आत्मा पथिक अकेली,
साथ किसी का थोड़ा है।
मोह नगर के इस मेले में,
सब आते हैं जाने को ही,
हर राही ने यह सोचा पर,
खुद को ही खो पाया है।
तो हे मानव ! संभल ज़रा तू,
मोह नगर छल-छाया है,
कर्म-प्रेम ही तेरा साथी,
बाकी सब तो माया है।
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