ईसा के शरीर के हर अंग पर कीलें ठोंकी जा रही थीं। हर जगह से बहती हुई खून की धारा । तब भी ईसा प्रार्थना कर रहे थे – “ हे प्रभु, इन्हें माफ करना। ये नहीं जानते कि क्या कर रहे हैं?” जो दोषी थे। अज्ञानता में कीलें ठोंक रहे थे, उनके लिए प्रार्थना। अद्भुत और अविस्मरणीय। ईसा का समय कुछ और था और मौजूदा समय कुछ और। ईसा सामंती व्यवस्था के हिस्से थे। सामंत का आदेश ही कानून था। आज लोकतांत्रिक व्यवस्था है। देश में एक संविधान है, न्यायालय है, प्रशासन है, संसद और विधानसभाएं हैं। कुलदीप सेंगर नामक एक विधायक एक बच्ची के साथ बलात्कार करता है। उसके पिता की हत्या होती है। ट्रायल कोर्ट उसे सजा देता है और दिल्ली का उच्च न्यायालय सजायाफ्ता कुलदीप सेंगर को जमानत देता है। उत्तर प्रदेश का एक मंत्री ओमप्रकाश राजभर खलनायक की तरह टिप्पणी करते हुए हंसता है। रेप पीड़िता अपनी मां के साथ न्याय के लिए धरना देने बैठती है तो दिल्ली पुलिस उसे उठा ली जाती है। रेप पीड़िता मात्र धरने पर बैठी और दिल्ली पुलिस गिरफ्तार करने आ गयी। इतना डर और खौफ! अपराधी को बचाने के लिए इतनी तत्परता! क्या यह लोकतंत्र है!
इस संगीन अपराधकर्म में न्यायपालिका भी है, विधायिका भी और कार्यपालिका भी। तीनों पर से वस्त्र उतर रहे हैं। बिल्किस बानो का केस याद होगा। निचली अदालत अपराधियों की सजा माफ करता है। अपराधी जेल से निकलता है तो ध्वजधारी पार्टी के लोग माला लेकर उसके स्वागत में नारे लगाते हैं। यह कौन समाज है भाई! गर यही हाल रहा तो सिस्टम पर कोई विश्वास नहीं करेगा और तब न्याय के लिए हर हाथ में कट्टा होगा। प्रधानमंत्री को भी कट्टे से बहुत प्यार है। चुनाव तक में वे कट्टे का बेधड़क इस्तेमाल करते हैं। कुलदीप सेंगर उन्हीं के दल का माननीय विधायक था। यह कट्टा उनकी गर्दन पर नहीं चला , चुनावी लाभ के लिए कांग्रेस की गर्दन सामने थी। योगी आदित्यनाथ में योगी जैसा कुछ नहीं है। उनका भी बुल्डोजर नहीं चला। ईसा ने तो माफ़ कर दिया, मगर नृशंस सेंगर को माफी कौन दे? वह पीड़िता क्या करे? क्या पीड़िता भी माफ कर दे! क्या पीड़िता कहे कि बलात्कारी को माफ किया जाता है? क्या इससे असभ्य समाज अपनी असभ्यता भूल जायेगा? क्या कुलदीप सेंगर इस माफी से पश्चाताप करेगा?
दिल्ली उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल चौंकाता है, बल्कि यह बताता है कि हम कहां पहुंच गए हैं। जज महोदय, कुछ तो मान रखिए कानून का। मंत्री महोदय को तत्काल मंत्रिमंडल से बर्खास्त कीजिए बुल्डोजर महोदय। घृणित सिस्टम का विकास मत कीजिए। लोकतंत्र में अपनी बात कहने का हक है। रेप पीड़िता किसी की हत्या नहीं कर रही थी। वह तो एक पोस्टर लेकर बैठी थी। संविधान क्या उसे इतना अधिकार भी नहीं देता? रेप पीड़िता कैसा जीवन जी रही होगी! पिता की हत्या हो गई। अकेली मां और वह। समाज की लांछना झेलते हुए न्याय की गुहार लगाती रेप पीड़िता! कहां हैं प्रभु! मंदिर का पट खोलिए। साधु संन्यासी कहां हैं ! कहां हैं नैतिकवान पार्टी के नेता! चंदन टीका लपेसने से समाज समृद्ध नहीं होता। समाज की समृद्धि सत्य और न्याय की स्थापना में है।आप लाख ड्रेस बदल लें। दो लाख की चादर और डेढ़ लाख का चश्मा पहनें, लेकिन ढोल के नीचे खोल है तो चादर और चश्मा इज्जत नहीं बख्शेंगे।देश का जो परिदृश्य है, वह भयावह प्रतीत होता है। जिस देश में लोकतंत्र नहीं है, वहां की बात अलग है, लेकिन जहां लोकतंत्र है, वहां लोक की इस तरह से धुनाई और प्रताड़ना।
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