पता नहीं आदमी अपने आप को क्या समझता है? सत्ता में पहुंचते ही ऐंठ जाता है। आंखों पर मोटी पट्टी और दिमाग में गोबर। सिर्फ देह बची रहती है। हम सब जानते हैं कि प्रकृति पर ही मानव जीवन निर्भर है। इस जानकारी के बाद हमें क्या करना चाहिए? प्रकृति को उजाड़ना चाहिए या उसका सरंक्षण करना चाहिए? सरकार जब किसी पूंजीपति को जंगल देती है तो क्या वह नहीं जानती कि पूंजीपति जंगल का दोहन करेंगे? छत्तीसगढ़ का एक हंसदेव जंगल एक पूंजीपति को सौंप दिया गया? हजारों वर्षों के जंगल उजाड़े जाने लगे। लाखों पेड़ों पर आरे चलने लगे। आदिवासियों ने आवाज उठाई तो उसे दंडित किया जाने लगा। अभी अरावली के बारे में चर्चा हो रही है। सवाल इसका नहीं है कि किस सरकार ने पूंजीपतियों को खुली छूट दी, सवाल यह है कि प्राकृतिक संपदा की यह लूट आदमी और वन्य जीवों के पक्ष में या खिलाफ?
सरकार की हालत यह है कि चुनाव जीतने के लिए पूंजीपतियों से करोड़ों करोड़ रुपए लेती है। जब लेती है तो इसके एवज में देना होगा। सरकार में बैठे नेताओं की तो यह हैसियत नहीं होती कि अपनी संपत्ति बेच कर पूंजीपतियों को दें। तब वह देश को ही बेचना शुरू करता है। पार्टियों के दफ्तर और खजाने देखिए। आपको समझ में आ जायेगा। अगर आपकी आंखों पर भी नारे और वादों की पट्टी है या नेताओं के धूर्त – जाल में फंस गए हैं तो अरावली से लेकर तमाम नदियों, सागर, जंगल, जल आदि को लुटने दीजिए। ऐसी हालत में इस धरती पर अंततः फंसड़ी लगाने के सिवा कोई विकल्प नहीं है।
धरती पर बहुत तरह का खेला हो रहा है। पहले तो ट्रंप ने फिलिस्तीनियों को इजराइलियों के द्वारा खूब पिटवाया। लुटे पीटे फिलिस्तीनियों को मुश्किल से खाना मिल रहा है। अब वहां ट्रंप के दामाद कुशनर ने ‘प्रोजेक्ट सनराइज’ के नाम से फिलिस्तीन के विकास के लिए एक खाका तैयार किया है। वहां लिग्जरी रिजार्ट, होटल, हाई स्पीड ट्रेन, बिजली आपूर्ति के लिए स्मार्ट ग्रिड, एआई आधारित स्मार्ट सिटी, डिजिटल गवर्नेंस, फ्री ट्रेड जोन, आधुनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम आदि बनाए जायेंगे। फिलिस्तीनियों को क्या चाहिए? साठ हजार लोग मारे गए हैं। उनकी दुनिया लूट गयी है। उन्हें खाना, मकान, वस्त्र, शुद्ध जल , बेहतर शिक्षा चाहिए। उनकी प्रकृति कायम रहे और वे खुद से अपनी योजना बना सकें। अगर फिलिस्तीन का फैसला ट्रंप का दामाद करेगा तो फिलिस्तीन की सरकार क्या करेगी? क्या वह ट्रंप के दामाद के लिए सस्ते मजदूर , अपनी जमीन और अपनी प्रकृति उपलब्ध करवाने के लिए बची है? तबाही का ताज पहन कर अमेरिका दुनिया पर दादागिरी कर रहा है।
कभी इराक तो कभी लीबिया तो कभी अफगानिस्तान। जब जब उसके खिलाफ सिर उठा। उस देश की गर्दन कट गई। देश के अंदर और देश के बाहर पूंजी का तांडव है। लोकतंत्र तो सिर्फ बहाने हैं। जिस लोकतंत्र में सम्मान के साथ जीने का संसाधन न हो और किसी को देश के संसाधनों की डकैती करने की खुली हो, वहां लोकतंत्र टिकता कहां है? एक ढांचा, एक कंकाल महज रह जाता है लोकतंत्र। लोकतंत्र के अंदर से बादशाही उग आती है। उसे लगता है कि वह महज हुक्म फरमाने के लिए बना है और जो हुक्म नहीं मानता है, उसका सिर कलम करने का उसे हक है। जहांपनाह तो नहीं रहे, लेकिन उनकी आत्मा आज भी गद्दी से चिपकी है। जहांपनाह की इच्छा है कि अरावली के कलेजे का चाक कर दें तो उनकी इच्छा सर्वोपरि है। वैसे अरावली के वास्तविक शेरों ने विरोध शुरू किया है और हम उम्मीद करते हैं कि बाहर के शेर सत्ता के साथ ठी ठी नहीं करेंगे। वास्तविक संघर्ष के साथ रहेंगे।
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