— रितु कौशिक —
आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में जाना जाता है। इसे इतिहास में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसका जन्म न्यूयार्क (अमेरिका) में महिला टेक्सटाइल वर्करों के जुझारू श्रमिक आंदोलन से हुआ, जो 8 मार्च 1857 को शुरू हुआ। इन महिला कामगारों की माँग थी- सप्ताह में कार्य दिवस व काम के घंटे कम करो। इसी आंदोलन से महिला कामगारों की प्रथम लेबर यूनियन की स्थापना हुई। इसके साथ ही शुरू हुआ बीसवीं सदी की शुरुआत में महिला कामगारों का उत्तरी अमेरिका से लेकर सारे यूरोप में उग्र आंदोलन। महिला दिवस आंदोलनों के मुख्य उद्देश्य थे- पहला यह कि महिला कामगारों को ट्रेड यूनियन बनाने व अन्य श्रमिक अधिकार मिलें। दूसरा, मत देने का अधिकार मिले। इन दोनों मुद्दों ने पूरे यूरोप की महिलाओं को एकजुट कर दिया। अब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस ने एक नया वैश्विक आयाम ले लिया जिसमें विकसित और विकासशील दोनों देश शामिल हैं।
आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भारत समेत लगभग सौ देशों में मनाया जाता है। यह वो दिन है जब महिलाओं को उनकी उपलब्धियों के बारे में सम्मानित किया जाता है। बगैर किसी भाषाई, जातीय, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक या किसी देश के बीच के फर्क के यह दिवस साल दर साल उन महिलाओं को श्रद्धांजलि देने के साथ ही हजारों-हजार महिलाओं के साहस व संकल्पशक्ति को याद करता है जिन्होंने अपने अधिकार हासिल करने के लिए असाधारण ऐतिहासिक भूमिका निभायी।
इस पावन दिन पूरे विश्व की कामगार मेहनतकश महिलाएँ अपने श्रमिक साथियों के साथ अपनी एकता और भाईचारे को व्यक्त करती हैं और महिलाओं की उपलब्धियों, उनके योगदान को, विशेषकर कामकाजी महिलाओं के समाज में योगदान को याद करती हैं। विशेष रूप से आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक क्षेत्र में उनके योगदान को, जबकि वो ऐसे दिन थे जो अशांति, कठिनाइयों से भरे हुए थे।
उनके इन संघर्षों से सीख लेने की जरूरत है। ताकि आज उन्हें बेरहम पूँजीवादी शोषण के खिलाफ लड़ने के लिए बल हासिल हो सके और वे हर प्रकार के पूँजीवादी शोषण के खिलाफ उठ खड़ी हो सकें। इसलिए अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना महज एक रस्मअदायगी नहीं है, इसका महिला श्रमिकों के आंदोलन, वर्ग दृष्टिकोण से उनके संघर्ष के क्षेत्र में गहरा और विस्तृत है।
जिस प्रकार कोलाताई रूसी बोल्शेविक कम्युनिस्ट महिला कॉमरेड एलेक्सेंड़ा मिखालोवना, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय श्रमिक महिला दिवस के रूप में पूरे विश्व में मान्यता दिलाने के लिए अपना शानदार योगदान दिया, ने अपने एक पैम्फलेट में सन् 1919 के आयोजन के दौरान लिखा “महिला दिवस या महिला श्रमिक दिवस अंतरराष्ट्रीय एकजुटता का दिन है। सर्वहारा मजदूर महिलाओं ने अपनी संगठन शक्ति के आकलन का दिन है। लेकिन 8 मार्च का यह दिन मात्र महिलाओं के लिए ही प्रासंगिक है, ऐसा बिल्कुल नहीं है। बल्कि 8 मार्च का यह दिवस मजदूरों, किसानों, रूस के समूचे कामगारों और विश्व के मजदूर वर्ग के लिए भी एक महत्त्वपूर्ण यादगार दिवस है।”
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का इतिहास
