आज भाई-भतीजा और वंशवाद के इस दौड़ में कौन यह मानने को तैयार होगा कि कपिल देव बाबू इससे कोसों दूर थे । उन्होंने कभी भी अपने रिश्तेदार या परिवार के किसी भी व्यक्ति को न राजनीति में आगे बढ़ाया न अन्य तरह से अनुचित कभी लाभ ही पहुंचाया । हर हमेशा सतर्क और सावधान रहते थे कि हमारी सफेद धोती -कुर्ता पर कोई दाग़ नहीं लगने पाये । सही रहने और योग्यता व मापदंड पर उतरने के बाद भी उनके घर-परिवार और निकटतम रिश्तेदार को कईक मौकों पर पीछे ढकेला गया पर कपिल देव बाबू ने कभी पैरवी नहीं किया ।इससे घर -परिवार के लोग भी नारूष्ट रहते थे ।
कपिल देव बाबू जब चुनाव हारते थे तब दूगने उत्साह के साथ संघर्ष और रचना के काम में लग जाते थे। 1980में वे विधानसभा चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी से हार गये थे । चुनाव रिजल्ट की घोषणा नहीं हुई थी पर मैं मुंह लटकाये बड़हिया उनके घर पर आ गया था ।वे बरामदे में बैठे कुछ सहयोगी समर्थकों से बातें कर रहें थे ।आते ही मुझे ढांढ़स दिया और अन्दर घर ले जाकर चाची को कुछ खिलाने बोले । मुझे बोले पटना रेल पकड़ कर चले जाओ और अरूण को डेरा खाली कराने के लिए सामान पैक करने कहना ।कल बड़हिया से ट्रक भेज देंगे ।तुम कल्ह लौट आना सभा कल्ह करेगे । पुरे रास्ते रेल में मैं यह सोचता गया कि हार कर कौन सी सभा करेगे ।जीता हुआ न सभा जुलुस करता है ।लौट कर बड़हिया आ गया स्टेशन से उनके घर तक सभी जगह कपिलदेव बाबू की सभा की ही चर्चा हो रही थी । डाक-बंगला कैम्पस लोहिया चौक पर सभा रखी गई थी । कपिल देव बाबू घर से पैदल ही सभा स्थल के लिए चले लोगों का हुजूम उनके पीछे लग गया । विशाल सभा को कपिल देव बाबू ने संवोधित करते हुए आम मतदाताओं को विपरीत चुनाव परिणाम देने के लिए धन्यवाद दिया और कहा कि एक बार आपने मुझे 69के उपचुनाव में हरा दिया था तब गांव में हमने लड़कियों की शिक्षा के लिए प्राथमिक विद्यालय से हाईस्कूल तक खोला आज आपसे फिर कह रहा हूं इस बार उसी हातें में लड़कियों के लिए डीग्री कॉलेज खोलने का काम करेंगे ।आज उनके संकल्प का ही देन बड़हिया महिला कॉलेज शानदार सेवा का कीर्तिमान स्थापित कर रहा है ।
गांधी, लोहिया के वे पक्के अनुयाई थे ।हर संघर्षशील उस व्यक्ति के प्रति जों अपने हक और उसुल पर कायम रहें , अन्याय का मुखालफत करें उसके प्रति उनके मन में अपार स्नेह और सम्मान था ।गांव का कोई आदमी जब उनके पास अपने पर हुए अन्याय को लेकर आता था उसकी बातें सुनकर उनका चेहरा गु्स्से से लाल हो जाता है ।आंखें जैसे चिंगारी उगलने लगा जाती थी । मै ऐसे सैंकड़ों वाकिआतो का प्रत्यक्ष गवाह हूं ।
उनसे छोटे व्यक्तित्व और कद के अनेक लोगों की मूर्ति चौक चौराहों पर खड़ी कर दी गई है पर आज के जाति और संप्रदाय के इस दौड़ में भला क्यों कोई उसुल पर चलने वाले की मूर्ति लगायें ।कपिलदेव बाबू जैसे लोगों के लिए ही यह शायर ने लिखा होगा ।
“शेखजी हमारी सरदारनी पर न जाओ
आंचल निचोड़ दू़ं
तो फ़रिश्ते भी वजू करें ।”
शत-शत नमन ।।
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