इन दिनों मधुर-मधुर मेरे दीपक जल – डॉ योगेन्द्र

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 रात बहुत बीत गयी तो हरेक घर के बाहर यम दिया जला दिया गया। यम से किसे डर नहीं लगता और जिससे डर लगता है, उसकी पूजा जरूर होती है। तुलसीदास असज्जन के भी चरण- वंदन करते हैं। यम तो असज्जन से भी खतरनाक है। सीधे टेंटुआ ही दबा देता है, इसलिए उसकी पूजा होती है। स्वास्थ्य और सौंदर्य कायम रहे, इसलिए यम पूजा। लेकिन यम मानता नहीं है, समय पर पहुंच ही जाता है। दरअसल यम के कारण ही संसार सौंदर्यवान है। अगर यम न रहता और कोई नहीं मरता तो यह दुनिया कितनी भद्दी होती! हरेक जगह बूढ़े और भद्दे लोग, जीव जंतु और पेड़ पौधे होते। वे कहां रहते, क्या खाते और कैसे रहते! कोई भी जगह ख़ाली न होती। धरती रौरव नरक होती, इसलिए यम यानी मृत्यु का होना जरूरी है। उसके लिए मधुर – मधुर दीपक जलता है। घर से थोड़ी दूर जलता है। संदेशा है कि आना, मगर से देर से आना। फिलहाल आलम यह है कि धरती पर न जीवन हारता है, न मृत्यु।‌ हिन्दुओं में तो गजब परंपरा है।

अगर बूढ़े होकर मरते हैं तो ढोल नगाड़े बजाए जाते हैं। जैसे जन्म के समय उत्सव होता है, वैसे ही मृत्यु के समय भी उत्सव होता है। जहां मृत्यु भी उत्सव हो जाय, उस कौम को ज्यादा बलशाली होना चाहिए, लेकिन समाज में मृत्यु को लेकर एक भय फैला हुआ है। इस भय से मुक्ति के लिए धार्मिक स्थल की कल्पना हुई है और बहुत सारे पाखंडियों ने धंधा ही बना लिया है। मृत्यु – डर आज एक बड़ा उद्योग है। बाबाओं ने मनुष्य की इस कमजोरी का खूब दोहन किया है। खुद तो निजी जेट पर उड़ते हैं और लोगों को कातर बना दिया है।

2 अक्टूबर को विजयादशमी थी। किसी ने फेसबुक पर सवाल किया कि हिन्दुओं के बड़े बड़े पर्व वध से ही क्यों शुरू होते हैं? दुर्गा महिषासुर का वध कर रही है, काली तो बाकायदा नर- मुंडों से ही सजी है। यम दीपक के दिन भी कहा जाता है कि कृष्ण ने नरकासुर को मारा। लगता है कि असुर भी कम ताकतवर नहीं थे। हर जगह असुर खड़े हैं। असुरों की भी भरी पूरी संस्कृति रही होगी। सुरों में भी कम सिरफिरे लोग नहीं रहे होंगे! इंद्र की वैदिक काल में बहुत पूजा होती है, लेकिन इंद्र का चरित्र पर सैकड़ों सवाल हैं।‌ असुरों की मृत्यु के आधार पर मनाए जाने वाले पर्व अब मुझे नहीं लुभाते। दीपावली मुझे अच्छी लगती है। जलते हुए दीये मन को लुभाते हैं। मुझे यह भी लगता है कि दुराचारियों और ठगों ने पर्व के पीछे कथाओं को बुना है। पर्व मनुष्य- मन की संवेदना और सहृदयता की अभिव्यक्ति हो। धर्म की रूढ़ – परंपराओं से अलग। सरिता की तरह प्रवाहित जिसमें सभी लोग सम्मिलित हों।‌ महादेवी वर्मा ने लिखा है – “मधुर मधुर मेरे दीपक जल। युग युग प्रतिदिन, प्रतिक्षण, प्रतिपल/ प्रियतम का पथ आलोकित कर।” और कवयित्री का कितना बेहतरीन सपना है –

तुम असीम तेरा प्रकाश चिर
खेलेंगे नव खेल निरन्तर,
तम के अणु-अणु में विद्युत-सा
अमिट चित्र अंकित करता चल,
सरल-सरल मेरे दीपक जल!

दीपक असीम है और शाश्वत है उसका प्रकाश। अंधकार जहां भी हो, कवयित्री का स्वप्न है कि अंधकार के अणुओं में विद्युत – सा तुम खुद को अंकित करता चल। तुम यानी दीपक। यह दीपावली ज्ञान दे, सौंदर्य की दृष्टि दे और अंधकार से लड़ने की ताकत दे।


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