यद्यपि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का जन्म जुझारू आंदोलन और बीसवीं सदी की शुरुआत के राजनीतिक घटनाक्रमों के परिदृश्य में हुआ, इसने उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्ध में आंदोलनों, राजनीतिक सक्रियता की परंपरा को अख्तियार किया। पिछली दो शताब्दियों के तीव्र औद्योगिक विकास में देश-देशांतर की सीमा से परे श्रमिक वर्ग ने शोषण और बदहाल कार्यक्षेत्र की अवस्थाओं के खिलाफ आंदोलन किये हैं और इन आंदोलनों में लड़ाई की अगुआ दस्ता की भूमिका में महिला श्रमिक रही हैं हालांकि शुरुआत के नारीवादी आंदोलनों का केन्द्रबिंदु महिलाओं के मानवाधिकार तक सीमित था। जैसे कि महिला मताधिकार। लेकिन बहुसंख्यक महिलाओं ने श्रमिक वर्ग के आंदोलनों के करीब खुद को ज्यादा महसूस किया जो बेहतर वेतन और ऐसे अधिकार हासिल करने की लड़ाई थी जिसमें एक हिस्से की आजादी और समानता का मतलब दूसरे सारे वर्ग की समानता और अधिकार हासिल करना था। इसी ने यह सवाल पैदा किया कि श्रमिक वर्ग के एक विशाल हिस्से यानी महिलाओं को बराबरी का हक हासिल हो।
यह आंदोलन जो मजदूरी-दासता के खात्मे के लिए तैयार हुआ- इसने सारे श्रमिक वर्ग, सारे मजदूरों को चाहे गोरे हों या काले, आदमी हो या औरत- की सीमाओं को खत्म कर एक वृहद मजदूर आंदोलन के संघर्षों को निर्मित किया जो वेतनभोगी-मजदूर का आंदोलन था। इस संघर्ष ने मजदूरों के बीच जाति भेद, रंग भेद, लिंग भेद के खिलाफ माहौल पैदा किया। और मजदूर आंदोलन के लक्ष्य में समानता की लड़ाई भी शामिल हो गयी। महिला अधिकारों के लिए संघर्ष की लड़ाई ने 19वीं सदी के उत्तरार्ध में और भी तीखा रूप अख्तियार कर लिया क्योंकि औद्योगिक देशों में सैकड़ों-हजारों की संख्या में महिला श्रमिकों को उद्योग-धंधों में नौकरी पर रखा गया।
1907 में समाजवादी महिलाओं की पहली अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस क्लारा जेटकिन ने आयोजित की, जिसमें 15 देशों की 59 डेलीगेट्स ने शिरकत की। इसका मुद्दा था कि कैसे महिलाओं के वोट देने के अधिकार संबंधी संघर्ष को संयोजित किया जाए व बड़े स्तर पर विश्व भर में समाजवादी महिला संगठन खड़े किये जाएं। इस सम्मेलन ने सभी समाजवादी महिला संगठनों को एक सूत्र में पिरोकर एक सामूहिक अंतरराष्ट्रीय महिला संगठन खड़ा करने का निर्णय लिया। 1857 में महिला कामगारों के संघर्ष की शुरुआत के ठीक 15 वर्ष बाद आखिरी रविवार को फरवरी 1908 में अमेरिका की समाजवादी महिलाओं ने प्रथम महिला दिवस की शुरुआत की, जिसमें बड़े-बड़े विशालकाय प्रदर्शन हुए, जिसमें वोट का अधिकार और महिलाओं को राजनीतिक व आर्थिक अधिकार सुनिश्चित करने की माँग उठाई गयी।
सन् 1908 में 8 मार्च के दिन न्यूयार्क की 15000 नीडल ट्रेड वर्करों ने मैनहट्न लोअर ईस्ट साइड में रूटगर्स स्क्वायर पर विशाल प्रदर्शन किया। उनकी मुख्य माँगें थीं हमें अपनी ट्रेड यूनियन बनाने का अधिकार मिले, बाल मजदूरी बंद हो, काम के घंटे कम हों, बेहतर वेतनमान और महिलाओं को मत देने का अधिकार दिया जाए। उस दिन ही न्यूयार्क की रेडीमेड कपड़ा बनानेवाली इकाइयों की महिला वर्करों ने आम हड़ताल की। 8 मार्च 1908 के इस ऐतहासिक प्रदर्शन व हड़ताल ने न्यूयार्क में आनेवाले वर्ष 1909 में शर्टवेस्ट महिला कारीगरों के विद्रोह को जन्म दिया। लगभग 30,000 शर्टवेस्ट महिला कामगार 13 हफ्तों की खून जमा देनेवाली ठंड में रात-दिन सड़कों पर डटी रहीं। उनकी माँग थी- बेहतर वेतन और काम की स्थितियाँ।
इसके नतीजतन अमेरिका में महिला वर्करों की प्रथम ट्रेड यूनियन का जन्म हुआ। एक बहुत बड़ी हड़ताल भी आयोजित की। गिरफ्तार की गयी हड़ताली महिला कर्मचारियों के लिए जमानत की रकम की व्यवस्था लोग करते थे और हड़ताल के लिए बड़ी मात्रा में “स्ट्राइक फंड” जुटाती थी। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की जड़ें सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका द्वारा अधिकारिक रूप से घोषित प्रथम राष्ट्रीय महिला दिवस में है। जो 1909 में मनाया गया। इसमें मात्र एक ही दिन में न्यूयार्क शहर में कई बड़े-बड़े आयोजन हुए।
