बिहार का नया मंत्रिमंडल और परिवारवाद – परिचय दास

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Parichay Das

बिहार में नवम्बर , 2025 में बने नए मंत्रिमंडल की गंभीर विश्लेषण यह दर्शाता है कि पारिवारवाद (डायनैस्टिक पॉलिटिक्स) और वंशवाद की राजनीति इस सरकार की संरचना में एक स्पष्ट कारक है — और यह सिर्फ सीटों के आवंटन तक सीमित नहीं बल्कि पावर संतुलन, प्रतीकवाद और सामाजिक समीकरणों में भी गहराई से झलकता है।

सबसे पहले यह ध्यान देना होगा कि इस मंत्रिमंडल में कुल 26 मंत्री हैं। पार्टियाँ किस प्रकार बाँटी गई हैं, यह भी महत्वपूर्ण है: भाजपा को 14 मंत्री मिलते हैं, जेडीयू को 8, एल जे पी(राम विलास) को 2, वहीं हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा ( सेकुलर ) और राष्ट्रीय लोक मोर्चा को एक-एक मंत्री स्थान मिला है। यह शक्ति-साझा न केवल अलायंस की जरूरी मांग है, बल्कि उसकी जटिल पारिवारिक और जातीय राजनीति को भी दर्शाती है।

पारिवारवाद की बात तभी सिद्ध होती है जब मंत्री-सदस्यता में राजनीतिक वंशों का अनुपात देखा जाए। Deccan Herald की रिपोर्ट बताती है कि 26 मंत्रियों में से दस का परिवारवादी या वंशवादी पृष्ठभूमि है। इनमें प्रमुख नामों में शामिल हैं –

1. सम्राट चौधरी : ये पारिवारिक पृष्ठभूमि से आते हैं। इनके पिता शकुनी चौधरी पूर्व मंत्री थे। 2. संतोष सुमन मांझी: ये जीतन राम मांझी ( केंद्रीय मंत्री / पूर्व मुख्यमंत्री , बिहार ) के पुत्र हैं। उनकी पत्नी दीपा मांझी भी विधायक हैं। 3. दीपक प्रकाश : इनके पिता उपेन्द्र कुशवाहा पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं । 4. श्रेयसी सिंह: वे दिग्विजय सिंह (पूर्व केंद्रीय मंत्री) की बेटी हैं। 5. रमा निषाद : ये पूर्व केंद्रीय मंत्री जय नारायण निषाद की बहू हैं। 6. विजय चौधरी : इनकी पारिवारिक पहचान यह है कि उनके पिता जगदीश प्रसाद चौधरी पूर्व विधायक रहे हैं। 7. अशोक चौधरी : ये महावीर चौधरी (पूर्व मंत्री) के पुत्र हैं। इनकी बेटी/रिश्तेदार शांभवी चौधरी सांसद हैं — राजनीतिक परिवार की पहचान बनती है। 8. नितिन नवीन: इनके पिता नवीन किशोर सिन्हा पूर्व विधायक थे। 9. सुनील कुमार : इनके भाई अनिल कुमार पूर्व विधायक रहे हैं। 10. लेशी सिंह : ये भूटन सिंह (पूर्व समता पार्टी जिला अध्यक्ष) की पत्नी हैं।

यह सिर्फ व्यक्तिगत पहचान नहीं है बल्कि यह संकेत है कि बिहार में राजनैतिक शक्ति अभी भी “राजनैतिक वंशावली” के दायरे में सीमित है, जहां कुछ परिवारों का कब्ज़ा सत्ता के ठोस केंद्रों पर बना हुआ है।

यह तथ्य देखा जाए कि नीतीश कुमार, जिन्होंने अक्सर वंशवाद के आलोचक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत किया है, ने वास्तव में सरकार के मंत्रिमंडल में उन्हीं परिवारों के प्रतिनिधियों को शामिल किया , जिन्हें वे पहले निशाना बनाते थे। पारिवारिक राजनीति का यह व्यवहार सिर्फ चुनावी संतुलन बनाने का माध्यम नहीं बल्कि एक रणनीतिक पावर मैनेजमेंट है। सम्राट चौधरी को उप-मुख्यमंत्री बनाए जाना उसी रणनीति का हिस्सा हो सकता है क्योंकि उनका पारिवारिक नाम और पॉलिटिकल वंश उन्हें “विश्वासपात्र व्यक्ति” बनाता है जो जेडीयू-भाजपा गठबंधन में संतुलन बनाए रखने में सहायक होगा।

इसके अलावा, नए मंत्रिमंडल में रेणु देवी को बाहर करना और उनकी जगह नारायण प्रसाद को शामिल करना (जो तेली जाति से हैं) भी सिर्फ संसदीय स्थानों का खेल नहीं है बल्कि सामाजिक और जातिगत गणित की रणनीति है। यह कदम यह दर्शाता है कि सरकार जातीय और सामाजिक समीकरणों में बदलाव के लिए पावर स्ट्रक्चर को फिर से व्यवस्थित करने में सक्रिय है। यह बदलाव भले ही “परिवारवाद” जैसा न लगे लेकिन यह स्पष्ट रूप से नई-पुरानी सत्ता संरचनाओं, पारिवारिक शक्ति और सामाजिक प्रतिनिधित्व के बीच लंबी जद्दोजहद का हिस्सा है।

