मौत की सांस ले रहे हैं 93 फीसदी भारतीय

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6 मार्च। भारत में न केवल वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या ज्यादा है, बल्कि कैंसर, टीबी सहित अन्य गंभीर बीमारियों से मरने वालों की संख्या ज्यादा है। अगर भारत में कैंसर, टीबी, डायबिटीज, हार्ट अटैक जैसे गंभीर बीमारियों से मरने वालों की संख्या देखी जाए तो कोरोना से मरने वालो की संख्या से कई गुना ज्यादा है। मगर मोदी सरकार गोदी मीडिया के माध्यम से कोरोना से मरने वालों की संख्या भयंकर दिखाकर लोगों को दहशत में डाल दिया है। इसका असर अभी तक लोगों के जेहन से नहीं गया है।

जबकि,सरकार का दावा है कि सरकार उक्त बीमारियों को रोकने में कामयाब हुई है। परन्तु सच तो यह है कि सरकार खुद अपने ही हाथों अपनी पीठ थपथपाने का काम करती आ रही है। अगर सरकार उपरोक्त कामों को सही ढंग से की होती तो आज भारत में वायु प्रदूषण से मरने वालों की संख्या बेहद कम होती।

गौरतलब है कि भारत में 93 प्रतिशत भारतीय मौत की सांस ले रहे हैं, यानी वे ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों से अधिक है। हाल में जारी एक वैश्विक रिपोर्ट में यह बात कही गई है। रिपोर्ट से पता चला है कि इसके परिणामस्वरूप भारत में जीवन प्रत्याशा लगभग 1.5 वर्ष कम हो गई है। हाल में हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) द्वारा वार्षिक स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर नाम की रिपोर्ट जारी की गई है। इस अध्ययन से पता चला है कि 2019 में 83 माइक्रोग्राम/क्यूबिक मीटर (मिलीग्राम/घन मीटर) की औसत वार्षिक जनसंख्या-भारित पीएम 2.5 के साथ, भारत में पीएम 2.5 को 9,79,700 मौतों के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

रिपोर्ट से पता चला है कि दुनिया की लगभग 100 प्रतिशत आबादी उन क्षेत्रों में रहती है, जहां पीएम 2.5 का स्तर डब्ल्यूएचओ की सिफारिशों से अधिक है, जो कि औसत वार्षिक पीएम 2.5 एक्सपोजर स्तर 5 मिलीग्राम/घन मीटर है। औसतन, दुनिया की 40 प्रतिशत से अधिक आबादी उन क्षेत्रों में रहती है जहां ओजोन का स्तर 2019 में डब्ल्यूएचओ के सबसे कम कड़े अंतरिम लक्ष्य से अधिक था। लेखकों ने अध्ययन में लिखा, वायु प्रदूषण दुनियाभर में मौतों और विकलांगता के लिए एक प्रमुख जोखिम कारक है। अकेले 2019 में वायु प्रदूषण के संपर्क में आने से 6.7 मिलियन मौतें हुईं।


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