अलविदा प्रोफेसर जगदीप छोकर साहब!

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Goodbye Professor Jagdeep Chhokar Sahib!

Hridayesh Joshi

— हृदयेश जोशी —

करीब 15 साल पुरानी बात है। मुझे संदर्भ ठीक से याद नहीं, लेकिन मेरे सामने बैठे छोकर साहब ने गहरी सांस लेते हुए कहा था—

“न होता गर जुदा तन से ….”
और मेरे मुंह से अनायास ही निकला—
“तो ज़ानों पर धरा होता।”

“ओह, तो आप ने भी ग़ालिब को पढ़ा है,” उन्होंने मुस्कुराकर कहा। तब तक प्रोफेसर जगदीप छोकर साहब से मेरा परिचय कुछ सालों का हो चुका था। मैं एक रिपोर्टर के तौर पर उनसे मिलने जाया करता था। संगीत, साहित्य और कविता हमारे वार्तालाप का महत्वपूर्ण हिस्सा हुआ होती। प्रो जगदीप छोकर भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार, बाहुबल और धनबल के प्रभाव को कम करने की मुहिम में लगी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म (एडीआर) के सह-संस्थापक थे। एडीआर में छोकर अकेले नहीं बल्कि पूरी टीम थी लेकिन पत्रकारों के लिए एडीआर का मतलब बस जगदीप छोकर ही हुआ करता था।

शनिवार को दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के सी.डी. देशमुख ऑडिटोरियम में, कबीर के भजनों और रुहानी संगीत के बीच, प्रोफेसर छोकर की विशाल तस्वीर लगी थी। उनका पूरा विराट व्यक्तित्व उस एक चित्र में कभी नहीं समा सकता, लेकिन पूरे कार्यक्रम के दौरान वह हंसमुख चेहरा यह आभास देता रहा कि जीवन के हर पल को कैसे अर्थपूर्ण बनाया जा सकता है। चुनावों के अलावा भी अपनी कई रिपोर्ट्स में मैं उनकी राय, अनुभव और दृष्टि का लाभ लेता रहा, क्योंकि उनके पास तीक्ष्ण मेधा और अनुभव का विशाल भंडार था, जिसे बांटने में वह बेहद उदार थे।

एफएमएस दिल्ली से पढ़े और आईआईएम अहमदाबाद में 20 वर्षों तक अध्यापन करने वाले छोकर साहब ने कभी आसान जीवन नहीं चुना। उन्होंने दिन-रात लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए संघर्ष किया। शनिवार को एडीआर के सह-संस्थापक प्रो. त्रिलोचन शास्त्री ने बताया कि प्रो. छोकर ने तीन बार आईआईएम के निदेशक पद की पेशकश को ठुकराया। हमेशा सीखने की चाह में जुटे रहे जगदीप छोकर ने 2006 में वकालत की पढ़ाई पूरी की और अदालत में कई मामलों में स्वयं पैरवी भी की। इलेक्टोरल बॉन्ड के मामले में एडीआर के कार्य को कौन नहीं जानता। शास्त्री कहते हैं कि एडीआर को कई सम्मान मिले, लेकिन छोकर साहब ने उन पुरस्कारों को लेने के लिए हमेशा टीम के अन्य सदस्यों को ही आगे किया।

एक अनंत कर्मयोगी प्रो. जगदीप छोकर जाते-जाते भी अपनी देह चिकित्सा विज्ञान के छात्रों के शोध हेतु दान कर गए। कर्म ही उनका धर्म रहा, और वह भारतीय समाज ही नहीं, पूरी मानवता के लिए मानदंडों की एक बड़ी लकीर खींचकर चले गए हैं।

छोकर साहब की स्नेहपूर्ण स्मृति हमेशा हमारे साथ रहेगी।


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