बिहार – चुनाव में अभी तक कोई घुसपैठिया नहीं आया तो बिहारवासियों को मजा नहीं आ रहा हर चुनाव में प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और बीजेपी के अन्य नेता घुसपैठिया लाते हैं । असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा के मुंह से तो घुसपैठिए झड़ते हैं। चुनाव के बाद घुसपैठिए ऐसे गायब हो जाते हैं कि पुनः चुनाव में ही अवतरित होते हैं। शायद बीजेपी को हिन्दुओं का वोट दिलवा कर वे फिर अपनी शिविर में चले जाते हैं। वैसे कल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह बिहार में चुनावी भाषण देने आ रहे हैं।
बिहारवासी उम्मीद करते हैं कि कल चुनाव में घुसपैठिए का प्रवेश जरूर हो जायेगा। दोनों देश के सक्षम पदाधिकारी हैं। उनका काम घुसपैठिए को रोकना नहीं, लाना रह गया है। दोनों बेचारे लंबे समय से हीन ग्रंथि के शिकार हैं। एक की टक्कर नेहरू से है तो दूसरे की सरदार पटेल से। दोनों अपने अपने प्रतिद्वंद्वी को शिकस्त देना चाहते हैं। इन्हें इतनी समझ नहीं है कि चुनाव में घुसपैठिए लाने से कोई नेहरू या पटेल नहीं हो जाता। नेहरू और पटेल होने के लिए टेलिपाम्टर का भाषण नहीं चाहिए। इसके लिए चाहिए सूझबूझ, बौद्धिक कुशलता, साफगोई, सरलता और अथक मेहनत। जिसे हत्या, नफ़रत और हिंसा के सहारे सर्वोच्च कुर्सी मिलती है, वह नेहरू और पटेल नहीं हो सकता। इतिहास बहुत क्रूर होता है, जब वह लेखा जोखा पेश करता है तो बहुत से नामचीन धूल में मिल जाते हैं।
प्रधानमंत्री को विश्व भ्रमण में बहुत रूचि थी। जहां तहां बौखते रहते थे। लेकिन अब वे वैश्विक सम्मेलनों में नहीं जा रहे। उनकी जगह जेएनयू में पढ़े विदेश मंत्री जयशंकर जा रहे हैं। ट्रंप ने प्रधानमंत्री की भद्द पीट दी। अमेरिका ने इस बार लगभग अधपगला राष्ट्रपति चुन लिया है। वह महज भारत के लिए नहीं, बल्कि अमेरिका के लिए भी खतरा है। यह अच्छी बात है कि अमेरिका के लाखों लोगों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के खिलाफ प्रदर्शन किया। सत्ता पाकर आदमी कैसे बौख जाता है, इसका सर्वोत्तम उदाहरण हैं डोनाल्ड ट्रम्प। हमारा यहां के जो प्रधानमंत्री हैं, उन्हें काले रंग तक से परहेज़ है।
उनकी सभाओं में काले कपड़े, जूते, गंजी आदि पहन कर नहीं जा सकते। पूरा प्रशासन इस प्रयास में लगा रहता है कि दर्शक कोई भी ऐसा सामान न ले जाए जो काला हो। एकबार एक महिला ने प्रधानमंत्री नेहरू की कालर पकड़ कर पूछा – आजादी मिलने पर मुझे क्या मिला? नेहरू ने उसे पिटवाया नहीं। प्रेम से उत्तर दिया – तुम्हें यह अधिकार मिला कि तुम प्रधानमंत्री की कालर पकड़ कर पूछा सकती हो। आज के प्रधानमंत्री के पास पक्षी तक पर नहीं मार सकता। वह अपने दड़बे में छुपा रहता है कि कोई सवाल न पूछ ले। ग्यारह वर्षों में एक बार भी प्रेस सम्मेलन नहीं किया।
नेहरू बनने के लिए हिम्मत और जज्बा चाहिए। लोकतंत्र पारदर्शिता खोजता है। जो जितना कम छुपाता है, वह उतना महान होता है।जो आदमी टेलिपाम्टर के बिना बोल नहीं पा रहा, वह भला कितना पारदर्शी होगा! सुनते हैं कि एक स्थल पर टेलिपाम्टर खराब हो गया तो वहां के जिलाधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया। जो भी हो, दोनों गुजराती आइए बिहार में। गुजरात में फैक्ट्री और बिहार में झूठ का पेड़ लगाइए। चुनावी बिसात बिछ चुका है। अब असल खेला शुरू होगा। लोकतंत्र की जड़ खोदने के जलवे पेश किए जायेंगे और लोगों को पता तक नहीं चलेगा कि आपके पांव के नीचे की जमीन खींचीं जा रही है।
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