मणिमाला जी की कविता!

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Poem by Manimala ji!

Manimala

एक हजार में बोलो
तुम क्या-क्या ख़रीदोगे?
कहो जी तुम क्या-क्या
सुनो जी तुम क्या-क्या
मोदीजी तुम क्या क्या ख़रीदोगे…?
यहाँ तो हर चीज़ बिकती है…

ये नौकरी के सपने
ये कमज़ोर से लटके बाज़ू
सूूखे होंठों पे चस्पी ये मज़बूरी
ये आँखों के सूखे पानी
ये उजड़े ख्वाबों के ख़ज़ाने
भरी जवानी के दर्द भरे अफ़साने
बहारों के ज़माने में ये बेसुरे तराने
कहो जी तुम क्या-क्या ख़रीदोगे …

हम मोहब्बत बेचते हैं, शराफ़त बेचते हैं
न हो ग़ैरत तो ले जाओ, हम ग़ैरत बेचते हैं
निगाहें तो मिलाओ
अदाएँ ना दिखाओ
यहाँ ना शर्माओ
कहो जी तुम क्या-क्या ख़रीदोगे
एक हजार में क्या क्या ख़रीदोगे…

भाई-बहनों की तक़दीर ख़रीदोगे?
बाप की पगड़ी ख़रीदोगे?
मां का आंचल ख़रीदोगे?
बिटिया के ख्वाब ख़रीदोगे?
बिटवा के अरमान ख़रीदोगे?
पांव के नीचे की ज़मीन ख़रीदोगे?
सर के ऊपर जो एक मुठ्ठी आसमां है
उसे भी क्या खरीदोगे?

बोलो जी तुम क्या-क्या ख़रीदोगे?
मोदीजी तुम क्या-क्या ख़रीदोगे?
यहां तो हर चीज़ बिकती है….

यहां तो हर चीज़ बिकती है।
वोट बिकता है, चोट बिकती है
ज़िंदगी बिकती है, मौत भी बिकती है
बचपन बिकता है, जवानी भी बिकती है
अपने बिकते हैं, पराए बिकते हैं
खून बिकता है, सांसें बिकती हैं
पूरे के पूरे इंसान भी बिकते हैं
अदालतें बिकती हैं, गवाह भी बिकते हैं
न्याय बिकता है, फैसले भी बिकते हैं

बोलो, बोलो मोदी जी, बोलो, बोलो
हजार रूप्पली में क्या-क्या ख़रीदोगे?
अतीत ख़रीदोगे? भविष्य ख़रीदोगे??
या कि पूूरा वर्तमान ख़रीदोगे???

लाला जी तुम बोलो, मोदीजी तुम बोलो
चुुनाव आयोग बोलो, बाबुजी तुम बोलो
एक हज़ार में क्या-क्या खरीदोगे??
क्या-क्या खरीदोगे????


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