दूसरा अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन
सन 1910 में ‘सोशलिस्ट इंटरनेशनल’ ने कोपनहैगन (डेनमार्क) में दूसरा अंतरराष्ट्रीय महिला सम्मेलन आयोजित किया। इस लक्ष्य के साथ कि महिला दिवस को एक अंतरराष्ट्रीय आयोजन के तौर पर मान्यता मिले। शोषित महिला कामगारों की अंतरराष्ट्रीय एकता की धारणा को बहुत पहले से समाजवादी नीति के रूप में स्थापित किया गया था। महिला, राजनीतिक महिला के रूप में संगठित हो यह विचार स्वयं समाजवादी आंदोलन के अंदर अभी तक विवादास्पद था।
इस सम्मेलन ने महिलाओं के वोट देने के अधिकार को पुनः दोहराया और इसने मतदान प्रणाली को संपत्ति अधिकार से अलग करके सभी के लिए वोट देने के समान अधिकार की माँग उठायी। इसका मत यह था कि सभी बालिग महिलाओं व पुरुषों को वोट देने का समान अधिकार दिया जाए। इस सम्मेलन ने मातृत्व लाभ देने की भी माँग उठायी।
दूसरे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस में 17 देशों की 100 से अधिक महिलाओं ने भाग लिया। जिसमें ट्रेड यूनियनों, समाजवादी पार्टियाँ व कामगार महिलाओं के क्लबों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इसमें फिनलैंड देश की संसद में प्रथम बार चुन कर आयी तीन महिला सांसदों ने भी हिस्सा लिया। सभी प्रतिनिधियों ने क्लारा जेटकीन के सुझाव का सर्वसम्मत समर्थन किया। फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को स्थापित किया। इस सम्मेलन ने न्यूयार्क (अमेरिका) में 1908 में हुई कपड़ा मजदूरों की विशाल हड़ताल को यादगार बनाने के लिए 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने का प्रस्ताव पारित किया। यद्यपि अब तक कोई अधिकारिक दिन इस रूप में तय नहीं किया गया था। इस सम्मेलन व इसके प्रस्ताव को ‘दूसरे अंतरराष्ट्रीय’ की पूरी कॉन्फ्रेंस ने जो इसी वर्ष के अंत में की गयी थी, पूरे तौर पर स्वीकृत किया।
1975 में संयुक्त ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को मान्यता दी और इस वर्ष को अंतरराष्ट्रीय महिला वर्ष के रूप में घोषित किया। इसके बाद से 8 मार्च अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाना शुरू किया। अब अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पूरे विश्व में सैकड़ों आयोजनों के साथ मनाया जाता है। बीस से अधिक देशों में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर आधिकारिक छुट्टी होती है। चीन सहित तीन देश महिलाओं को एक दिन की छुट्टी लेने की अनुमति देते हैं। लेकिन भारत सरकार ने अब तक इस दिन को न तो महिला दिवस के रूप में घोषित किया और ना ही कोई छुट्टी का प्रावधान किया है।
कामकाजी महिलाओं के संघर्ष व बलिदान से उपजे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की आज भी बहुत प्रासंगिकता है। अभी तक जो अधिकार हासिल किये गये हैं और जो अभी हासिल किए जाने हैं दोनों ही मामलों में इसकी प्रासंगिकता है। कार्य स्थल पर बेहतर माहौल, वेतन और अन्य कई मूलभूत अधिकारों में अभी तक जो हासिल किया गया है उसे और विस्तारित किए जाने की आवश्यकता है। नारी को शोषण से मुक्ति व बराबरी एक बड़ा विषय है। पूँजीवादी समाज व्यवस्था में नारी की स्थिति और भी ज्यादा बदतर हुई है। अभी भी उसको उपभोग की वस्तु के रूप में समझा जाता है। इस दंश से बाहर निकलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की प्रासंगिकता आज भी निहित है। महिला कामगारों के आंदोलन की सारी आशा, सामूहिक संघर्ष, वर्ग संघर्ष में निहित है जो कि वर्तमान समय की सामाजिक जरूरतों को केन्द्र करके हो। जिसके जरिए महिलाओं की समाज में समानता व मुक्ति सुनिश्चित की जाए।