मोहनदास करमचंद गांधी आखिर महात्मा गांधी कैसे बने? एक साधारण, दुबला-पतला दिखने वाला व्यक्ति कैसे दुनिया के सबसे बड़े साम्राज्य को हिला गया? यह सवाल सिर्फ भारत का नहीं, पूरी दुनिया का है। इसका उत्तर गांधीजी के एक घनिष्ठ मित्र हर्मन केलेनबाख और दक्षिण अफ्रीका की एक ऐतिहासिक घटना में छिपा हुआ है—एक ऐसी घटना जिसने मोहनदास को दुनिया की नज़रों में “महात्मा” बना दिया।
अदालत की वह घड़ी जिसने इतिहास मोड़ दिया-
दक्षिण अफ्रीका में अंग्रेज सरकार गांधीजी को कानून तोड़ने के आरोप में अदालत में पेश करती है। अदालत खचाखच भरी है; अंग्रेज अफसर, पुलिस, पत्रकार और भारतीय समुदाय की बेचैन लोगों की निगाहें। जब मजिस्ट्रेट जनरल स्मट्स गांधी से आरोपों के बारे में पूछते हैं, तो गांधी बिना हिचके शांत स्वर में कहते हैं—
“मैं सरकार द्वारा लगाए गए सारे आरोप स्वीकार करता हूँ।”
पूरा कोर्ट आश्चर्य में डूब जाता है। एक ऐसा व्यक्ति, जो अपने अधिकारों के लिए लड़ रहा है, वह कैसे खुद को दोषी कह सकता है? लेकिन गांधी जानते थे कि सत्य को स्वीकार करना ही उनकी सबसे बड़ी शक्ति है।
जनरल स्मट्स, जो उस समय दक्षिण अफ्रीका सरकार का सबसे शक्तिशाली चेहरा थे, पूरे मुकदमे के बाद भारी मन से कहते हैं “कानून के मुताबिक मैं मजबूर हूँ कि आपको कड़ी से कड़ी सजा सुनाऊँ। लेकिन यदि सरकार या महारानी आपकी सजा कम कर दें, तो दुनिया में सबसे ज्यादा खुश मैं होऊंगा।”
एक अंग्रेज जज द्वारा एक भारतीय व्यक्ति जो अदालत में कानून तोड़ने के अपराधी के रूप में खड़ा है,के लिए यह वाक्य कहना इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। सजा सुनाने के बाद जज सम्मानवश अपनी सीट से खड़ा होता है। पूरा कोर्ट हॉल तालियों से गूंज उठता है।
गांधीजी छह साल की कठोर सजा सुनने के बाद भी वे सिर्फ इतना कहते हैं “पूरे मुकदमे में आपने मेरे साथ जो सभ्य व्यवहार किया, उसके लिए मैं आपको दिल से धन्यवाद देता हूँ।” यही वह क्षण था जिसने अंग्रेज साम्राज्य को हिला दिया—क्योंकि पहली बार साम्राज्य ने देखा कि नैतिक बल, राजनीतिक बल से कहीं बड़ा होता है।
जब दुश्मन भी मित्र बन गया-
जनरल स्मट्स ने बाद में एक चौंकाने वाली बात कही “मेरा तुमसे संघर्ष था, लेकिन मैं तुमसे लड़ूँ कैसे? हर बार तुम मेरी ढाल बन जाते थे। हिंसा क्षणिक सुख देती है, पर टिकती नहीं। क्रोध और घृणा की उम्र बहुत छोटी होती है।”
यही गांधी का सबसे बड़ा राज था कि वे दुश्मन के हृदय में भी पश्चाताप जगा देते थे।
चप्पल की वह जोड़ी जिसने जज को झकझोर दिया
गांधीजी जब जेल में थे, जेल के नियम के अनुसार उन्हें काम करना होता था। उन्होंने अपने हाथों से चमड़े की एक चप्पल बनाई। वही चप्पल उन्होंने स्मट्स को भेंट की।
जब स्मट्स ने चप्पल पहनी, तो उनकी अंतरात्मा उन्हें धिक्कारने लगी “मैंने जिस व्यक्ति को सजा दी, वह मेरे लिए चप्पल बना रहा था! क्या मेरे पैर उस चप्पल के योग्य भी हैं?” स्मट्स की पत्नी और बेटी ने भी कहा “तुमने गांधी के साथ अन्याय किया है।तुम्हारे पैर इस लायक नहीं।”
वर्षों बाद स्मट्स ने स्वीकार किया:“जब गांधी दक्षिण अफ्रीका छोड़ रहे थे, तो लगा—एक बहुत बड़ा महात्मा इस देश से हमेशा के लिए जा रहा है।”
आज भी वह चप्पल जोहान्सबर्ग के गांधी म्यूजियम में संरक्षित है—जैसे गांधी के आत्मबल का मौन प्रमाण हों।
गांधीजी को पूरी दुनिया महात्मा कहती है क्योंकि गांधी का राज उनकी साधारणता नहीं था, उनकी अद्भुत नैतिक शक्ति थी, उनमें सत्य को बिना डर स्वीकार करने की क्षमता थी, विरोधी के भीतर भी मानवता जगाने की ताकत थी, अपमान के बदले सम्मान देने की उदारता थी और हिंसा के सामने अडिग अहिंसा की बड़ी नैतिक शक्ति थी। गांधीजी दुनिया को यह दिखा सके कि नैतिक साहस किसी साम्राज्य से बड़ा होता है। मोहनदास इसलिए महात्मा बने क्योंकि उन्होंने मनुष्यता की उस ऊँचाई को छुआ, जहाँ दुश्मन भी झुकने को मजबूर हो जाए। यही गांधी का सबसे बड़ा चमत्कार था।
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