नए मंत्रिमंडल में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि यह “पुराने चेहरे और नए चेहरों” का मिश्रण है। कुछ मंत्रालयों में अनुभवी नेताओं को प्राथमिकता दी गई है तो कुछ में युवा और अपेक्षाकृत नए नाम भी शामिल हैं लेकिन यह “नवयुवाओं” की भागीदारी भी पारिवारिक राजनीति से पूरी तरह मुक्त नहीं है — जैसे दीपक प्रकाश, जिनके पास राजनीतिक वंश है लेकिन उनकी योग्यता और युवा छवि उन्हें नई सरकार में उपयोगी बनाने के लिए चुनी गई है।

पारिवारवाद का यह कारक बिहार की राजनीति में एक चिरस्थायी समस्या है: यह सत्ता के केंद्रीकरण को बढ़ाता है, नए प्रवेशकों को कठिनाई देता है और लोकतांत्रिक प्रतिस्पर्धा को सीमित कर सकता है। हालांकि, इस मंत्रिमंडल को “केवल पारिवारवाद का प्रदर्शन” कहना सही नहीं होगा क्योंकि इसमें गठबंधन की मजबूरी, सामाजिक और जातिगत प्रतिनिधित्व की रणनीति और चुनावी गणित का संतुलन भी है। उदाहरण के लिए, नए समीकरण में शामिल एल जे पी (राम विलास) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (सेक्युलर) जैसे छोटे दलों को मंत्रिमंडल में स्थान देकर, सत्ता को साझा करना दिखता है लेकिन यह साझेदारी केवल प्रतीकात्मक नहीं बल्कि वास्तविक है क्योंकि यह उनकी जातिगत और पारिवारिक जनाधार को मान्यता देती है।

राजनीतिक दृष्टि से, यह नया मंत्रिमंडल एक संकेत है कि बिहार की राजनीति में पारिवारवाद अब कम “विरोध की राजनीति” बन चुका है और नया “स्वीकृति मॉडल” बन रहा है। सत्ता में लंबे समय से बने वंशीय परिवार अब न सिर्फ सत्ता जोड़ने की इकाइयाँ बने हुए हैं बल्कि पार्टियों की रणनीति का एक केंद्रीय हिस्सा बन गए हैं। यह मॉडल विरोधी धारणाओं को चुनौती देता है क्योंकि जनता को यह संदेश मिलता है कि राजनीतिक अनुभव और विरासत अभी भी मूल्यवान हैं और सत्ता में आने वाले नेताओं का पारिवारिक इतिहास उन्हें “विश्वसनीय” और “योग्य” उम्मीदवार बना सकता है।

लेकिन आलोचक यह भी कहते हैं कि यह मॉडल बिहार में सामाजिक गतिशीलता का मार्ग अवरुद्ध कर सकता है। यदि वंशवाद सत्ता के प्रमुख स्रोत बन जाता है, तो अविकसित क्षेत्र, पिछड़े वर्ग और नए नेता पावर में आने की संभावना कम कर सकते हैं। यह विशेष रूप से उस युवा पीढ़ी के लिए चुनौती है, जिन्हें विकास और बदलाव के साथ-साथ न्यायसंगत प्रतिनिधित्व की आशा होती है।

साथ ही, यह मंत्रिमंडल एक संकेत हो सकता है कि बिहार की राजनीति में “पारिवारिक गठबंधन” की भूमिका भविष्य में और मजबूत होगी। परिवारों की राजनीतिक शक्ति अब सिर्फ चुनाव और संसदीय सीटों तक सीमित नहीं है बल्कि शासन स्तर तक गहराई से पैठ बनाने लगी है। यह शासन की निरंतरता और निवेश की नीति में स्थिरता ला सकती है, पर इससे “राजनीतिक नवप्रवेश” और “जन-भागीदारी” का खतरा भी बढ़ता है।

निष्कर्षत: कहा जा सकता है कि बिहार का नया मंत्रिमंडल — नवम्बर, 2025 — पारिवारवाद के प्रति एक जीवंत उदाहरण है लेकिन यह सिर्फ पारिवारिक ताकत का द्योतक नहीं है। यह गठबंधन, सामाजिक समीकरण, युवा और परंपरा का संयोजन है। यह दर्शाता है कि बिहार में पारिवारवाद अब एक रणनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल हो रहा है, जिसे सत्ता के भीतर टिकाऊ बने रहने, सामाजिक संतुलन बनाए रखने और चुनावी जीत को सुरक्षित करने के लिए परिष्कृत तरीके से डिज़ाइन किया गया है।


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